बिहार(सुपौल)कोशी की धरती अपनी आँचल में अद्भुतता की खमीर समेटे बैठी हैं।कोशी अंचल कई लिजेंड्री फिगर्स दी हैं साथ ही साथ त्रासद का अनकही गाथा समेटी हैं।कोशी वशियो में झेलनी की क्षमता अतुलनीय हैं।एक बिहारी हजार पे भाड़ी या दिहाड़ी यही एकलौता वजह हैं कि इसके प्रवृत्ति व प्रकृति में प्रवास लिखा हैं।70 प्रतिशत लोग प्रदेश में रोजी-रोटी के लिए प्रवास का जीवन जीते हैं।बाढ़ जैसी आवदा और बेरोजगारी जैसी समस्या सुरसुर की तरह मुंह बाई हैं।आजादी से आजतक बाढ़ की मुसीबत से कोशीवासियों को निजात क्या मिल सकी हैं? और न ही किसी कल्याणकारी योजनाएं सरजमीं पर उतड़ सकी…..
कोविड-19के परिपेक्ष्य में उत्तरी बिहार के प्रवासी मजदूर का तांता रुकने का नाम नही ले रहा एक सैलाब से उमड़ आया हैं।अपने घर को लौटने के लिए अपने बीबी,बच्चों बूढे बीमार मां-बाप के पास कोरोना से सुरक्षा के लिए जो खुद महफूज नही भगवान, जाने आने वाले दिनों में इन प्रवशी मजदूरों का क्या होगा।कोरोना से कम और भूख से ज्यादा मर जाएंगे….गरीबों की भूख उसकी शरीर को मार सकती हैं जबकि हुकुमरॉ की भूख पूरी कुमुमत को ।आज प्रवासी मजदूर न घर के रहे न घाट के !घर लौटने की सिलसिले में कई जाने गयीं ,असंख्य सख़्त बीमार हो गए।आखिर होगा क्या?
ये हंगामा है क्यों बरपा ? थोड़ी सी जो जी ली हैं ………..!!!
ये जीने की जिजीविषा व उद्दम इक्षाएं कहाँ दम तोड़ जाए कुछ खबर नही ?!ऊपर से कोढ़ में खाज , सियासत का बाजार गर्म हैं और मानवता पस्त हैं।इस महाविपदा कि घड़ी में मानवता के रक्षार्थ हर आदमी को अपना योगदान सुनिश्चित करना होगा।प्रशासन के साथ सक्रिय सभागिता निभानी होगी।खाद,दैनिक उपभोग की वस्तुओं ,ताजे फल-सब्जी के दामों पर कोई नियंत्रण नही हैं।कालाबजारी की गतिविधियां आबाध गति से संचालित हो रही हैं।लोगों को खाने के लाले परे हैं।छोटे बच्चे कुपोषण से ग्रसित हो रहे हैं क्योंकि उन्हें ताजा फल,साग, सब्जी सहज रूप में उपलब्ध नही हो पा रहा हैं।
ऐसे विषम परिस्थिति में कुछ एक तथाकित समाज सेवी एवं गैर सरकारी संगठनों के लोग आधा किलो चूड़ा देकर भी लाभर्थियों के साथ फोटो खिंचवा कर पोस्ट करना नही भूलते हैं …!!इससे भी होशियार रहने की आवश्यकता हैं।कोशी वासियो का दर्द सिर्फ और सिर्फ परमपिता को पता है या स्वंय कोशी वशियो को ।
जै कोशी !
जै कोशी वासी!