जयपुर, 1 मार्च। प्रमुख बुद्धिजीवियों की संस्था ‘मुक्त मंच‘ की 67वीं संगोष्ठी परम विदुषी डॉ. पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य और प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ नरेंद्र शर्मा कुसुम की अध्यक्षता में संपन्न हुई। गोष्ठी ‘‘धर्म का वितण्डावाद और सामाजिक समरसता‘‘ विषय पर हुई संगोष्ठी का संयोजन शब्द संसार के अध्यक्ष श्री श्रीकृष्ण शर्मा ने किया।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. नरेंद्र शर्मा कुसुम ने कहा कि एक आदर्श सामाजिक संरचना के मूल में समरसता एक महत्वपूर्ण घटक है। वितण्डावाद कुतर्क का पर्याय और अपने मतारोपण का प्रयास है। विचार के स्तर पर हर प्रकार का वितण्डावाद सर्वथा निंदनीय है और धर्म का वितण्डावाद अत्यंत विध्वंसकारी है।

मुख्य अतिथि अरुण कुमार ओझा आईएएस (रि.) ने कहा कि धर्म और रिलीजन में अंतर है। हम रिलीजन को ही धर्म समझ बैठे। जो देश धर्म के आधार पर चलते हैं, वह विकास की गति में बिछड़ जाते हैं। संगोष्ठी के संयोजक श्री कृष्ण शर्मा ने तुलसीदास को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई।‘ यानी सत्य, प्रेम, दया, करुणा, अस्तेय और क्षमा हमारी जीवन संजीवनी है।
आरसी जैन आईएएस (रि.) ने कहा कि हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं, जिसका कोई राजधर्म नहीं है। ऐसे में हमें अपनी आस्था, विश्वास और श्रद्धा को संपोषित कर आगे बढ़ना चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी ने कहा कि धर्म सामाजिक मूल्यों को संरक्षण प्रदान करता है। उसमें घृणा, हिंसा और असहिष्णुता के लिए कोई स्थान नहीं है। भारत ने इस दृष्टि से संसार को समरसता का संदेश दिया है। युवा विचारक ज्ञानचंद जैन ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को आग का दरिया पार करके काल का पहिया संचालित करना है, तभी सामाजिक समरसता बच पाएगी।

इंजीनियर डीपी चिरानिया ने कहा कि अनेक कारणों से धर्म की भावना पर आवरण आ जाने से सामाजिक समरसता में कमी आई है। स्तंभकार और चिंतक ललित अकिंचन ने कहा कि धर्म के वितण्डावाद ने हमारे धार्मिक विश्वास और श्रद्धा केंद्रों को कमजोर किया है। इससे सामाजिक समरसता में बिखराव आ गया। साहित्यकार यशवंत कोठारी ने कहा कि धर्म हमें ऐसी जीवन दृष्टि देता है जिसमें प्रत्येक प्राणी में चैतन्य तत्व को देखा जाता है। धार्मिक कट्टरता सामाजिक समरसता को नष्ट करती है। लोकेश शर्मा ने कहा कि दंभ, हिंसा, बाह्य अशुद्धि, अहंकार आदि सामाजिक कटुता को प्रेरित-प्रोत्साहित करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार भारत पारीक ने कहा कि सोशल मीडिया ने वैमनस्य फैलाने का काम किया है जिस पर नियंत्रण होना चाहिए। विशेष विशेषज्ञ और साहित्यकार आर.के. शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया।