जब से हम प्राकृतिक जिंदगी से दूर होकर ग्लैमर और भौतिकवाद भरी जिंदगी जो आज के दौर की मॉडर्न जिंदगी है मैं जीने लगे हैं जब से हम सादगी और संपन्नता भरी जिंदगी से दूर होकर दिखावे और होडाहोड (Contest) की जिंदगी के आदि बन गए हैं बस यहीं से हमने क्या बढ़ोत्री की है और क्या घटोत्री की है यह बात समझना बहुत आवश्यक है। हमने अपनी जिंदगी में कर्ज, कई बीमारियां जैसे मोटापा, ब्लड प्रेशर, शुगर, घुटनों का दर्द, तनाव, सिर दर्द, आर्थिक जिम्मेदारियां बिना वजह के दिखावटी खर्च की पूर्ति के प्रयास, रोज रोज की दवाई का खर्च, वाहनों के कारण वातावरण में प्रदूषण, कब क्या हो जाए असुरक्षा का भाव, आपसी बैर भाव, अनैतिकता, दुर्भावना, छल कपट, स्वार्थीपन जैसी कई चीजें निरंतर बढ़ रही है।
और मानवता, दया, इंसानियत, नैतिकता, इमानदारी, आपसी प्रेम प्यार, मैत्री, रिश्तेदारी, करुणा जैसे कई संस्कार और परंपराएं घटती जा रही है।
विषय यह बात समझने का है कि क्या हम जो जिंदगी जीना चाहते हैं जी रहे हैं या जिंदगी गुजार रहे हैं। हमारे जीवन की उत्पत्ति क्यों हुई और हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए जिससे हम स्वस्थ शांति और सुकून भरी जिंदगी जी पाये।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)