प्रथम पोकरमल राजरानी गोयल स्मृति राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार उदयपुर की राजस्थानी साहित्यकार रीना मेनारिया को
बीकानेर, ( ओम एक्सप्रेस)मुक्ति संस्था, बीकानेर के तत्वावधान में प्रथम पोकरमल राजरानी गोयल स्मृति राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार उदयपुर निवासी राजस्थानी साहित्यकार रीना मेनारिया को रविवार को स्थानीय होटल राजमहल के सभागार में अर्पित किया गया । समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मदन केवलिया थें , कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त संभागीय आयुक्त ए एच गौरी एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद् और गृह विज्ञान विशेषज्ञ डॉ विमला डूॅकवाल थी।
कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम समन्वयक डॉ नरेश गोयल ने स्वागत भाषण करते हुए कहा कि समाज के लोगों का यह दायित्व है कि अपने समय के कलाकारों, साहित्यकारों एवं संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले महानुभावों का सम्मान करें, डॉ गोयल ने आगंतुकों का स्वागत किया ।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं मुक्ति संस्था के सचिव कवि – कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि गत वर्ष देश भर के राजस्थानी कथाकारों से पुरस्कार के लिए राजस्थानी भाषा में पुस्तकें आमंत्रित की गई थी जिसके तहत सोलह पुस्तकें प्राप्त हुई जो कि सभी अन्य भारतीय भाषाओं की कथा विधा के समकक्ष शिल्प एवं कथानक की दृष्टि में उम्दा थी उन्हीं में से नटणी री नौपत राजस्थानी उपन्यास का चयन किया गया, इस उपन्यास में एक कलाकार की कला और उसके जीवन की दास्तान कहती है, राजस्थानी के इस पुरस्कृत उपन्यास के माध्यम से सामाजिक ताने-बाने के साथ प्राचीन उम्दा समृद्ध परम्परा को ताजा करता है । जोशी ने बताया कि नटणी री नौपत राजस्थानी उपन्यास कलाकारों के जीवन संघर्षों की परतें खोलता है । जोशी ने कहा कि जब नई शिक्षा नीति में प्रादेशिक भाषाओं की बात को प्राथमिकता दी जाती तो भारत सरकार को संविधान की आठवीं अनुसूची में राजस्थानी भाषा को शामिल करना चाहिए, उन्होंने कहा कि इसके लिए राजस्थानी भाषा सभी पैमाने पर खरी उतरती है ।
विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त संभागीय आयुक्त ए.एच.गौरी ने कहा कि राजस्थानी भाषा प्रेम एवं अपनत्व की भाषा है । उन्होंने कहा कि समाज का यह उत्तरदायित्व है कि रचनाकारों, कलाकारों एवं संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को सम्मान दे। गौरी ने कहा कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शीघ्र ही शामिल किया जाना चाहिए ।
डाॅ. केवलिया ने कहा कि राजस्थानी भाषा प्रेम एवं अपनत्व की भाषा है, यह समाज में अपना विशिष्ट स्थान रखती है, राजस्थानी भाषा में बेहतरीन साहित्य लिखा जा रहा है जिसका उदाहरण नटणी री नौपत राजस्थानी उपन्यास है, केवलिया ने कहा कि राजस्थानी भाषा में नगद पुरस्कार की शुरुआत बीकानेर में होना इस बात को प्रमाणित करता है कि यह जन-जन की भाषा है ।
