आने वाला साल 2023 राजनीतिक दृष्टि से खास बनने वाला है, क्योंकि इस साल में 10 राज्यों के चुनाव है और ये चुनाव 2024 में होने वाले आम चुनावों का तय सेमीफाइनल है। जिसके आधार पर ही देश की अगली सरकार की तस्वीर कुछ साफ होगी। इसी कारण कांग्रेस और भाजपा ने बड़े बदलावों का ब्ल्यू प्रिंट तैयार किया है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक व तेलंगाना जैसे बड़े राज्यों में अगले साल चुनाव है। इनके अलावा पूर्वोत्तर के भी पांच छोटे राज्यों में चुनाव है, जिसमें त्रिपुरा भी शामिल है। कांग्रेस इन सभी राज्यों में अपने प्रभारी बदल चुनाव की बिसात बिछानी आरम्भ कर दी है तो भाजपा भी संगठन के स्तर पर तैयारी कर रही है। चुनावी राज्यों में संगठन में भी वो बड़े बदलाव करेगी, इसके संकेत मिल रहे हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि पूर्व की चुनावी रणनीति के अनुसार भाजपा केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी फेरबदल कर सकती है और चुनावी राज्यों को तरजीह दी जा सकती है। संगठन में कुछ बदलाव प्रभारियों के स्तर पर पार्टी कर चुकी है और कुछ करने की तैयारी कर रही है।
पिछले 10 सालों से चुनावों में लगातार रणनीति के आधार पर सफलता अर्जित करने वाली भाजपा हर राज्य में पहला प्रयास एन्टीनकम्बेंसी को थामेगी। अभी कर्नाटक, मध्यप्रदेश में उसकी सरकार है, राजस्थान उसके लिए खास महत्त्व का है। राजस्थान ही वो बड़ा राज्य है जिसमें कांग्रेस की सरकार है, जिसे जितने के लिए भाजपा खास रणनीति पर काम कर रही है, इस कारण यहां ज्यादा बदलाव की संभावना जताई जा रही है। राजस्थान में पार्टी को एक करना भाजपा के लिए बड़ी चुनोती है, क्योंकि यहां कई धड़े बने है और उपचुनावों में भी पार्टी को हार मिली है। तभी तो पार्टी ने बहुत पहले ये घोषणा कर दी कि यहां सीएम फेस सामने नहीं रखा जायेगा, पार्टी पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। इस निर्णय को सार्वजनिक करने बाद भी धड़े अपने अपने दावे रखने में लगे हैं, जिससे आलाकमान बेखबर नहीं है। इसी कारण वो नये साल में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है।
सर्वे के आधार पर ही भाजपा टिकट तय करेगी, ये स्पष्ट हो चुका है। यहां भी गुजरात फार्मूले की तर्ज पर कई दिग्गजों को चुनाव से दूर रखा जा सकता है। पिछली बार के उम्मीदवारों को भी गुजरात की तरह बड़ी संख्यां में बदला जा सकता है। संगठन में भी जिला स्तर पर बदलाव कर सकती है, जिसकी आहट सुनाई भी पड़ रही है।
कांग्रेस भी हरहाल में राजस्थान में सरकार रिपीट करना चाहती है, जिस पर ही प्रभारी बाजवा व आलाकमान कसरत कर रहे हैं। कांग्रेस को इसके लिए अशोक गहलोत व सचिन पायलट गुट के बीच दूरी करनी जरूरी है, उसके बिना ये सपना देखा ही नहीं जा सकता, मगर ये इतना आसान काम नहीं है। राहुल गांधी ने भी यात्रा के मध्य इस दिशा में प्रयास किये थे। अब बाजवा ने राज्य में ही डेरा डाल दिया है। विधायकों, मंत्रियों व हारे हुए प्रत्याशियों से वो चर्चा कर रहे हैं। इसकी रिपोर्ट वे आलाकमान के सामने रखेंगे और उसके आधार पर बड़े निर्णय लिए जायेंगे।
उसी आधार पर कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस भी नये साल में मंत्रिमंडल में फेरबदल कर सकती है और कुछ नये चेहरों पर दांव लगा सकती है। संगठन को तो बदलना ही है क्योंकि अभी जिला और ब्लॉक स्तर पर नियुक्तियां लंबे समय से हुई ही नहीं है। बाजवा ने कल संकेत भी दिया कि 2 दिन में संगठन की नियुक्तियां तय कर ली जायेगी। ठीक इसी तरह दोनों गुटों के समन्वय से निर्णय करने का भी संकेत दिया गया है।
आलाकमान के पर्यवेक्षक सितंबर में जब आये तो गहलोत समर्थक विधायकों ने नेतृत्त्व परिवर्तन की संभावना का विरोध किया और अलग से बैठक कर अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को सौंपे थे। इस मामले को भाजपा माननीय न्यायालय तक ले गई। अब कल बाजवा ने सभी विधायकों को इस्तीफे वापस लेने का निर्देश दिया और ये काम शुरू भी हो गया।
इस तरह लगता है कि राजस्थान पर भाजपा व कांग्रेस का खास फोकस है, उसी कारण नये साल में यहां बड़े राजनीतिक बदलाव तय माने जा रहे हैं। ये ही संकेत उन सभी राज्यों से भी मिल रहे हैं जहां अगले साल चुनाव है। राजनीति के जानकार तय मान रहे हैं कि नये साल में दोनों पार्टियां बड़े राजनीतिक बदलाव करेगी।
- मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार