डाक्टर के रूप में उनका संकटकाल में घर बैठना या सुविधा के अभाव में घर से न निकलना उस शपथ का सीधा अपमान है जो उन्होंने चिकित्सा महाविद्यालय से निकलते समय ली थी | कोई “पत्नी के आग्रह” के कारण घर से नहीं निकलना चाहता है, तो कोई इसे “फोकट की कवायद” मान रहा है | इन सबको इंदौर में कोरोंना वायरस की घुसपैठ का पता था, कुछ ने तो केन्द्रीय रैपिड रिस्पांस टीम से गुपचुप मुलाकात भी की है |मुलाकात का क्या ? श्रेय लूटने का अलग ही मज़ा है |
वैसे किसी भी बीमारी का इनक्यूबेशन पीरियड छह दिन माना जाता है। इसका मतलब यह है कि वायरस से यह छह दिन पहले ही संक्रमित हो चुके थे इसलिए संभवत: यह मरीज ८ से ११ मार्च के बीच इंदौर में वायरस का संक्रमण हो गया था । इसी संक्रमण के खतरे के कारण प्रशासन ने जिले में २३ मार्च से तीन दिन का लॉकडाउन घोषित किया था। लेकिन कोरोनावायरस के मरीज मिलते ही २५ मार्च से शहरी सीमा में कर्फ्यू लगा दिया गया था। केंद्र सरकार ने अपनी रैपिड रिस्पांस टीम को पिछले हफ्ते शहर भेजा था। टीम में एम्स भोपाल से एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिजीत पखारे, माइक्रोबायलोजी विभाग से डॉ. आनंद कुमार मौर्य और डॉ. परमेश्वर सत्पथी शामिल थे। उन्होंने शहर के अस्पतालों और वायरोलॉजी लैब का निरीक्षण कर सरकार को रिपोर्ट सौंपी है। इंदौर में १ अप्रैल तक मिले पॉजिटिव केस के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। तब इस बीमारी के केवल ७५ मरीज मिले थे जिनमें ३८ मरीज ऐसे थे जिनमें कोई लक्षण नहीं थे। लेकिन पॉजिटिव मरीज के संपर्क में होने के कारण उनके सैंपल लिए गए थे। १० अप्रैल तक इस बीमारी के २४९ मरीज मिल चुके हैं जिनमें से २७ लोगों की मौत हो चुकी है।
सवाल फिर वहीँ खड़ा है, इंदौर में यह “नुगरापन” क्यों आया ? टाटपट्टी बाखल की हरकत पर राहत इन्दौरी शर्मिंदगी महसूस कर चुके हैं, इस “नुगरेपन” पर कौन करेगा ?