• हमारी जीवन परियोजना की फैक्ट फाइल

जयपुर, 2 मई : भारतीय स्किल डेवलपमेंट यूनिवर्सिटी (बीएसडीयू) इंडस्ट्री की जरूरतों के हिसाब से युवाओं के कौशल विकास और पाठ्यक्रम में बदलाव तथा उसे स्वीकार करने के लिए जानी जाती है। बीएसडीयू ने देशव्यापी लाॅकडाउन के वर्तमान संकटपूर्ण दौर में अपने छात्रों को लाभान्वित करने के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया। यह वेबिनार संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) से जुडे़ अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ डाॅ डी पी शर्मा द्वारा ‘रिसर्च ओरिएंटेशन इन प्रोजेक्ट वर्सेज प्रोजेक्ट ओरिएंटेशन इन रिसर्च‘ विषय पर आयोजित किया गया।

डाॅ डीपी शर्मा प्रसिद्ध शिक्षाविद, लेखक, शोधकर्ता और पुनर्वास तकनीक विशेषज्ञ हंतथा बहुत अच्छे वक्ता और रणनीतिक प्रेरक भी हैं। वे अब तक 47 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरसकार प्राप्त कर चुके हैं और भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मानों में से ‘सरदार रत्न लाइफ टाइम अचीवमेंट इंटरनेशनल अवार्ड 2015‘ से भी सम्मानित हो चुके हैं। डाॅ शर्मा मूल रूप से राजस्थान के छोटे शहर धौलपुर से हैं और वे मानते हैं कि ‘प्रतिभाएं सिर्फ शहरों में ही पैदा या विकसित नहीं हो सकती, बल्कि प्रतिभाएं ग्रामीण क्षेत्रों में भी पैदा हो सकती हैं।‘

प्रोफेसर डाॅ शर्मा ने अपने सत्र में एक व्यक्ति की जिंदगी की तुलना उसके द्वारा जीवन में किए जाने वाले प्रोजेक्ट्स से की, क्योंकि हमारी जिंदगी जन्मतिथि और मृत्यु तिथि के बीच झूलती रहती है। जीवन स्थाई नहीं है और जैसे व्यापार या विज्ञान में प्रोजेक्ट को परिभाषित किया जाता है, यह भी एक अस्थाई काम या प्रयास ही है। जीवन भी अस्थाई है और इसके एक निश्चित शुरूआती तथा अंतिम बिंदु है। हमारा एक जीवन चक्र है, इसी तरह प्रोजेक्ट को भी एक निश्चित समय में पूरा करना होता है।

उन्होंने कहा, ‘‘एक व्यक्ति के जीवन में सबसे अहम बात यह होती है कि क्या वह अपने जीवन को उद्देश्यपूण, अर्थपूर्ण या लाभदायक बना पाया, क्योंकि भगवान ने हमें देखने, सुनने, सोचने और चर्चा करने की क्षमता दी है।‘‘

उन्होंने बहुत सुुंदर ढंग से यह बताया कि हमें मिले हुए अवसरों का बेहतर उपयोग कर सकते हंै। हमे यह काम अपने अपने धर्म, कर्तव्य, जिम्मेदारी और विशेषाधिकार के तौर पर करना चाहिए। लेकिन हम सिर्फ अपने विशेषाधिकार पर ध्यान देते हंै, अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को भूल जाते हंै।

उन्होंने कहा कि हमें अपना जीवन धर्म के अनुसार जीना चाहिए, क्योंकि धर्म ही हमें हमारे जीवन, हमारे प्रोजेक्ट और हमारे शोध को बेहतर ढंग से दिशा दे सकता है। उन्होंने इन तीनो को आपस में जोड़ने का प्रयास किया, क्योंकि आज वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को चुनौती दे रखी है। उन्होंने कहा कि यह वह समय है जब हमें हमारे जीवन, प्रोजेक्ट या शोध के बारे में नए ढंग से सोचने, विश्लेषण करने और काम करने की जरूरत है।

उन्होंने अनुभवजन्य ज्ञान को प्रयोगात्मक ज्ञान से जोड़ने तथा प्राचीन ज्ञान को आधुनिक ज्ञान से जोड़ने पर भी जोर दिया।

उन्होने कहा कि नोवल कोरोना वायरस ने हमें हमारे पूरे दर्शन, रणनीति और कार्यसंस्कृति के बारे मंें फिर से सोचने और इसे बदलने का मौका दिया है। हमें हर तरह के नए विचारों को आने देना चाहिए, जैसा भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने कहा कि चाहे जीवन या कोई परियोजना या शोध- सभी अस्थाई और नष्ट होने वाले हंै।

उन्होंने अपने ज्ञानवर्धक उद्बोधन में कहा कि कोई भी शोध पूरा होता है तो उसके बाद नया शोध होता है जो पुराने शोध को गलत ठहरा देता है। प्रकृति में कुछ भी स्थायी नहीं, सिवाय बदलाव के। समय के हिसाब से हर चीज बदल जाती है।

