खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बने, हिमाचल, गुजरात, राजस्थान पहली परीक्षा
………….

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में कर्नाटक के जमीनी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने जीत हासिल की। उन्होंने पार्टी के कुल वोटरों का 89 प्रतिशत हिस्सा हासिल किया। उनके सामने चुनाव लड़ रहे शशि थरूर को भी 10 फीसदी से अधिक मत मिले। लोकतांत्रिक तरीके से पार्टियों के भी चुनाव होते हैं, ये देश की बड़ी आबादी ने पहली बार देखा। यदि सभी राजनीतिक दल इस प्रक्रिया को अपनाना शुरू करें तो शायद लोकतंत्र अधिक मजबूत होगा।
भाजपा सहित अधिकतर कांग्रेस विरोधी वर्षों से पार्टी को परिवारवाद के आरोप से घेरते रहे हैं। उनको गांधी परिवार ने संगठन चुनाव से करारा जवाब दिया है। चुनाव से पहले राहुल गांधी ने घोषणा कर दी कि गांधी परिवार का कोई सदस्य अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेगा। लोगों को भरोसा नहीं हुआ, मगर इस घोषणा को परिवार ने अमल किया और कांग्रेस को 24 साल बाद गैर गांधी परिवार का अध्यक्ष मिला। गैर गांधी परिवार का ही नहीं पिछड़ी जाति का अध्यक्ष मिला। बाबू जगजीवन राम के बाद खड़गे दूसरे इस वर्ग के अध्यक्ष बने हैं।
लगातार दो आम चुनावों और विधानसभा चुनावों की अनवरत हार से घिरी कांग्रेस के अध्यक्ष का पद कांटों भरा ताज है। ये खड़गे भी जानते हैं। सिर्फ दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकारें हैं। यूपी, बिहार जैसे बड़े प्रदेशों में तो पार्टी का सांगठनिक ढांचा भी खड़ा नहीं हो पा रहा है। मध्यप्रदेश, कर्नाटक और गोवा में तो सत्ता का निवाला कांग्रेस से भाजपा ने मुंह से छीन लिया। कई वरिष्ठ और युवा नेताओं ने वर्षों के जुड़ाव के बाद भी पार्टी छोड़ी है। इस दौड़भाग को रोकना भी खड़गे के लिए बड़ा टास्क है। यूपीए के सहयोगी दलों को थामे रखना और दूसरे गैर भाजपा दलों को करीब लाने का काम नये कांग्रेस अध्यक्ष को करना होगा। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, जगन रेड्डी, चंद्रशेखर आदि का भरोसा भी खड़गे को जीतना होगा। तभी वे 2024 के आम चुनाव में भाजपा को टक्कर दे सकेंगे। जो फिलहाल मुश्किल लगता है। ये खड़गे को करना तो पड़ेगा।
अगले दो महीनों में हिमाचल और गुजरात में चुनाव है, जो खड़गे की पहली परीक्षा है। हिमाचल में पिछले दिनों हुआ लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस ने जीता। इस राज्य में भी पांच साल बाद सरकार बदलने की परंपरा है, जिसे तोड़ने के लिए भाजपा ने कमर कस रखी है। अगले महीने होने वाले चुनाव के लिए भाजपा की पूरी तैयारी है मगर कांग्रेस अब तक खास सक्रिय नहीं हो सकी है। इस चुनाव को जीतकर ही खड़गे नेताओं व कार्यकर्ताओं का विश्वास बूस्ट कर सकते हैं।
पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा था। वहां उसे 99 सीटों पर रोक दिया था। मगर इस बार कांग्रेस के वो तेवर जमीन पर नजर नहीं आ रहे। इस बार आम आदमी पार्टी भी पूरी ताकत से मैदान में है, जो विरोधी वोटों का ही नुकसान करेगी। गुजरात चुनाव भी खड़गे की पहली परीक्षा में शामिल है।
पार्टी के लिए राजस्थान बड़ी समस्या है, जिससे खड़गे परिचित हैं। वे पर्यवेक्षक बनकर गये और बैठे रहे मगर पार्टी के निर्देश के बाद भी गहलोत समर्थक विधायक बैठक में नहीं आये। अलग बैठक की और विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे तक सौंप दिए। कांग्रेस पर्यवेक्षक के रूप में खड़गे को जयपुर से बैरंग लौटना पड़ा था। गहलोत और पायलट आमने सामने है, कुछ भी हल नहीं निकल रहा है। अब राजस्थान की समस्या का निर्णय भी खड़गे की पहली परीक्षा में शामिल है।
खड़गे का लंबा राजनीतिक अनुभव है और वे पार्टी के प्रति सदा निष्ठावान रहे हैं, इस पर कोई शक नहीं। मगर हार की हताशा से पार्टी को उनको उबारना होगा, वहीं पार्टी को भी एकजुट करना होगा। दोहरे मोर्चे पर खड़गे को लड़ना है, अब वो कितने सफल होते हैं ये तो समय बतायेगा।बहरहाल गांधी परिवार खड़गे को अध्यक्ष बना परिवारवाद के आरोप से तो कांग्रेस को मुक्त करा चुका है।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार