संसद का शीतकालीन सत्र एक बार फिर हंगामे की भेंट चढ़ गया। लोक सभा और राज्य सभा में नाम मात्र का काम हुआ और वो भी शोर शराबे के बीच। विपक्ष लगातार या तो नारे लगाता रहा या फिर वॉक आउट का काम किया। तीखी झड़पें भी हर बार की तरह हुई मगर इस बार विपक्ष ज्यादा आक्रामक दिखा। भारत – चीन सीमा पर बिगड़े हालात को लेकर सत्ता व विपक्ष एक दूसरे से टकराते रहे। कुल मिलाकर ये सत्र चीन सीमा विवाद की भेंट चढ़ गया।
पिछले काफी समय से सीमा पर विवाद है और दोनों देशों के सैनिक आमने सामने हुए हैं।
विपक्ष का आरोप है कि चीन भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है और वहां उसने निर्माण कार्य भी कर लिया है। सरकार कुछ भी नहीं बोल रही है और चीन के मामले में चुप्पी साध रखी है, जो राष्ट्र हित में नहीं है। इस बार तो विपक्ष ने ये भी आरोप लगाया कि चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुसे और उन्होंने हमारे सैनिकों की पिटाई भी की। विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है और यहां तक आरोप लगा रहा है कि पीएम चीन से डरते हैं, जिसका नुकसान राष्ट्र को हो रहा है। इन तीखे हमलों का अंदेशा सरकार को भी था और उसे जानकारी थी कि इस मामले को विपक्ष संसद में उठायेगा।
इसी की आशंका के चलते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मसले को उठाने पर बयान दिया और स्पष्ट किया कि चीन हमारी सीमा में नहीं घुस सका है और न हमारे सैनिकों की पिटाई हुई है। उनका कहना था कि भारतीय सैनिकों ने घुसपैठ करने की कोशिश पर चीनी सैनिकों की जमकर पिटाई की है। विपक्ष के तमाम आरोप रक्षा मंत्री ने खारिज किये।
रक्षा मंत्री के बयान के बाद विपक्ष सवाल करना चाहता था और अपने पास के तथ्य रखकर सरकार को घेरने की कोशिश में था। मगर दोनों सदनों में बयान पर व इस मसले पर विपक्ष को बोलने की इजाजत नहीं दी गयी। विपक्ष ने अलग अलग धाराओं के तहत चर्चा के नोटिस दिये मगर लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने सब खारिज किये। सदन में इस विषय पर बोलने की भी अनुमति नहीं दी। सरकार की तरफ से इसे संवेदनशील व राष्ट्र हित का मसला बताया और कहा कि इसकी बातें सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए। अगर होती है तो दुश्मन को पता चल जायेगा, जिसका नुकसान उठाना पड़ेगा।
कांग्रेस अध्यक्ष व राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे लगातार इस मसले पर बोलने की कोशिश करते रहे मगर इजाजत नहीं मिली। खड़गे ने तर्क दिया कि जब कांग्रेस सरकार थी और चीन व पाकिस्तान की सीमा पर तनाव हुआ तब एक ही सांसद की मांग पर संसद बुलाई गई और खुलकर चर्चा की गई। उनका कहना था कि समूचे राष्ट्र को ये जानने का हक़ है कि चीन सीमा पर आखिर हो क्या रहा है। लंबी तकरार के बाद भी सदन में चर्चा या इस मुद्दे पर कोई बात नहीं होने दी गयी। जिसकी परिणीति हंगामे और वॉक आउट के रूप में हुई। पूरा काम हंगामे की भेंट चढ़ गया।
सदन के बाहर भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर तीखे हमले करते रहे। दोनों एक दूसरे पर चीन परस्त होने तक का आरोप लगाते रहे। बयानों की भाषा भी कड़वाहट भरी थी। इस टकराहट के मध्य आम आदमी असमंजस में है। वो तय ही नहीं कर पा रहा है कि चीन सीमा पर यथार्थ में है क्या। उसे भी जानने की उत्सुकता है मगर सत्ता और विपक्ष दोनों को ही एक दूसरे पर आरोप लगाने से फुर्सत नहीं है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सामरिक दृष्टि से जो बातें नहीं बताई जानी चाहिए, उनको न बताया जाए मगर स्थिति का पता तो हरेक को हो।
दूसरा सवाल संसद का है। यदि संसद में ही जन हित के काम नहीं होंगे या जनता की वाजिब समस्याओं पर बात नहीं होगी तो फायदा क्या। पूरे देश का प्रतिनिधित्व संसद करती है, उसमें जन बोलता है मगर हर बार हंगामे की भेंट चढ़ जाती है सत्र की कार्यवाही। ये जन धन की भी क्षति है। इस हंगामे को रोक जन हित के काम तो होने ही चाहिए। ये तभी सम्भव है जब थोड़ा सरकार झुकेगी और थोड़ा विपक्ष।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार