दिल्ली । किसानों के प्रति सरकार की नीतियों एवं किसान संघटन द्वारा आंदोलन से किसानों का भला होने वाला नहीं है । न्यायधर्मसभा के संस्थापक एवं 111 न्यायप्रस्तावों के जनक श्री अरविंद अंकुर जी का कहना है कि राष्ट्र में न्यायशील व्यवस्था होने पर देश के सभी नागरिकों के हिताधिकार सुरक्षित हो जाते हैं । न्यायशील व्यवस्था स्थापित करने के लिए ही न्यायधर्मसभा के 111 न्यायप्रस्ताव हैं । सरकार को ये प्रस्ताव भेजे हुए हैं । आवश्यकता है इन्हें पूर्णरूप से लागू करने की । न्यायशील व्यवस्था होने पर किसी प्रकार के धरना,प्रदर्शन,विरोध,आंदोलन की आवश्यकता नहीं रहती है । वास्तव में देश के सभी नागरिकों को चाहे कृषक,वणिक, राज्यकर्मी और नेतृत्वकर्ता के हिताधिकार सुरक्षित होने चाहिए ।
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी चंद्रसेन शर्मा जी ने कहा देश के सभी नागरिकों को जीवनयापन के लिए एक संसाधन की आवश्यकता होती है । किसानों को भी प्रतिपरिवार 5 एकड़ कृषिभूमि का प्रावधान हो । भूमिहीन किसानों को प्रतिपरिवार 5 एकड़ तक अहस्तांतरणीय कृषिभूमि सरकार द्वारा सुलभ हो ।
जानकारी दी कि न्यायधर्मसभा द्वारा किसानों के हितलाभ भी सरकार को भेजे हुए हैं । जो कि इस प्रकार हैं –
किसानों के प्रमुख हितलाभ
1. कृषिकों के लिए प्रतिपरिवार एक कर्म, एक पद, एक सम्पदा धारण करने का अधिकार
परिवारप्रमुख की पात्रता के अनुरूप कृषिक्षेत्र में सुलभ होगा। भूमिहीन किसानों को प्रतिपरिवार 5 एकड़ तक अहस्तांतरणीय कृषिभूमि सरकार द्वारा सुलभ होगी। परिवार
का अभिप्राय पति-पत्नी और उनके अवयस्क बच्चों एवं आश्रितों से होगा। प्राथमिक आयु के 25 वर्श तक अवयस्कता मानी जाएगी।
2. जिन किसानों के पास 5 एकड़ की सीमा से न्यून कृषिभूमि होगी, उस न्यून मात्रा की पूर्ति सरकार द्वारा करी जाएगी।
3. किसानों के पास 5 एकड़ की अधिकतम सीमा तक कृषिभूमि की अहस्तांतरणीयता का न्यायसंगत नियम उन्हें बेरोजगारी और गरीबी से बचाए रखने में समर्थ होगा। कृषिकर्म में असफल होने पर उन्हें दूशित माना जाएगा, तथा जीवनयापन के लिए आपराधिक कर्म
(भिक्षा, चोरी आदि) करने पर उन्हें समाज से बहिश्कृत कर दिया जाएगा।
4. जिन किसानों के पास प्रतिपरिवार 5 एकड़ की सीमा से अधिक कृषिभूमि होगी, उस अतिरिक्त भूमि पर उस कृषकपरिवार का ऐच्छिक एवं स्वतन्त्र स्वामित्व होगा। अतिरिक्त भूमि को धारित अथवा हस्तांतरित करने का अधिकार किसानों को प्राप्त होगा।
5. प्रतिपरिवार 5 एकड़ की निर्धारित न्यूनतम कृषिभूमि सीमा से अधिक कृषिभूमि हस्तांतरणीय स्वामित्व वाली होगी। किसान द्वारा उस अतिरिक्त भूमि को स्वेच्छापूर्वक
धारित अथवा बिक्रय, दान, उपहार आदि के रूप में किसी अन्य को भी हस्तांतरित किया जा सकेगा।
6. अक्षय जीविकाकोष की स्थापना द्वारा कृषकों के लिए
खेती, उद्यान, पषुपालन हेतु आवष्यक भूमि, भवन, यन्त्र, उपकरण, पौध, पशु, नगदी आदि संसाधनों की प्राप्ति के लिए निःशुल्क एवं व्याजमुक्त सरल उधारी प्रदान करनेवाली
बैंकिंग सेवा समुचित रूप से सुलभ होगी। यह उधारी स्वैच्छिक किश्तों द्वारा चुकता होने पर उसी राशि तक पुनः प्राप्त हो सकेगी। इसके अतिरिक्त प्रत्याभूत लाभांषी ऋण प्रदान
करनेवाली बैंकिंग सेवा भी सुलभ होगी।
7. कृषि उद्यमों का न्यायसंगत स्वरूप त्रिकोणीय होगा, जिसमें उत्पादन के तीनों साधनों श्रम,
पूँजी, सुविधा को समान रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाएगा। तदनुसार प्रत्येक कृषि उद्यम पर
तीन पक्षों का समान स्वामित्व होगा तथा उत्पादन का तीन समान भागों में विभाजन होगा।
8. कृषि उद्यम द्वारा उत्पादन के तृतीयांष पर श्रमिक का स्वामित्व, तृतीयांष पर पूँजीपति
का स्वामित्व एवं तृतीयांष पर सरकार का स्वामित्व प्रतिष्ठित होगा।
9. कृषि के किसी भी संसाधन पर कोई राजस्व अथवा टैक्स का आरोपण नहीं होगा। केवल उत्पादन के तृतीयांष को ही राजस्व के रूप में स्वीकार किया जाएगा। यह राजस्व ही
राजकोश में जमा होगा।
10.राज्य की ओर से कृषकों को एक निर्धारित समुचित सीमा तक समस्त संसाधन एवं सुविधाएँ
सुलभ करायी जाएँगी। इन्हीं संसाधनों एवं सुविधाओं की आपूर्ति के लिए ही राजस्व की वसूली होगी। यदि सरकार कृषकपरिवार को विद्या, जीविका, सुविधा, संरक्षण प्रदान नहीं
करती, तो उसे कृषकों से इस राजस्व की प्राप्ति का कोई न्यायोचित अधिकार नहीं होगा।