

एक बड़ी प्राचीन कहावत है ” बाटचुट कर खाना और बैकुंठ में जाना ” अर्थात स्वर्गीय मोक्ष का रास्ता मिल बांट कर खाने से है। हमने कई माता-पिता ऐसे हैं जो बच्चों को उचित शिक्षा नहीं देते हैं उसे कुछ भी चीज देंगे खाने की चॉकलेट आदि तो उससे कहेंगे चुपचाप तू खा ले किसी को बता मत। कई संयुक्त परिवार में भी कुछ सदस्य ऐसा करते हैं, कोई भी चीज लाएंगे तो किसी को नहीं बताएंगे, स्वयं गुपचुप उपयोग करेंगे, बच्चा माता-पिता को देखता है तो खुद भी ऐसा ही सीखता है और बड़ा होने पर उसका व्यवहार भी स्वार्थी हो जाता है नतीजन ऐसे लोगों की मदद के लिये, उनके साथ कोई नहीं दिखता। जो व्यक्ति हैं सब के साथ शेयर करते हैं सभी की केयर करते हैं वह बड़े आनंद में रहते हैं क्योंकि उनको मदद के लिये कई तैयार रहते है। वे सभी का दिल जीत चुके होते हैं और समाज एवंचच परीवार में उनकी बहुत तारीफ होती है। प्रगाढ़ मित्रता भी वही होती है जहां मित्र आपस में अपनी अच्छी बुरी सभी बाते शेयर करते हैं, वक्त आने पर एक दूसरे की मदद पूरे दिल से तैयार रहते हैं। दिल और दिमाग का उपयोग करने वालों में एक फर्क होता है दिलवाले सबको प्यारे लगते है और दिमाग से चलने वाले को ज्यादा मान सम्मान नही मिलता। मित्र, परिवार व अपनों की जो केयर करते हैं उनकी बातों का मान सम्मान रखते हैं अपनी संस्कृति और घर के बड़े बुजुर्गों की बड़ी शिद्दत से केयर करते हैं, वही सही मायने में संस्कृति के रक्षक होते हैं।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)