बीकानेर 26 दिसम्बर । शब्द-श्री साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित, ‘एक मुलाकात’, के अंतर्गत दर्शकों / श्रोताओं से रूबरू होते हुए बहुमुखी प्रतिभा की धनी मनीषा आर्य सोनी ने कहा कि साहित्य जस का तस प्रस्तुतीकरण नही है यह एक सांकेतिक विधा है। ऐसा लेखन ही कालजयी लेखन बनता है।
शब्द-श्री साहित्य संस्थान की स्थापना 2013-14 में हुई थी। उस समय संस्था द्वारा महिला साहित्यकार सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जिसमें देश भर से लेखिकाओं ने भाग लिया था। संस्थान द्वारा होटल राजमहल में आयोजित कार्यक्रम के साथ ही ऐसे कार्यक्रमों की श्रृंखला की नयी शुरुआत की गई। संस्थान की अध्यक्ष मोनिका गौड़ ने बताया कि इस श्रृंखला की आगामी कड़ियों में विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट शख्सियात को शामिल किया जाएगा।
कार्यक्रम का संचालन डॉ कृष्णा आचार्य ने किया। इसके उपरांत नीलम पारीक ने शब्दश्री शख्सियत का संक्षिप्त परिचय दिया तथा हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार रवि पुरोहित ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अन्य नवांकुरों को इस में सम्मिलित किये जाने का आह्वान किया।
मनीषा आर्य सोनी से रूबरू करवाने का दायित्व राजस्थानी एवं हिन्दी की जानी-मानी लेखिका मोनिका गौड़ ने सम्भाला। औपचारिक एवं अनौपचारिक प्रश्नों की शुरुआत, विभिन्न लेखन विधाओं से जुड़ाव और विशेष रूप से उपन्यास,” आठवीं कुण”, की लेखन यात्रा के बारे में प्रश्न किए। मधुर स्वर की स्वामिनी मनीषा आर्य सोनी ने बड़े ही धीर – गम्भीरता से सभी प्रश्नों के उत्तर देते हुए अपनी नव रचित कविताएं एवं गीत भी प्रस्तुत किये। शब्दों की अद्भुत मीमांशा से दर्शक दीर्घा में उपस्थित गणमान्य साहित्यकारों के साथ एडवोकेट विनोद शर्मा, कैलाश टाक, रूपा सोनी आदि ने भी शब्द-श्री शख्सियत से उनकी लेखन यात्रा से सम्बंधित कई अनूठे प्रश्न किये, जिनका मनीषा आर्य ने समुचित प्रत्युत्तर देते हुए उनकी जिज्ञासा को शांत किया।
कार्यक्रम में शहर के गणमान्य साहित्यकार डॉ विमला मेघवाल, नदीम अहमद नदीम, इंद्रा व्यास, मधुरिमा सिंह, मनस्विनी सोनी, लावण्या शर्मा, सुमन ओझा जोशी, राजश्री भाटी, राजेन्द्र जोशी, डॉ मोहम्मद फ़ारूख़ चौहान, डॉ अजय जोशी, मधु आचार्य, हरीश बी. शर्मा, व्यास योगेश राजस्थानी, गोपाल पुरोहित, आनंद मस्ताना, स्वर्णकार हितकारी सभा, विनायक गौड़ साक्षी बनें । कार्यक्रम के अंत में स्व.मनोहरलाल कलावती आर्य, स्व. के के शर्मा एवं स्व. श्रीमती रचना शेखावत को स्मरण किया गया। हास्य व्यंग्य कवि बाबू बमचकरी ने सभी का आभार माना ।