– हेम शर्मा – ओम एक्सप्रेस

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी देखते ही देखते राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए चुनौती बन गई है। मोदी और अमित शाह माने या ना माने दीदी ने उनको ही नहीं पूरी भाजपा और केंद्र सरकार को आईना दिखा दिया है। यह सब इतनी मजबूती से किया है कि भाजपा और राजनीतिक दल देखते रह गए। अमित शाह के साम, दाम, दंड भेद के जो भी दावपेंच थे धरे रह गए । ममता ने भाजपा की राज्यों में बढ़त पर कील ठोक दी औऱ भाजपा के सामने डटी रही। अब ममता केंद्र के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश में अन्य विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों से सम्पर्क साध रही है।

चुनाव के दरम्यान जो तृणमूल ने किया वो भावी लोकतंत्र के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है न ही प.बंगाल में भाजपा ने कोई राजनीतिक साख बढाने वाला काम किया। दीदी के राजनीतिक क्रियाकलापों की भाजपा और भाजपा की तृणमूल समेत अन्य विपक्ष आपस मे बखियां उधेड़ हैं। इससे दोनों की तस्वीर जनता के सामने हैं। यह सच है कि भाजपा ने वे ही राजनीतिक रास्ते अख्तियार किए हैं जिनकी कभी उनकी पार्टी के सिद्धांतवादी नेता आलोचना करते रहे हैं। तृणमूल के सामने भाजपा सभी कोशिशों के बावजूद टिक क्यों नहीं पाई यह विश्लेषण का मुद्दा है।। ममता बनर्जी ने भाजपा को मात ही नहीं दी,बल्कि अब हर स्तर पर आईना दिखा रही है। ममता का यह कहना कि स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर किसानों,उद्योगों समेत सभी क्षेत्रों में भाजपा का शासन अनर्थकारी रहा है। हम प्राकृतिक और राजनीतिक दोनों तरह की आपदा का सामना कर रहे हैं।। भारतीय किसान यूनियन को भी ममता ने समर्थन दिया है। ममता भाजपा के खिलाफ अपनी राजनीतिक लड़ाई को उत्तर भारत मे ले जाना चाहती है।

वहीं तीन कृषि कानूनों के मामले में भी केंद्र के खिलाफ है। भाजपा को कोई वोट नहीं दें, सत्ता से नरेंद्र मोदी को हटाना है – इस मन्तव्य से यूपी चुनाव ममता करिश्मा करना चाहती है। संघीय ढांचे के खिलाफ मुद्दा, आपदा प्रबंन्धन पर प्रधानमंत्री की बैठक का बहिष्कार, मुख्य सचिव का मामला, कोविड प्रमाण पत्र में मोदी की जगह खुद का फोटो लगना टकराहट के इन बिंदुओं से ममता बहुत आगे निकल आई है। अगले लोकसभा चुनाव में कहीं मोदी के सामने ममता चुनोती बनकर खड़ी नहीं हो जाए ?