लॉक डाउन के नाम पर लोगों को घरों में जबरन कैद करना कानून सम्मत है ? क्या लॉक डाउन संविधान में प्रदत्त आजादी का स्पस्ट उल्लंघन नही है ? आखिर एक साथ समूचे देश के नागरिकों को कारोबार आदि से महरूम कर कैदियों की मानिंद अनेक दिनों तक घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी लगाना हिटलरशाही नही है ?
क्या एकाएक प्रधानमंत्री लॉक डाउन की घोषणा कर लोगों को घरों के भीतर रहने को बाध्य कर सकते है ? क्या लॉक डाउन लागू करने का आदेश आपातकाल की फोटोस्टेट नही है ? ये कुछ ऐसे सवाल है जो देश के अनेक नागरिकों के दिमाग मे अवश्य कौंध रहे होंगे । निश्चय ही आप भी अवश्य जानना चाहेंगे इन सवालों का जवाब ।
यद्यपि महामारी अधिनियम, 1897 के अंतर्गत भयंकर वैश्विक प्राकतिक महामारी के दौरान सरकार को कुछ अधिकार हासिल है । लेकिन यह कानून इतना प्रभावी और विस्तृत नही है । इसलिए गुजरात मे आई बाढ़ के बाद देश मे प्रकृत्तिक आपदा के लिए कानून बनाने की आवश्यकता महसूस हुई । इस तरह आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 लागू हुआ । इस अधिनियम को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने के लिए प्रकृत्तिक आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन हुआ जो औपचारिक रूप से 27 सितम्बर, 2006 को अस्तित्व में आया । प्रधानमंत्री प्राधिकरण का अध्यक्ष होता है तथा 9 अन्य सदस्य होते है जिन्हें मंत्री पद की सुविधा प्राप्त होती है ।
अब आप समझ गए होंगे कि प्रधानमंत्री ने कोरोना की रोकथाम के लिए इसी अधिनियम के अंतर्गत 24 मार्च की रात बारह बजे के बाद इक्कीस दिन तत्पश्चात उन्नीस दिन के लिए तीन मई तक देशव्यापी लॉक डाउन लागू कर लोगों को घरों में बन्दी रहने के लिए बाध्य कर दिया । देश मे पहली बार इस अधिनियम के अंतर्गत कोरोना की रोकथाम के लिए देशव्यापी लॉक डाउन लागू किया गया है । इस अधिनियम की धारा 51 से 60 को लागू करने के लिए गृह मंत्रालय ने कतिपय आदेश/निर्देश जारी किये है जो पूरे देश मे प्रभावी है । इस अधिनियम के अंतर्गत “आपदा” की रोकथाम के लिए अनेक अधिकार केंद्र सरकार को हासिल है । इसलिए प्रधानमंत्री द्वारा लॉक डाउन लागू करना पूर्णतया कानून के दायरे में है ।
हालांकि कई मामलों में राज्य सरकार महामारी अधिनियम, 1897 का इस्तेमाल कर रही है । लेकिन लॉक डाउन इस अधिनियम के अंतर्गत संभवतया लागू नही किया जा सकता है । इसलिए केंद्र सरकार को प्राकृतिक आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का सहारा लेना पड़ा । 2005 में बने कानून को काफी सुदृढ़ बनाया गया है । लेकिन इसमें अभी भी कई प्रकार के प्रावधान नही है जिसकी वजह से इसके पोस्टमार्टम की आवश्यकता है ।
जिस प्रकार स्वास्थ्यकर्मियों पर हमलों के मद्दे नजर भारत सरकार ने महामारी अधिनियम, 1897 में संशोधन करने के लिए इसी 22 अप्रेल को महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 लागू किया है । उम्मीद है कि निकट भविष्य में दोनों अधिनियमों में आवश्यक संशोधन कर इन्हें ज्यादा प्रभावी, सशक्त और व्यवहारिक बनाया जाएगा ताकि संकट के समय कानून बौने साबित नही हो ।