अब का मध्यप्रदेश हो या तब का [अविभाजित] मध्यप्रदेश, इंदौर की कोई मिसाल नहीं है | किसी को भी अपना बनाने में कोई सानी नहीं रखने वाला इंदौर आज मौत का घर हो गया है | यह दुष्काल विश्वव्यापी है, पर इंदौर में इन दिनों एक नई चीज उभर कर सामने आई है ,जिससे इंदौर पहले परहेज बरतता था | यह है “नुगरापन” |कोरोंना वायरस से इंदौर में ३० मौतें हो चुकी है |२४९ संक्रमित अस्पतालों में हैं, जिला प्रशासन ने शहर के अस्पतालों तीन श्रेणी में बाँट दिया हैं |लाल, पीले और हरे,ये बंटवारा कोविड -१९ से लड़ने की अस्पताल की क्षमता का है |अस्पताल हैं, सुविधा हैं पर डाक्टर और चिकित्सा कर्मी कम है | कहने को इंदौर में ६००० से ज्यादा निजी चिकित्सक है | इनमें से कई तो वर्षों से जमे हैं, इंदौर ने उन्हें वैभवशाली बनाया है, जीवन भर सरकारी अस्पताल से वेतन या निजी क्षेत्र से मनमानी फ़ीस भी ली है | आज ये सब घर बैठे हैं | इन्ही को आज इंदौर के लोग “नुगरे” कह रहे हैं |
डाक्टर के रूप में उनका संकटकाल में घर बैठना या सुविधा के अभाव में घर से न निकलना उस शपथ का सीधा अपमान है जो उन्होंने चिकित्सा महाविद्यालय से निकलते समय ली थी | कोई “पत्नी के आग्रह” के कारण घर से नहीं निकलना चाहता है, तो कोई इसे “फोकट की कवायद” मान रहा है | इन सबको इंदौर में कोरोंना वायरस की घुसपैठ का पता था, कुछ ने तो केन्द्रीय रैपिड रिस्पांस टीम से गुपचुप मुलाकात भी की है |मुलाकात का क्या ? श्रेय लूटने का अलग ही मज़ा है |

वैसे केंद्र सरकार की रैपिड रिस्पांस टीम की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि लॉकडाउन से १५ दिन पहले ही शहर में कोरोनावायरस की घुसपैठ हो चुकी थी। कोरोनावायरस के पहले छह मरीज ८ से ११ मार्च के बीच ही इस महामारी की चपेट में आ चुके थे लेकिन इनमें १४ से १८ मार्च के बीच बीमारी के लक्षण सामने आए।

वैसे किसी भी बीमारी का इनक्यूबेशन पीरियड छह दिन माना जाता है। इसका मतलब यह है कि वायरस से यह छह दिन पहले ही संक्रमित हो चुके थे इसलिए संभवत: यह मरीज ८ से ११ मार्च के बीच इंदौर में वायरस का संक्रमण हो गया था । इसी संक्रमण के खतरे के कारण प्रशासन ने जिले में २३ मार्च से तीन दिन का लॉकडाउन घोषित किया था। लेकिन कोरोनावायरस के मरीज मिलते ही २५ मार्च से शहरी सीमा में कर्फ्यू लगा दिया गया था। केंद्र सरकार ने अपनी रैपिड रिस्पांस टीम को पिछले हफ्ते शहर भेजा था। टीम में एम्स भोपाल से एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिजीत पखारे, माइक्रोबायलोजी विभाग से डॉ. आनंद कुमार मौर्य और डॉ. परमेश्वर सत्पथी शामिल थे। उन्होंने शहर के अस्पतालों और वायरोलॉजी लैब का निरीक्षण कर सरकार को रिपोर्ट सौंपी है। इंदौर में १ अप्रैल तक मिले पॉजिटिव केस के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। तब इस बीमारी के केवल ७५ मरीज मिले थे जिनमें ३८ मरीज ऐसे थे जिनमें कोई लक्षण नहीं थे। लेकिन पॉजिटिव मरीज के संपर्क में होने के कारण उनके सैंपल लिए गए थे। १० अप्रैल तक इस बीमारी के २४९ मरीज मिल चुके हैं जिनमें से २७ लोगों की मौत हो चुकी है।

इंदौर में एलोपैथिक पद्धति से चिकित्सा करने वाले ६ हजार चिकित्सकों के अलावा अन्य पद्धतियों से चिकित्सा करने वाले प्रमाणिक और वैधानिक चिकित्सक भी हैं | इन्ही में इंदौर के शासकीय दंत चिकित्सा महाविध्यालय की टीम भी है, जिसकी इस दुष्काल में की गई सेवा की सराहना यह रिपोर्ट और इंदौर के लोग कर रहे हैं |
सवाल फिर वहीँ खड़ा है, इंदौर में यह “नुगरापन” क्यों आया ? टाटपट्टी बाखल की हरकत पर राहत इन्दौरी शर्मिंदगी महसूस कर चुके हैं, इस “नुगरेपन” पर कौन करेगा ?