शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आज यानि आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन पितरों के तर्पण व श्राद्ध आदि का आखिरी दिन है। बता दें हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि ऋषि तर्पण से आरंभ होकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है। जिस दौरान प्रत्येक व्यक्ति अपने पितरों की पूजा करता है और उनके नाम से पिंडदान, श्राद्ध, उनका तर्पण करता है जिसमें ब्राह्मणों को भोजन करवाना अहम माना जाता है। इस बार की सर्वपित अमावस्या शनिवार यानि आज पड़ रही है।

इसके अलावा आज ही के दिन शनि अमावस्या भी मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में शनि अमावस्या का अधिक महत्व है। कहने का भाव है कि इस बार पितर शनि अमावस्या के दिन विदा हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि इससे पहले 1999 में इस तरह का संयोग बना था। कहा जाता है इस संयोग में पितरों की विदाई उनके वंशजों के लिए बहुत लाभकारी व सौभाग्यशाली मानी जाती है।

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सर्वपितृ अमावस्या आरंभ: 28 सितंबर 2019 को सुबह 3.46 बजे से
समाप्त: 28 सितंबर 2019 को रात 11.56 बजे तक
कुतुप मुहूर्त: सुबह 11.48 बजे से दोपहर 12.35 बजे तक
रोहिण मुहूर्त: दोपहर 12.35 बजे से 1.23 बजे तक
अपराह्न काल: दोपहर 1.23 बजे से 3.45 बजे तक।

तो आइए जानते हैं इस खास दिन कैसे करें शाद्ध-
दोपहर को करें श्राद्ध
हिंदू धर्म की मान्यताओं व श्राद्ध के नियम अनुसार पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन दोपहर के समय करवाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों में सुबह और शाम की बेला को देव कार्य के लिए बताया गया है और दोपहर का समय पितरों के लिए माना गया है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि दोपहर में भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए। तो अगर आप भी आज पितरों का तर्पण व श्राद्ध करने वाले हैं तो ये दोपहर के समय ही करें।

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दक्षिण है यम की दिशा
शास्त्रों की मानें तो दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितृलोक की स्थिति मानी जाती है, जिस यम की दिशा भी माना जाता है। इसलिए पितरों से संबंधित हर प्रकार का कार्य दक्षिण दिशा में ही किया जाता है। हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब दशरथ की मृत्यु हुई थी, तो भगवान राम ने स्वप्न में उन्हें दक्षिण दिशा की तरफ जाते हुए देखा था।

इस तरह बनाएं पिंड
सबसे पहले जान लें कि किसी वस्तु के गोलाकर रूप को ही पिंड कहा जाता है। मानव शरीर को भी पिंड माना जा सकता है बल्कि धरती को भी एक पिंड के ही रूप में माना गया है। हिंदू धर्म में निराकार की पूजा की बजाए साकार स्वरूप की पूजा को महत्व दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि इससे साधना करना आसान होता है। इसीलिए पितरों को भी पिंड रूप यानि पंच तत्वों में व्याप्त मानकर उनका पिंडदान किया जाता है।
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पिंडदान की विधि-
पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए चावल को पकाकर उसके ऊपर तिल, शहद, घी, दूध को मिलाकर एक गोला बनाएं, इसे पाक पिंडदान कहते हैं। दूसरा जौ के आटे का पिंड बनाकर दान करें। क्योंकि पिंड का संबंध चंद्रमा से माना जाता है इसलिए कहा जाता है कि पिंड चंद्रमा के माध्यम से पितरों को प्राप्त होता है।

पितरों की पूजा में करें इन फूलों का इस्तेमाल-
कहा जाता है पितरों की पूजा में सफ़ेद फूल का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि सफेद रंग सात्विकता का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि आत्मा का कोई रंग नहीं होता और जीवन के उस पार की दुनिया पारदर्शी होती है। इसके अलावा सफेद रंग चंद्रमा से संबंधित होता है, जो पितरों तक उनका अंश पहुंचाते हैं। इसलिए इनकी पूजा में सफ़ेद रंग के फूलों का प्रयोग आवश्यक माना जाता है। साथ ही शाम के समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके घर के बाहर किसी खुले स्थान में या छत पर एक दीप जलाकर पितरों को नमस्कार करें।

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दान करें ये चीज़ें-
काला तिल, उड़द, गुड़, नमक, छाता, जूता, वस्त्र, जौ इनमें से जो भी आपके लिए सुलभ हो, पितरों को याद करके किसी जरूरतमंद को दान करें। कहा जाता है इन चीजों से पितरों को सुख मिलता है।