

रविवार को राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा दिल्ली पहुंची। लगभग तीन हजार किमी की राहुल ने पदयात्रा पूरी कर ली है। दिल्ली पहुंचने के बाद अवकाश पहले से निर्धारित था ताकि पदयात्री अपने परिजनों से मिल सके। हालांकि विपक्ष ने इस अवकाश को लेकर भी छींटाकशी की, मगर अब राहुल व उनके सहयोगियों पर इस तरह की छोटी सोच का असर होना भी बंद हो गया है। बोलने वाले बोलते रहे, यात्री जवाब देते रहे।
सोमवार को राहुल गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ सभी दिवंगत प्रधानमंत्रियों की समाधि पर गये और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये। राहुल ‘ अटल समाधि ‘ पर भी गये और दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी। देखा जाए तो ये सामान्य राजनीतिक बात नहीं थी। क्योंकि अब तक इंदिरा जी हो या अटल जी, उनकी जयंती व पुयतिथि पर उनके दल वाले ही प्रमुखता से वहां जाते थे। मगर राहुल ने एक नई और स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की और अटल समाधि पर भी गये। इसे राजनीति में सुचिता और सार्थक परंपरा की शुरुआत माना जाना चाहिए था, तो शायद राजनीति शुद्धता की राह पर एक कदम आगे बढ़ती। मगर वर्तमान राजनीतिक प्रदूषण ने इस स्वस्थ शुरुआत को भी विवाद के जाल में लपेट लिया।
भाजपा के कुछ नेताओं ने राहुल के इस कदम की आलोचना की और यहां तक कह दिया कि कांग्रेस ने तो अटल जी पर बहुत आरोप लगाये, उनको बदनाम किया। अब वे ये दिखावा क्यों कर रहे हैं। राजनीतिक समझ रखने वाले लोगों को भाजपा के इन नेताओं की बात उचित नहीं लगी। क्योंकि अटल जी प्रधानमंत्री थे और प्रधानमंत्री किसी दल का नहीं होता, वो तो देश का होता है। उसी नाते उसकी समाधि बनती है।
महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल भी तो कांग्रेस के थे। मगर भाजपा सरकार भी इनकी मूर्ति लगाती है, उन्हें बड़ा मानती है। जयंती व पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देती है। गुजरात मे तो भाजपा सरकार ने ही पटेल की बड़ी मूर्ति लगाई। गांधी के विचारों पर केंद्र सरकार ने कई कार्यक्रम चला रखे हैं। इतना होने पर भी कांग्रेस ने कभी इस बात पर विरोध नहीं किया। बयानबाजी नहीं की। फिर अटल समाधि जाने पर राहुल पर टिप्पणी क्यों? सवाल तो वाजिब है ये। क्या विरोध करने वाले नेता अटल जी के व्यक्तित्त्व को केवल एक दल तक समेटे रखना चाहते हैं या उनको पूरे देश का नेता मानना चाहते हैं, इस बात का भी जवाब इनको देना चाहिए।
एकबारगी ये भी माना जा सकता है कि पहले कांग्रेस ने अटल जी की पीएम रहते आलोचना की होगी, मगर अब यदि दिवंगत बड़े नेताओं के प्रति कांग्रेस अपना नजरिया बदल रही है तो उसका स्वागत होना चाहिए। देश के वे दिवंगत नेता जो पीएम रहे, उन पर तो सबका अधिकार होना चाहिए। क्योंकि हर पीएम ने पद पर रहते हुए देश के विकास में अपनी सामर्थ्य के अनुसार योगदान दिया है। दलीय सीमाओं को तोड़कर इन दिवंगत नेताओं को सभी दल समान रूप से श्रद्धा दे तो प्रदूषित राजनीति का परिवेश कुछ तो स्वच्छ होगा। इंदिरा जी हो या अटल जी, राजीव जी हो या चरण सिंह जी, सभी का देश को योगदान है, केवल अपने दलों को नहीं। यदि इस बार से राहुल ने ये परंपरा शुरू की है तो उसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए। तभी एक कोने में मायूस खड़ा लोकतंत्र थोड़ा मुस्कुरायेगा। जनता तो फिर स्वतः मुस्कुरा देगी।
- मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार