–गिरिराज खैरीवाल- भूखे को भोजन देना हमारी पुरातन संस्कृति तो है ही मानवीयता भी है। यह एक अच्छी बात है कि छोटी काशी के नाम से जाने वाली धर्म नगरी बीकानेर में ऐसे व्यक्ति लगभग हर गली मोहल्ले में मिल जाएंगे। ऐसे समाज सेवियों व भामशाहों के त्याग, समर्पण व उत्साह को देखकर अनेक लोग प्रेरित होते हैं। मुझ में भी इन लोगों से समाज की सेवा का जोश पनपता है। ऐसे सभी समाजसेवियों की सेवा भावनाओं का सम्मान करते हुए
मैं उन सब से विनम्र अनुरोध करता हूं कि कृपया मेरी बात को अदरवाईज न लें। वक्त की नजाकत को समझने की कोशिश जरूर करें। मैं इस संबंध में प्रशासन का ध्या

न भी आकर्षित करना
चाहता हूं।
आज बीकानेर के हर गली मुहल्ले में गरीबों को भोजन देने के लिए लंगर जैसी स्थितियां कमोबेश देखने को मिल जाएगी। लेकिन लॉक डाऊन के दौरान यह सब पूरी तरह से अनुचित तो है ही रोज रोज किसी के घर जाकर फूड पैकेट देना संक्रमण के दौरान कदापि सही नहीं है। जब व्यक्ति को चौबीसों घंटे घर में ही रहना है तो उसे सूखा राशन उपलब्ध कराने की व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ है। हर जरूरतमंद को कम से कम सात आठ दिन की आवश्यक सामग्री एक साथ ही दे दी जानी चाहिए। यह हर दृष्टि से उपयुक्त रहेगा। क्योंकि प्रत्येक घर में खाना पकाने के पर्याप्त संसाधन हैं। इस तरह की व्यवस्था से न तो अन्न का अनादर होगा और न ही कोई भूखा रहेगा। न संक्रमण फैलने का डर ही रहेगा। न ही गंदगी फैलेगी। न ही बेवजह लोग लॉक डाऊन का उल्लंघन करेंगे।
एक महत्वपूर्ण बात और कि जैसे ही फूड पैकेट किसी जरूरतमंद के पास पहुंचता है, 15 मिनट से कम समय में उसे चट कर जाता है और उनमें से अधिकांश लोग आ जाते हैं अपने घर की देहरी के पास या अपने गली मोहल्ले में निकल जाते हैं।

एक निवेदन उन लोगों से भी है जो कि जरूरतमंदों के लिए किए गए प्रबंध का नाजायज़ फायदा ले रहे हैं। आप यदि किसी भूखे को भोजन नहीं दे सकते हैं तो कम से कम उसके हक का भोजन तो मत छीनो। मैं कहना यह चाहता हूं कि जरुरतमंद तक व्यवस्था पहुंचे, ऐसे प्रयास होने की अभी भी अत्यन्त आवश्यकता है।
बात यह भी गौरतलब की जानी चाहिए, हालांकि यह जरूरी नहीं है कि सभी संस्थाओं में ऐसा होता है लेकिन एक संस्था द्वारा बनाए जा रहे खाने की विडियो में देखा कि जितना तेल सौ किलो आटे की पूरियां बनाने के लिए लगना चाहिए, उतने तेल में ढाई क्विंटल आटे की पूरियां निकाली जा रही है। यह सीधा सीधा बीमारीयों को निमंत्रण है। इस तरह के खाद्य पदार्थ को खाने वाले को कोरोना संक्रमण से ज्यादा खतरा अन्य बीमारियों का है।

जिन जगहों पर ये खाद्य सामग्री बन रही हैं वहां किसी भी तरह की सोशल डिस्टेंस का ध्यान नहीं रखा जा सकता। वहां साफ सफाई भी नहीं रखी जा सकती। अतः सभी से निवेदन है कि पूरे व्यवस्थित रूप में शहर के प्रत्येक जरूरतमंद तक सूखे राशन सामग्री पहुंचाने के सार्थक प्रयास किए जाएंगे तभी यह लॉक डाऊन की व्यवस्था सफल सिद्ध हो सकेगी और कोई भी भूखा भी नहीं रहेगा।