जयपुर। भारत सरकार की तरफ से कोरोना की आड़ में स्कूल, काॅलेज बंद करना हमारे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना ही तो है। बच्चों को उनके बुनियादी अधिकारों जैसे शिक्षा, स्कूली एवं विरासती खेलों से वांछित रखने का ज़रिया भी है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली कभी भी स्कूल या क्लास रूम की जगह नहीं ले सकती। स्कूलों के बंद होने के कारण पिछले शैक्षणिक वर्ष में बिना परीक्षा लिए परिणाम घोषित किए गए और इस बार हमारे बच्चों को उसी रास्ते पर बढ़ाया जा रहा है, जो कि आने वाले समय में बहुत ही घातक सिद्ध होगा। ऑनलाइन शिक्षा में पहले ही हमारे बच्चों को मोबाइल रूपी मीठे ज़हर पर लगा दिया गया है, जिसका बच्चों की नज़र और सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। बच्चे मोबाइल के आदी हो चुके हैं। पढ़ने की बजाय मार-धाड़ वाली गेमज़ खेलते-खेलते वे आक्रामक होते जा रहे हैं। इस तरह ऑनलाइन शिक्षा कहकर हमारे बच्चों को पुस्तकों, विरासती खेलों और समाज से तोड़ा जा रहा है। पुस्तक सभ्याचार विकास मंच पंजाब के प्रधान निरंजन सिंह प्रेमी, जरनल सचिव रणधीर सिवीयां, मीत प्रधान राजिंदर सिंह राज कलानौर, हरदीप जटाणा, सचिव जसवंत गोगिया, हरियाणा मंच के सुरिंदर पाल सिंह प्रधान, जरनल सचिव हरगोबिंद सिंह, मीत प्रधान भुपिंदर पन्नेवालिया, राष्ट्रीय ग्रंथालय सभा राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष वी. बी. जैन ने साझे बयान के ज़रिए सरकार से मांग की है कि शैक्षणिक संस्थाओं कोरोना जैसी छम्य बीमारियों के नाम पर बंद नहीं की जाएँ। यदि कोरोना काल में ठेके खुले रह सकते हैं, वोट के लिए सभा और समारोह किए जा सकते हैं, तो हमारे बच्चों की पढाई के लिए स्कूल क्यों नहीं खोले जा सकते। अगर सरकार ने व्यापक जनहित में शैक्षणिक संस्थान नहीं खोले तो अखिल भारतीय स्तर पर जन जागरण किया जाएगा। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के माध्यम से सबका इम्यून सिस्टम मजबूत बनाया जाएगा।