राजस्थान में गढ़ गागरौन एक सुप्रसिद्ध किला रहा है।ख्यातों के अनुसार इस स्थान पर पहले डोड राजपूतों का शासन था।बाद में गूंदळराव खीची (चौहान) ने जायल (नागौर) से जाकर पृथ्वीराज द्वितीय के शासनकाल में गागरौन क्षेत्र के डोडों के बारहों गढ़ों पर कब्जा कर लिया। इसी खीची शाखा में देवनसी हुए,जिन्होंने बीजळदेव डोड को परास्त कर फिर से इस क्षेत्र पर हक जमाया।डोड राजपूतों के नाम से पहले इसका नाम डोडरगढ़ था,पर देवनसी ने अपनी बहन गंगा के नाम से गढ़ बनाकर उसका नाम गढ़ गागरौन रखा।पीपाजी देवनसी खीची की 11वीं पीढ़ी में यहाँ के शासक हुए।
‘भक्तमाल’ के लेखक नाभादास इन्हें रामानंद के बारह शिष्यों में से एक मानते हैं,इस तरह वे कबीर के समकालीन ठहरते हैं। लोक मान्यताओं में इनका जन्म चैत्र पूर्णिमा विक्रमी 1380 और देहावसान चैत्र सुदी एकम विक्रमी 1441 मानते हैं।यहाँ यह उल्लेखनीय है कि स्वामी रामानंद के जहां अन्य शिष्य पिछड़े व दलित समुदाय से थे,वहीँ पीपाजी ही एकमात्र सवर्ण क्षत्रिय समुदाय से थे।
राव पीपा ने अपने राज्यकाल में कई युद्धों का सामना किया। टोडा-युद्ध इन्होंने अपने ससुर सोलंकी डूंगरसी की सहायतार्थ लड़ा था।फिरोज तुगलक़ के समय उसकी सेना ने मालवा जाते समय गढ़ गागरौन का घेरा भी डाला था,पर उसे सफलता नहीं मिली थी।पीपाजी के ये दोनों युद्ध उनकी वीर-वृति के सूचक हैं,पर अचानक एक घटना ने उन्हें सांसारिकता से विलग कर दिया।
लोकाख्यानों के अनुसार पीपाजी शिकार के शौक़ीन थे और अक्सर करने जाते थे।एक दिन उनके सामने से एक हरिणी निकली,जिस पर पीपाजी ने तलवार से वार किया।हरिणी के दो टुकड़े हो गये।गर्भवती हरिणी के साथ ही उसका बच्चा भी कट गया।बस वही उनके जीवन परिवर्तन का क्षण सिद्ध हुआ।वे करुणा के आलोक से जगमगा उठे।उन्होंने रक्तरंजित तलवार वहीँ फेंक दी और वैराग्यवृति धारण कर ली। राजपाट उन्हें बौने और व्यर्थ लगने लगे।वे फिर राजधानी लौटे ही नहीं,वहीँ कुटिया बनाकर रहने लगे और सुई-धागे से कपड़े सीने लगे।उनके अधिकाँश शिष्य क्षत्रिय ही थे, जो उनकी अहिंसावृति से प्रभावित हुए थे।वे भी सिलाई का काम करने लगे।इस तरह एक पीपावर्गीय समुदाय पैदा हुआ,जो राजस्थान,गुजरात , मालवा और देश के अन्य भागों में रहते हैं।दर्जी का धंधा करनेवाले इस समुदाय के सारे गौत्र राजपूत समुदाय के हैं।
उनकी भक्ति निर्गुण समुदाय की थी और करुणा उनके संदेशों का सार है –
जीव मार जौहर करै, खातां करै बखाण।
पीपा परतख देख ले, थाळी माँय मसाँण।।
पीपा पाप न कीजियै, अळगौ रहीजै आप।
करणी जासी आपरी, कुण बेटौ कुण बाप।।
संत पीपाजी की शिक्षाएं धर्म के उदार पक्ष से संबंधित हैं। सहजता का दर्शन उनकी शिक्षाओं का सार है –
अहंकारी पावै नहीं,कितनोई धरै समाध।
पीपा सहज पहूंचसी,साहिब रै घर साध।।
गढ़ गागरौन में पीपाजी का मंदिर, छतरी और बाग़ है। काशी में ‘पीपाकूप’, द्वारिका के पास आरमाड़ा में ‘पीपावट’, अमरोली (गुजरात) में ‘पीपाबाव’है।जोधपुर के जिस पीपल के नीचे पीपाजी ने तपस्या की थी वह स्थान आज सुप्रसिद्ध पीपाड़ कस्बा है | काळीसिंध और आहड नदियों के संगम पर एक पीपाजी का गुफामन्दिर भी स्थित है। चैत्र-पूर्णिमा पर सम्पूर्ण भारत में श्री पीपाजी महाराज की जयंती मनाई जाती है।