जिसने भी किसी विद्यार्थी को सच्ची दिशा दी है। अपने तप से अर्जित ज्ञान दिया है। पढ़ाया है। जीवन और विद्या का गुर सीखाया है उनके प्रति शिष्य का मस्तक स्वतः ही झुक जाता है। ऐसे शिक्षक सम्मान के भूखे नहीं होते। उनको शिष्य के अर्जित ज्ञान की विनम्रता से सन्तुष्टि मिलती है। असल में वो ही उनका सम्मान है। शिक्षकों का ही नहीं जिसने भी समाज को अपना कुछ भी अर्पित किया उनका सम्मान होना ही चाहिए। उनमें शिक्षक भी शामिल है। समाज में शिक्षक सम्मान के नाम जो आडम्बर फैलाया जा रहा है यह समाज को अभिशप्त करने जैसा है। शिक्षक दिवस पर ऐसा भी कम नहीं हो रहा है। आजादी के बाद शिक्षकों ने निःसन्देह देश को आगे बढ़ाया है। आज देश दुनिया के शक्तिशाली देशों के बराबर ज्ञान के बलबूते पर ही खड़ा है।। भारतीय परम्परा में शिष्य गुरु के आज्ञाकारी रहे हैं। अब विश्व व्यवस्था बदल गई है। शिक्षा के तौर तरीके भी बदले हैं। शिक्षक वेतनभोगी कर्मचारी हो गए हैं, परन्तु शिक्षक की व्यक्ति निर्माण, राष्ट्र निर्माता की भूमिका यथावत है। शिक्षक सर्वथा सम्मान पाने योग्य है। शिक्षक के सम्मान को राजनीति, आडम्बर औऱ नैतिक मूल्यों से इतर बनाकर हम खुद का ही नुकसान कर रहे हैं। शिक्षकों के सम्मान को हास्यास्पद बनाया जा रहा है। सम्मान नहीं इतर भावनाएं ज्यादा झलकती हैं। शिक्षक का वास्तविक सम्मान तो उनकी भावी पीढ़ी की सृजनात्मकता जो सामने दिखाई दे रही है। शिक्षक दिवस पर सचे शिक्षकों का भी सम्मान हुआ है। उनके नाम पर ही श्रद्धा से मस्तक झुक जाता है। शिक्षक बेशक आदरणीय है। सम्मान हो पर सम्मान के नाम पर आडम्बर, तुष्टिकरण, धड़ेबाजी औऱ राजनीतिक संरक्षण कतई नहीं हो। ऐसा करने वाले न तो सच्चे मायने में शिक्षक का सम्मान कर रहे हैं न ही समाज और राष्ट्रहित की चिंता। शिक्षक सम्मान के नाम पर महाविद्यालयों, विवि में तुष्टिकरण औऱ राजनीति ज्यादा ही हो रही है। हे शिक्षक तुम्हारे सच्चे योगदान को नमन …।