उन्होंने देश के युवाओ को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें अपार क्षमताओं, संघर्षशीलता और विश्लेषण करने वाला वास्तविक सितारा बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी प्रोजेक्ट को शानदार बनाने के लिए इसे स्मार्ट ढंग से करते हुए इसकी वास्तविकताओं को परिभाषित किया जाना चाहिए और जोखिम विश्लेषण भी किया जाना चाहिए। इसके लिए डाॅ शर्मा ने स्मार्ट को परिभाषित करते हुए कहा कि स्मार्ट में एस का मतलब है स्पेसेफिक, एम का अर्थ है मेजरेबल, ए का अर्थ है अचीवेबल, आर का अर्थ है रियलिस्टिक तथा टी का अर्थ है टाइम बेयर्ड।

अंत में डाॅ शर्मा ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि इस युनिवर्स में स्थाई कुछ भी नहीं है और मशीनों पर मानव की पूर्ण निर्भरता उसके लिए हानिकारक हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘मानव पूरी तरह मशीनों पर निर्भर है, इसलिए आने वाले समय में जीवन बहुत कठिन हो सकता है। मशीनों को बेचा जा सकता है मानव को नहीं। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए जीवन की परिस्थितियों का शोध जरूरी है और शोध सिर्फ एक बुद्धिमत्तापूर्ण प्रश्नावली और खोज है, जिससे किसी समस्या की शुरूआत और इसके समाधान का रास्ता मिलता है।‘‘

डाॅ शर्मा ने अंत में कहा, ‘‘अपनी भावना को सोच में बदलिए। काम को आदत बनाइए, आदत को चरित्र बनाइए और चरित्र को अपनी नियति बनाइए। जीवन का प्रोजेक्ट भावना से शुरू होता है और नियति पर खत्म होता है।‘‘

बीएसडीयू के उपकुलपति प्रो अचिंत्य चैधरी ने कहा, ‘‘किसी भी प्रोजेक्ट या जीवन की घटनाओं के लिए हमें रचनात्मक होना जरूरी हैं और हमें परिस्थितियों के तथ्य जानने की उत्सुकता होनी चाहिए।‘‘

स्कूल आॅफ एंटरप्रोन्योरशिप स्किल्स के प्रिंसीपल प्रो. डाॅ. रवि गोयल ने कहा, ‘‘इस कठिन समय में हम हमारे छात्रों को प्रेरित करने के लिए यूनिवर्सिटी की नियमित क्लासेज की कमी आज जैसे प्रेरक सत्रों से पूरी कर रहे हैं, क्योंकि आज के युवा ही भविष्य के योद्धा हैं।‘‘

भारतीय स्किल डेवलपमेंट यूनिवर्सिटी (बीएसडीयू) के बारे मेंः
2016 में स्थापित भारतीय स्किल डेवलपमेंट यूनिवर्सिटी (बीएसडीयू) भारत का पहला अनूठा कौशल विकास विश्वविद्यालय है, जिसे भारतीय युवाओं की प्रतिभाओं के विकास के लिए अवसर, स्थान और गुंजाइश बनाकर कौशल विकास के क्षेत्र में वैश्विक उत्कृष्टता पैदा करने की दृष्टि से उन्हें वैश्विक स्तर पर फिट बनाने के लिए कायम किया गया था। डॉ. राजेंद्र के जोशी और उनकी पत्नी श्रीमती उर्सुला जोशी के नेतृत्व और विचार प्रक्रिया के तहत नौकरी प्रशिक्षण और शिक्षा के लिए बीएसडीयू ने ‘स्विस-ड्यूल-सिस्टम’ स्विट्जरलैंड की तर्ज पर इसे स्थापित किया है। बीएसडीयू राजेंद्र उर्सुला जोशी चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत एक शिक्षा उपक्रम है और राजेंद्र और उर्सुला जोशी (आरयूजे) समूह ने इस विश्वविद्यालय को 2020 के आखिर तक 36 कौशल स्कूलों को स्थापित करने के लिए 500 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है।

विचार, कौशल विकास की स्विस प्रणाली को भारत में लाने का था, इस तरह भारत में आधुनिक कौशल विकास के जनक डॉ. राजेंद्र जोशी और उनकी पत्नी श्रीमती उर्सुला जोशी ने 2006 में स्विट्जरलैंड के विलेन में ’राजेंद्र एंड उर्सुला जोशी फाउंडेशन’ का गठन करते हुए इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। बीएसडीयू का उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाली कौशल शिक्षा को बढ़ावा देना और सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, एडवांस डिप्लोमा और स्नातक, स्नातकोत्तर, डॉक्टरेट और विभिन्न कौशल के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए पोस्ट-डॉक्टरेट की डिग्री देते देते हुए ज्ञान की उन्नति और प्रसार करना है।