प्रतिदिन -राकेश दुबे
धुंध,प्रदूषण, पराली,पटाखे और गदियोंन से उत्सर्जित वायु प्रदूषण से तत्कालिक निजात का उपाय “स्माग टॉवर” सुझाया गया | सुप्रीम कोर्ट में सुझाव देने वाली सरकार सुझाव देने के बाद भी इस पर अमल नहीं कर सकी| आखिर ये “ स्माग टावर” है क्या ? साधारण शब्दों में समझें तो स्मॉग टॉवर एक तरह से बहुत बड़ा एयर प्योरीफायर होता है, जो वैक्यूम क्लीनर की तरह धूल कणों को हवा से खींच लेता है। आमतौर पर स्मॉग टॉवर में एयर फिल्टर की कई परतें फिट होती हैं, जो प्रदूषित हवा, जो उनके माध्यम से गुजरती है, को साफ करती है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक स्मॉग टॉवर ५० मीटर की परिधि की वायु को साफ कर सकता है। स्मॉग टॉवर का विचार मूलतः चीन से आया है। वर्षों से वायु प्रदूषण से जूझ रहे चीन के पास अपनी राजधानी बीजिंग में और उत्तरी शहर शीआन में दो स्मॉग टॉवर हैं। उसी तर्ज पर दिल्ली और केंद्र सरकार कुछ चुनिन्दा जगह पर “स्माग टावर“लगाने के मंसूबे बना रही हैं |
सारा विवाद इसी को लेकर है कि स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण की समस्या का सटीक हल नहीं है और यह प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। असल बात यह है कि जब तक प्रदूषण फैलाने वाले स्रोत बंद नहीं किए जाएंगे, तब तक स्मॉग टॉवर जैसे उपकरण सिर्फ जन-धन की हानि करते रहेंगे। वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोत कल कारखाने और थर्मल पॉवर प्लांट हैं। प्रदूषण उत्पन्न करने वाले इन असल स्रोतों पर कोई आंच नहीं आए इसी लिए कभी पराली जलाने को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है और कभी कोई और तर्क दे दिए जाते हैं।
कुछ महीनों पहले समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से मीडिया में रिपोर्ट्स प्रकाशित हुई थीं कि भारत के आधे से अधिक कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों और ९४ प्रतिशत कोयला-संचालित इकाइयों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए रेट्रोफिट उपकरण का आदेश दिया गया था। गौर तलब है नई दिल्ली के आसपास कोयले से चलने वाले उद्योग भारतीय अधिकारियों की इस चेतावनी कि अगर उन्होंने साल के अंत तक सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए उपकरण नहीं लगाए तो इन उद्योगों को बंद कर दिया जाएगा, के बावजूद ये संयंत्र बिना उपकरणों के चल रहे थे।