• करणीदानसिंह राजपूत

सूरतगढ़।राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के आने की बज रही है कांग्रेस के जाने की बज रही है वहीं जनता की ओर से नये चेहरों की मांग उठ रही है। 

भाजपा में भी यह मांग जोरों पर है कि बार बार घूमफिर कर आते रहे चेहरों के बजाय नये चेहरों को टिकट दिया जाए।

सूरतगढ़ में भी समय की मांग 2020 से बार बार उठने लगी है कि पुराने चेहरों के बजाय नये चेहरों में भावी विधायक खोजा जाए। 

सूरतगढ़ में वर्तमान में भाजपा की ओर से रामप्रताप कासनिया विधायक हैं। ये करीब 40 साल से चुनाव लड़ते रहे हैं। कई बार विधायक और एक बार राज्यमंत्री तक बन चुके हैं। पहले पीलीबंगा से चुनाव लड़ते रहे और विधायक बनते रहे। पीलीबंगा सीट 2008 में जब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई तब कासनिया सूरतगढ़ में भाजपा से खड़े हुए और कांग्रेस के गंगाजल मील से पराजित हुए। ( 2003 में पीलीबंगा से भाजपा की टिकट गंगाजल मील ले आए। कासनिया नाराज होकर निर्दलीय खडे़ हुए और जीत भी गए।)

सन 2003 में सूरतगढ़ से अशोकनागपाल ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। नागपाल विधायक बने। नागपाल ने कांग्रेस की श्रीमती विजयलक्ष्मी बिश्नोई को पराजित किया। 

सन 2008 में सूरतगढ़ सीट सामान्य रही। नागपाल ने अपनी स्थिति को समझा होगा तथा भाजपा से दुबारा टिकट नहीं मांगी। 

  • 2008 में  गंगाजल मील ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया और कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा। 2008 में रामप्रताप कासनिया को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया। राजेंद्र सिंह भादू भी पीलीबंगा से निर्दलीय लड़ेथे वे भी सूरतगढ़ से 2008 में निर्दलीय लड़े। 2008 के चुनाव में मील जीत गए। भाजपा के कासनिया और निर्दलीय राजेंद्र सिंह भादू हार गए। राजेंद्र सिंह भादू ने इसके बाद भाजपा की सदस्यता ग्रहण करली। राजेंद्र सिंह भादू को मिले वोटों को देख सन 2013 में भाजपा ने भादू को टिकट दे दी। भादू बहुत अच्छे वोटों से जीते और कांग्रेस के गंगाजल मील को हराया। 

2018 के चुनाव में रामप्रताप कासनिया ने चेतावनी पूर्ण शक्ति प्रदर्शन करके भाजपा की टिकट प्राप्त कर ली। राजेंद्र सिंह भादू ने टिकट तो मांगी थी मगर पावर नहीं दिखला पाए। 

  • अशोकनागपाल 2003 से 2008 तक विधायक रहे। विधायक काल अधिक लोकप्रिय नहीं बना पाए। इसके बाल तीन चुनाव हो गए। नागपाल को भाजपा श्री गंगानगर का जिलाध्यक्ष बनाया गया और वहां भी लोकप्रिय नहीं हो सके। उल्टा आफत आई। आरोप लगा और जिला अध्यक्ष पद छीन लिया गया। भाजपा से निष्कासित भी कर दिए गए। इसके बाद कांग्रेस में जाने तक की बातें हो गई। परिस्थितियों ने करवट ली और 2018 के चुनाव में वोटिंग से पहले अमित शाह से वीडियो वार्ता हुई। 

भाजपा में तो ले लिए गए लेकिन जन संपर्क 2008 से लेकर अब मई 2022 तक कुछ भी प्रदर्शित नहीं हुआ। सार्वजनिक रूप में जो लोकप्रियता टिकट के लिए पावरफुल होनी चाहिए वह लोग नहीं मान रहे। भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य हैं। अब कुछ समय से सार्वजनिक मंचों पर और प्रदर्शन आदि में दिखाई देने लगे हैं। लोगों का काम वाक्य ऐसा है जिसमें तीनों यानि कि कासनिया भादू और नागपाल टिकट के लिए प्राथमिकता वाली जगह 

नहीं बना पाए हैं। कासनिया ने तो 2018 चुनाव से पहले टिकट के लिए शक्ति प्रदर्शन किया था तब आमजन के बीच घोषणा की थी कि इसके बाद चुनाव नहीं लडेंगे। आखिरी चुनाव बताया था। भादू सार्वजनिक रूप में काम तो करते दिखे मगर टिकट की पावर नहीं दिख रही। नागपाल 2003 से 2008 तक विधायक रहे। विधायक काल में लोकप्रिय नहीं हुए और इसके बाद भी कुछ नहीं। इन तीनों चेहरों को जनता परख चुकी है और अब आगे 2023 के चुनाव में इनके लिए घर घर जाकर वोट मांगने की ईच्छुक नहीं लगती।

भारतीय जनता पार्टी में लगातार नये चेहरों की मांग उठ रही है। ऐसे में इन तीनों को ही टिकट नहीं मांगने की घोषणा करके नये चेहरों के चुनने के लिए पार्टी को खुला रास्ता और सहयोग देने की अगुवाई करनी चाहिए।

  • यही नये चेहरे की मांग श्री गंगानगर संसदीय क्षेत्र के लिए भी उठ रही है। अनेक बार सांसद बन चुके वर्तमान सांसद निहालचंद मेघवाल को अब जनता टिकट के लिए सही नहीं मानती। 2019 के चुनाव के बाद से निहाल चंद लोकप्रियता कायम नहीं रख पाए हैं। ऐसा लोग मानते हैं। निहालचंद को भी नये चेहरों के लिए टिकट न मांगने की घोषणा कर देनी चाहिए। 

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