डाॅ विमला डूकवाल ने कहा कि महिला लेखन में भी राजस्थानी महिला साहित्यकार दूसरी भाषाओं के लेखकों से किसी भी स्तर पर कम नहीं है, उन्होंने कहा कि सामाजिक सरोकारों के विषयों पर महिला लेखन में राजस्थानी लेखिकाओं का बड़ा नाम है उसमें युवा लेखिका रीना मेनारिया को शामिल किया जा सकता है । डूकवाल ने मुक्ति संस्था का साधुवाद करते हुए कहा कि राजस्थानी साहित्य में पुरस्कार की परम्परा को कायम रखते हुए और विस्तार देना चाहिए ।
कार्यक्रम में अतिथियों ने रीना मेनारिया को ग्यारह हजार रुपये का नगद चेक, स्मृति चिन्ह , अभिनंदन पत्र ,शाल एवं श्री फल भेंट किया ।
पुरस्कृत-सम्मानित रीना मेनारिया ने अपनी रचना प्रक्रिया साँझा करते हुए मुक्ति संस्था एवं गोयल परिवार का आभार प्रकट किया ।
पुरस्कार समारोह में साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने पुरुस्कृत साहित्यकार रीना मेनारिया का परिचय देते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला । निर्णायक मंडल के संयोजक मधु आचार्य ने निर्णय प्रक्रिया को सबके साथ साझा की।
कार्यक्रम का संचालन कवयित्री-आलोचक डॉ रेणुका व्यास ने किया । अंत में मुक्ति संस्था के अध्यक्ष एडवोकेट हीरालाल हर्ष ने आभार प्रकट किया । इस अवसर पर जयचंद लाल सुखानी, एडवोकेट महेन्द्र जैन एवं पूर्ण चंद राखेचा ने भी सम्बोधित किया ।
कार्यक्रम में शरद केवलिया,महेन्द्र कुमार मेनारिया, कमल रंगा, एडवोकेट महेन्द्र जैन, डॉ नीरज दइया, चन्द्रशेखर जोशी, सरोज भाटी, नवनीत पाण्डे, जगदीश रतनू, अशफाक कादरी, नदीम अहमद नदीम, इसरार अहसन कादरी, अरविंद ऊभा,डॉ फारूक़ चौहान, जुगल पुरोहित, हजारी देवड़ा, डॉ गौरीशंकर प्रजापत, हेम शर्मा, मानमल सेठिया, पूर्ण चंद राखेचा, संजय पुरोहित, प्रोफ़ेसर पी .आर.भाटी, ओमप्रकाश मुधंडा , राजेश गोयल, माँगी लाल भद्रवाल, विष्णु शर्मा, हनुमान कच्चवा, कल्याण मल सुथार, सहित अनेक महानुभावों ने शिरकत की ।

बोलते हिंदी में हैं और मान्यता राजस्थानी की चाहते हैं
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प्रथम पोकरमल राजरानी गोयल स्मृति पुरस्कार विजेता कथाकार रीना मेनारिया को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं कि उन्होंने पुरस्कार ग्रहण करने के बाद अपनी बात राजस्थानी में रखी। मुझे बहुत अच्छा लगा कि उन्होंने अपने अंतर्मन को खोला और अपना लेखकीय संघर्ष अवधारणाएं बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए भाषा की क्षेत्रीयता से ऊपर उठ कर मानकीकरण की बात भी रखी। साथ ही आज मुझे बेहद आश्चर्य हुआ कि बाकी सारे वक्ताओं को पता नहीं क्यों हिंदी में बोलना उचित लगा। आदरणीय डॉ. मदन केवलिया ने मातृभाषा की बात की.. पंजाबी राजस्थानी का जोरदार तड़का लगाया। यहां स्मरण करना चाहता हूँ कि आदरणीय डॉ. अर्जुनदेव चारण का उदाहरण हमारे सामने है, वे राजस्थान में और जहां राजस्थानी जानने वाले हो वहां राजस्थानी में ही बोलते बतियाते हैं। यहां यह पोस्ट लिखना एक प्रकार का अनुरोध करना है कि राजस्थानी के कार्यक्रम में मंच के सभी गणमान्य अतिथियों, वक्ताओं और संयोजक को राजस्थानी भाषा में बोलना चाहिए। पहले हम खुद राजस्थानी को मान्यता दें फिर मान्यता की बात करें। डॉक्टर नीरज दइया