हेम शर्मा

कोई राज्य सरकारें वोटों के खातिर अपने हाथ काटकर दे सकती हैं, परंतु गोचर भूमि में पट्टे नहीं दे सकती। पहली बात तो गोचर के भू उपयोग को लेकर सरकारों के नीति निर्देश स्पष्ट हैं। सरकारें खुद के नीति निर्देशों का भी राजनीतिक लाभ के प्रलोभन में उल्लंघन करें तो उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायलय के फैसलों को दर किनार करने की जुर्रत कोई सरकार क्यों करेगी ? राजस्थान में गोचर के मुद्दे पर जन जागृति आई है। गोचर में पट्टे देने के सरकार के फैसले के खिलाफ देवी सिंह भाटी सरेह नाथानिया गोचर में धरने पर बैठे हैं। उनके साथ पूरा प्रदेश एकजुट है। पूरे प्रदेश में गोचर मुद्दे पर संयुक्त संगठन की रूपरेखा तय की गई है। इस मुद्दे पर जनभावना और भाटी की फतेह है। अशोक गहलोत देश के बड़े नेता हैं वे संविधान के नीति निर्देशों, कानून और सरकारों के निर्णय का सम्मान नहीं करें ऐसा हो नहीं सकता। उन्होंने पिछले कार्यकाल में महानरेगा में गोचर में चारागाह विकास, स्थानीय प्रजाति के पेड़ पौधे लगाने तथा ग्राम पंचायत, तहसीलदार, कलक्टर के स्तर पर गोचर को अतिक्रमण मुक्त करने के निर्देश भी दिए। गोचर के विकास की पूरी योजना प्रस्तावित की थी। इसका तात्पर्य यह है कि अशोक गहलोत सरकार भी गोचर के प्रति जन भावना के अनुरूप ही संवेदनशील है। रही बात 30 सालों से बसे लोगों को पट्टे देने के निर्णय की तो बेशक यह समग्र नीति निर्देशों के मध्य नजर गलत निर्णय है। यह सार्वजनिक संपदा पर अतिक्रमण को बढ़ावा देने तथा चराचर जगत यानि जीव जंतुओं के संरक्षण की भावना के विपरीत है। कोई लोक कल्याणकारी सरकार ऐसा कदम उठाने से पहले जन भावना को जरूर समझेगी। तो गोचर पर पट्टे नहीं दिए जा सकते। फिर भी अगर कोई कोशिश करता है तो जनता होने नहीं देगी। यह प्रदेश का दुर्भाग्य है कि सार्वजनिक भू संपदा का समुचित उपयोग सरकारें नहीं कर पा रही है। हमारा देश पशु धन आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश है। पूरे देश में पशु चारे की कमी है। ऐसे में गोचर, ओरण, पड़त की भूमि, बहाव क्षेत्र में चारागाह विकास से अर्थव्यवस्था को संबल दिया जा सकता है। गहलोत सरकार के पट्टे देने के निर्णय से गोचर को लेकर जन जागृति पैदा हुई है। सरकार इस जन जागृति का समुचित उपयोग करें। गोचर की रक्षा और विकास में जन भागीदारी सुनिश्चित कर हमेशा के लिए इन सार्वजनिक संपदा को उत्पादक बना दें। जैसा कि आंदोलन के मुख्या देवी सिंह भाटी की अवधारणा है कि सार्वजनिक हित के ऐसे काम की समाज जिम्मेदारी लें और सरकारें सहयोगी बने। वास्तव में गोचर, गाय, गांव और समाज का भला करना है तो गोचर संभालने की जिम्मेदारी समाज लें। अब समय आ चुका है।