पहले हिमाचल और अब कर्नाटक में मिली हार के बाद भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में बड़े फेरबदल की कार्य योजना बनाई है। गुजरात में सफल होने के बाद भाजपा ने हिमाचल व कर्नाटक में वही फार्मूला अपना क्षत्रपों के टिकट काटे, मगर जी तोड़ प्रयासों के बाद भी हार मिली। पीएम फेस सामने रख पूरी ताकत झोंकी मगर सफल नहीं हुए, कर्नाटक में तो पिछली बार से भी खराब प्रदर्शन हुआ। पीएम ने जिन सीट पर प्रचार किया उनमें केवल 44 फीसदी सफलता मिली। हिजाब, हलाल, मुस्लिम आरक्षण, बजरंग बली जैसे मुद्दों के बावजूद ध्रुवीकरण नहीं हुआ। इसी छांव में अब नई चुनावी रणनीति बनाई गई है। जिसमें राज्य के क्षत्रपों को शामिल किया गया है।
मोदी सरकार के 9 साल पूरे हो रहे हैं और इसी से भाजपा राज्यों व आम चुनाव का बड़े पैमाने पर आगाज कर रही है। सब बड़े नेताओं व क्षत्रपों को घर घर जाने का टारगेट दिया गया है। राजस्थान में वसुंधरा राजे को भी पन्ना प्रमुख बना परिवारों तक जाने का कहा गया है। ठीक इसी तरह छत्तीसगढ़, एमपी व तेलंगाना में भी राज्य के नेताओं को इस अभियान में जिम्मेवारी दी गई है। भाजपा दो राज्यों की हार व कांग्रेस के इतिहास से सबक लेकर नई चुनावी नीति बना रही है। पहले की नीति को काफी कुछ बदलने का प्रयास है।
9 साल पूरे होने पर भाजपा एक महीने तक पूरे देश में अलग अलग आयोजन कर सीधे वोटर तक पहुंचने का प्रयास करेगी। मंत्रियों, राज्य के क्षत्रपों को खास तौर पर सक्रिय किया जा रहा है। जिसका सबसे बड़ा ध्येय नेताओं के असंतोष तो दूर करना है ताकि कोई भी खुद को उपेक्षित न समझे। पहले कर्नाटक, अब छत्तीसगढ़ व एमपी में पार्टी के कई दिग्गज व नेता पार्टी छोड़ कांग्रेस में जा रहे है, इससे पार्टी नेतृत्त्व चिंतित है। कर्नाटक में शेट्टर, एमपी में दीपक जोशी, छत्तीसगढ़ में नन्दलाल सहाय का जाना बड़ी चिंता है। पार्टी को आगे इस तरह का नुकसान न हो, उसे ध्यान में रखकर ही राज्य के नेताओं को अहमियत दी जा रही है। इन दो राज्यों की हार से भाजपा को बड़ा शेड बैक लगा है, क्योंकि दक्षिण में अब किसी भी राज्य में उसकी सरकार नहीं है और न किसी दल के साथ वो गठबंधन के कारण सरकार में है। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा इसी कारण कमजोर हुआ है क्योंकि दक्षिण भारत भाजपा मुक्त हो गया है।
इसके अलावा बिहार में महागठबंधन, महाराष्ट्र में महाअगाडी, बंगाल में टीएमसी, झारखंड में गठबंधन, भाजपा को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। इसी कारण राज्य के क्षत्रपों को मुख्य धारा में लेकर भाजपा अगले आम चुनाव की तैयारी भी कर रही है। बदली राजनीतिक स्थितियों से अब ये स्पष्ट हो गया है कि आने वाले समय में हर राज्य में भाजपा के संगठन और सरकार में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। हाशिये पर जा रहे राज्य के नेताओं को भी तरजीह मिलेगी। कई नेताओं के सोये भाग्य जागेंगे। क्योंकि कांग्रेस कर्नाटक जीतने के बाद उत्साह में है और विपक्षी एकता के उसके प्रयास को भी शक्ति मिली है। ममता का नया बयान, केसीआर व अखिलेश का नरम व्यवहार इसका सबूत है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार