-राजस्थान विश्वविद्यालय का नाम गिनीज बुक में क्यों नहीं आ रहा? जो मैडम देखने में पूर्णतया असमर्थ है, वे कर रही हैं बीए-एमए की परीक्षा कॉपियां चेक और परीक्षा का वीक्षण कार्य भी करती हैं।
-उन बच्चों के भविष्य का क्या होगा? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन अंधा हो गया?
जयपुर, (हरीश गुप्ता)। राजस्थान विश्वविद्यालय, जिसके दोनों पैर ना हो, उसे दौड़ा सकता है, दो साल के बच्चे को सर्वश्रेष्ठ तैराक का अवार्ड दिलाने जैसे काम कर सकता है तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसका नाम क्यों नहीं आ रहा? यह विश्वविद्यालय ऐसी मैडम से बीए एमए की परीक्षा कॉपियां चेक करवा रहा है, जो देखने में सक्षम नहीं है।
सूत्रों ने बताया कि विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत डॉ विनीता नायर की कोर्ट के आदेश पर दिव्यांग कैटेगरी में नौकरी लगी थी। उनके पास सवाई मानसिंह अस्पताल का सर्टिफिकेट है। सर्टिफिकेट की मानें तो विनीता देखने में पूर्णतया असमर्थ हैं। डॉक्टर विनीता 2019 से विश्वविद्यालय के बीए एमए की कॉपियां चेक कर रही थी और वीक्षण कार्य भी कर रही थी। इन्होंने कॉपियां चेक करने में वाचक की सहायता भी नहीं ली, क्योंकि वाचक की सहायता लेती, तो उसके लिए विश्वविद्यालय से स्वीकृति लेनी होती हैं।
सवाल खड़ा होता है जो पूर्णतः देखने में असमर्थ है, वह कॉपियां कैसे जांच सकता है। दृष्टिहीन व्यक्ति बिना वाचक के कैसे कापियां पढ़ सकता है। इससे लगता है कि देखने की क्षमता सही है। फिर सर्टिफिकेट कैसे बन गया? क्या वह गलत है? यह बातें आम व्यक्ति सोच सकता है, फिर विश्वविद्यालय क्यों नहीं सोच रहा? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी तरह से अंधा है? उन बच्चों ने विश्वविद्यालय का क्या बिगाड़ा जिनकी कॉपियां इन मैडम ने चेक की। फीस तो उन्होंने भी पूरी ही दी होगी! वरना तो विश्वविद्यालय कॉलेज परीक्षा में बैठने ही नहीं देता। आखिर उनके साथ अन्याय क्यों?
सवाल और भी खड़े होते हैं कि सरकारी सेवा में लेने से पहले विभाग मेडिकल करवाता है। क्या 2015 में डॉक्टर विनीता का मेडिकल करवाया गया? अगर करवाया तो विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में क्यों नहीं है? विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में तो आज भी 2007 का एसएमएस अस्पताल का बना प्रमाण पत्र ही है।भर्ती के समय ताजा सर्टिफिकेट क्यों नहीं लिया गया? यह बड़ा ही गंभीर मामला है। इसे विश्वविद्यालय प्रशासन को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि छात्रों के भविष्य से जुड़ा मामला है।