रोहतक, 2 मार्च। संपूर्ण जीवन एक रंग मंच है। हम सब इस रंग मंच के पात्र है। साहित्य इन पात्रों की कहानी है। साहित्य सभी के लिए है। साहित्य संस्कृति का अभिन्न अंग है। ये विचार प्रतिष्ठित शिक्षाविद, लेखक तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति डा. भीम सिंह दहिया ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (मदवि) में रंग महोत्सव के रंग कलम इवेंट में आज बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।
डा. भीम सिंह दहिया ने कहा कि साहित्य और संस्कृति हमें उदारमना तथा सुशील-शालीन बनाते हैं। उन्होंने कहा कि बचपन में हरियाणवी सांग देखने-सुनने का मौका मिला, जो साहित्यिक अभिरुचि की शुरूआत रही।
उपन्यासकार बी.एल. गौतम ने कहा कि लेखक कभी भी अनुसारक नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि लेखन प्रक्रिया खुद के मन के दानवों से जूझने का माध्यम है। बी.एल. गौतम ने कहा कि दुनिया बेहद बेदर्दी है। ऐसे में दुनिया-जहाँ के दु:ख-दर्द मनुष्य को लिखने की प्रेरणा देते हैं। अपने अंग्रेजी उपन्यास ‘एंडी लीलू’ का हवाला देते हुए कहा कि लेखन प्रक्रिया किसी न किसी स्तर पर आत्मकथात्मक होती है।
वक्ताओं भगवान दास मोरवाल तथा बी.एल. गौतम ने उपस्थित जन के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। रंग कलम के संयोजक अंग्रेजी के प्रोफेसर डा. जे.एस. हुड्डा ने कहा कि हम लिखते क्यों है, ये सवाल अहम है। डा. हुड्डा का कहना था कि विश्वविद्यालयों में क्रिएटिव स्पेस ज़रूरी है।