स्वभाव, आदत, प्रकृति, नियत कहने को यह सभी शब्द करीब करीब एक सरीके हैं पर इन की परिभाषा में थोड़ा थोड़ा अंतर है मानव की पहचान उसका स्वभाव है, मानव का रहन सहन उसकी आदत है, मानव का विचार उसकी प्रकृति है एवं मानव का सोच और कार्य उसकी नियत है। यदि व्यक्ति अपने स्वभाव अपनी आदत अपनी प्रकृति और अपनी नियत का विश्लेषण कर ले तो संभव है कि वह एक स्वर्णिम युग कहलायेगा क्योंकि आपको अपनी अच्छाई बुराई और अनुभव सभी का ज्ञान हो जाएगा। काश हम जिस शासन प्रशासन के अंतर्गत रहते हैं और उसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिन अधिकारी कर्मचारियों पर है वह इस वह सब अपने स्वभाव आदत प्रकृति और नियत का विश्लेषण कर पाए या उन्हें कोई करा पाए ताकि उन्हें अपनी अच्छाई बुराई का ज्ञान हो जाए और वह यह तय कर ले कि मुझे इंसानियत बनाए रखना है तब निश्चित रूप से देश और समाज और विश्व में सभी के लिए जीने का एक सुखद आनंद सुखद वातावरण हमें मिल पाएगा। पर दिक्कत यह है कि हम लोग भी आपस में इतने बड़े हुए हैं कि अब सब का एक होना बहुत मुश्किल है जाति, धर्म, देश, सभ्यता को लेकर हम कहां-कहां नहीं बटे हुए हैं और तो और हम शारीरिक रचना और हमारे रंगरूप को लेकर भी हम आपस में बटे हुए हैं। सभी विचार कीजिए आप क्या सुधार सकते हैं स्वयं सुधरे दूसरों को मत देखे हम सुधर जाएं यही सोचेंगे तो सभी सुधारने की राह पर रहेंगे।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)

