भारत सरकार ने इस बार हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि, आलोचक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को पदमश्री देना साहित्य का सम्मान है। तबला वादक जाकिर हुसैन को पदम विभूषण व अहमद हुसैन – मोहम्मद हुसैन को पदमश्री देना संस्कृति, कला का सम्मान है। इन राष्ट्रीय सम्मानों से साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्र में सुखद अनुभूति हुई है। क्योंकि इन क्षेत्रों को इतना सम्मान मिलने का निर्णय पहली बार हुआ है। खास बात ये है कि ये सभी अपने अपने क्षेत्र में अभी भी पूरी ऊर्जा के साथ सक्रिय है। सक्रिय कलाधर्मियों का सम्मान इस क्षेत्र में सक्रिय सभी लोगों को एक सकारात्मक ऊर्जा देता है, जो भरोसे के समाज के लिए जरूरी भी है।
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष भी रहे हैं और हिंदी साहित्य के अलहदा व प्रभावी कवि है। भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य का उन्होंने अध्ययन किया है। इन भाषाओं के साहित्य को अध्यक्ष रहते पोषित, संरक्षित व पल्लवित करने में उनका बड़ा योगदान है। हिंदी कविता को तिवारी ने एक मुहावरा दिया है, जिससे उनकी अलग पहचान बनी। हिंदी के अनेक कवियों के वे मार्गदर्शक भी हैं। अब भी कविता लिखना व अध्ययन के बाद आलोचनात्मक टीप देने का वे काम कर रहे हैं।
हिंदी साहित्य में कमजोर हुई आलोचना विधा को उन्होंने फिर से प्रतिस्थापित करने का भागीरथी काम किया है। एक तरफ जहां साहित्य पॉपुलर के सोच से बाजारवाद का शिकार हो रहा है, वहीं तिवारी इसे भारतीय साहित्य परंपरा से जोड़े रखने का काम प्रतिबद्धता से कर रहे हैं। उनका मानना है कि भारतीय साहित्य तभी मजबूत रहेगा जब हम क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य को जीवित रख मान देंगे। हिंदी की सबलता क्षेत्रीय भाषाओं के मजबूत साहित्य से ही सम्भव है। तिवारी का ये सोच हर भारतीय भाषा के साहित्य, संस्कृति के संरक्षण का एक तरह से महाअभियान है। तभी तो हर भाषा का रचनाकार उनका सम्मान करता है। तिवारी को पदमश्री मिलना हिंदी साहित्य ही नहीं वरन भारतीय साहित्य का सम्मान है। जरूरत इस बात की है कि उनके ध्येय को भी अमली जामा मिले, खासकर क्षेत्रीय भाषाओं के संदर्भ में। राजस्थानी, भोजपुरी, भुटी आदि भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिए संघर्ष कर रही है, उस पर अब सकारात्मक निर्णय की जरूरत है। ये इन भाषाओं की संवैधानिक मान्यता तक का मुद्दा नहीं है, इन भाषाओं की संस्कृति की रक्षा से जुड़ा अहम मसला है। इन भाषाओं को मान्यता मिलेगी तो हिंदी भी मजबूत होगी। तिवारी को सम्मान इन मसलों पर एक बार फिर विचार व निर्णय का मार्ग खोलने वाला है। जो साहित्य, संस्कृति के लिए जरूरी भी है। सरकार को संवैधानिक मान्यता पर शीघ्र निर्णय करना चाहिए।
तबला वादक जाकिर हुसैन को पदम विभूषण मिलना भारत की प्राचीनतम तबला वादन की कला को सम्मान मिलना है। किसी भी गायन व नृत्य में हारमोनियम का जितना महत्त्व है, उतना ही महत्त्व तबले का भी है। एक सुर को साधता है तो दूसरा ताल को। ये ही गायन व नृत्य के लिए जरूरी है। जाकिर हुसैन ने तबला वादक के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित की है। न केवल उन्होंने खुद ख्याति पाई, अपितु तबला वादन की परंपरा को भी जीवित रखा है। उनके तबला वादन में असंख्य शिष्य है जो इस भारतीय वाद्य की महत्ता को स्थापित कर रहे हैं। आधुनिक व पाश्चात्य वाद्य यंत्रों के आने के बाद भी तबले का महत्त्व बड़ा बना हुआ है, उसके साधक जाकिर हुसैन है। उनका सम्मान भारतीय कला का सम्मान है।
जयपुर के ग़ज़ल गायक अहमद हुसैन – मोहम्मद हुसैन की जोड़ीं ने गायन की इस विधा में पूरी दुनिया मे नाम कमाया है। गज़ल गायन भी भारत की पुरातन गायन परंपरा है और उसके उस्ताद है ये दोनों भाई। कानफाड़ू पाश्चत्य गायन के मध्य गज़ल ठंडी हवा का झोंका है जो अब भी अपनी खासियत के कारण सबकी पसंद बना हुआ है। उसी की साधना इन दोनों भाईयों ने की है।
इन तीन साहित्यकार व कलाकारों को सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान मिलना भारतीय साहित्य, कला एवं संस्कृति का सम्मान है। जिसके लिए भारत सरकार का साधुवाद हर कलाकार, साहित्यकार कर रहा है। हर साल इस परंपरा का निर्वाह होता रहेगा, ये अपेक्षा साहित्य व कला जगत कर रहा है, जो उचित भी है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार