रिपोर्ट – अनमोल कुमार
बात 12 अप्रैल 1945 की है। यूरोप में दूसरा विश्व युद्ध जर्मनी की राजधानी बर्लिन के आसपास सिमट चुका था, मगर एशिया में जापान पूरी ताकत से जुटा था। अपना एक पोट्रेट बनवाने के लिए कुर्सी पर बैठे अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट की ब्रेन हेमरेज से मौत हो गई। फौरन ही उपराष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन को राष्ट्रपति बना दिया गया। युद्ध मंत्री हैनरी एल स्टिमसन ने नए राष्ट्रपति को सबसे पहले अमेरिकी परमाणु बम प्रोग्राम के बारे में पूरी जानकारी दी।
मैनहटन प्रोजेक्ट नाम का यह वही प्रोग्राम था जिसके तहत तैयार परमाणु बम तीन महीने बाद जापान के दो शहरों पर गिराए गए। पहला 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर और दूसरा 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर। लेकिन क्या आप जानते हैं दुनिया में पहला परमाणु बम हिरोशिमा पर नहीं बल्कि अमेरिकी राज्य न्यू मैक्सिको के अलामोगोर्डो में दागा गया था। यह 16 जुलाई 1945 को दुनिया के पहले परमाणु बम का परीक्षण था।
यूरेनियम या प्लूटोनियम जैसे ईंधन में चेन रिएक्शन कराकर ही एटम बम को जबरदस्त ऊर्जा मिलती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है। अमेरिकी वैज्ञानिक पहली बार शिकागो में चेन रिएक्शन कराने में कामयाब हुए। 1944 में अमेरिका के टेनेसी में ओक रिज लेबोरेटरी के ग्रेफाइट रिएक्टर में लंबी छड़ों की मदद से परमाणु ईंधन के इस रिएक्टर की मदद से वैज्ञानिकों ने नियंत्रित माहौल में यूरेनियम में चेन रिएक्शन कराकर भारी मात्रा में ऊर्जा को हासिल करना सीखा। यही आगे चलकर परमाणु बम का आधार बना।
16 जुलाई 1945 को प्रोजेक्ट मैनहैटन के तहत परमाणु वैज्ञानिकों ने अमेरिका के न्यू मैक्सिको के वीरान अलामोगोर्डो इलाके में पहले परमाणु बम का सफल परीक्षण किया। इस बम से 20 हजार TNT के बराबर ऊर्जा निकली थी। इस परमाणु बम के परीक्षण के बाद एक लोहे के पिघले हुए टॉवर को देख वैज्ञानिक और आर्मी ऑफिसर हैरान रह गये। यह 100 फुट ऊंचा वही टावर था, जिस पर रखकर परमाणु बम का ट्रायल किया गया था। न्यू मैक्सिको के अलामोगोर्डो में ‘ट्रिनिटी’ परमाणु परीक्षण से तापमान इतना ज्यादा बढ़ गया कि उस वीरान रेगिस्तान में मौजूद रेत व सिलिकॉन पिघलकर शीशे जैसे बन गए। इसे अलामोगोर्डो या एटमसाइट ग्लास के नाम से भी जाना जाता है।
30 जुलाई 1945 को अमेरिकी नौसेना युद्धपोत USS इंडियानापोलिस ने हिरोशिमा पर गिराए गए पहले परमाणु बम के सभी हिस्से, पुर्जे और यूरेनियम सैन फ्रांसिस्को से टिनियान द्वीप तक पहुंचाए थे। द्वीप से वह गुआम बेस की ओर चला, लेकिन 30 जुलाई 1945 को उसे जापानी पनडुब्बियों ने टारपीडो दागकर डुबो दिया।
6 अगस्त 1945 को एनोला गे नाम के B-29 बमवर्षक ने ही दुनिया का पहला परमाणु बम जापान के हिरोशिमा शहर पर गिराया था। करीब 40 हजार फीट की ऊंचाई से सुबह ठीक 8:15 बजे गिराए गए परमाणु बम ‘लिटिल ब्वॉय’ में 45 सेकेंड बाद धमाका हुआ। तब वह 1800 फुट की ऊंचाई पर एक अस्पताल के ऊपर था। कुछ ही पलों में धरती का तापमान 7000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इसके फौरन बाद ही 3.43 लाख लोगों में से 40 हजार लोग भाप और राख बन गए। जबकि सूरज की सतह का तापमान 5,500 डिग्री होता है। परमाणु धमाके से दो तिहाई शहर मलबे में बदल गया। मकान, दुकान, दफ्तर, स्कूल, फैक्ट्री, सैन्य अड्डा सब कुछ जमींदोज हो गया। इसके कुछ दिनों बाद करीब 2.10 लाख और लोगों की भी मौत हो गई। परमाणु बम के हमले से हिरोशिमा में जापानी सेना का अड्डा और फैक्ट्रियां पूरी तरह तबाह हो गईं। कई दिनों तक वहां सिर्फ मरे हुए इंसानों की राख के साथ जले हुए पेड़ों के कुछ तने नजर आते रहे। तबाही की इस तस्वीर में दूर हिरोशिमा का प्रिफेक्चरल इंडस्ट्रियल प्रमोशन हॉल ही दिख रहा था। अमेरिका ने हिरोशिमा को सिर्फ सैन्य अड्डे के कारण नहीं चुना बल्कि वह एक मध्यम शहर पर परमाणु ताकत की नुमाइश करना चाहता था ताकि जापान जल्द से जल्द हथियार डाल दे। U.S. Air Force ने
पहली बार इंसानों पर इतने घातक हथियार का इस्तेमाल किया था। 9 अगस्त को नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम ‘फैट मैन’ गिराया गया। हिरोशिमा वाले परमाणु बम में यूरेनियम था तो दूसरे बम में प्लूटोनियम को बतौर ईंधन इस्तेमाल किया गया था। परमाणु हमले के बाद पहाड़ियों में बसे नागासाकी और इंडस्ट्रियल सिटी हिरोशिमा के बीच अंतर करना मुश्किल था। तकरीबन पूरा नागासाकी मलबे में बदल हो चुका था। दूसरे बम ने भी फौरन ही 40 हजार जापानियों की जान ले ली। इनके अलावा नागासाकी में झुलसने और रेडिएशन से एक साल के भीतर 30 हजार और लोगों की मौत हो गई। शहर की 40% बिल्डिंग भी ढह गई थीं। इस पर राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन, परमाणु हमले के बाद का बयान “हमने जर्मनी के खिलाफ लड़ाई जीत ली है। हमने इस बम का इस्तेमाल युद्ध की त्रासदी को छोटा करने और हजारों युवा अमेरिकियों की जान बचाने के लिए किया है।” जापान ने 10 अगस्त 1945 को मित्र देशों की शर्तें मानने का फैसला ले लिया। 15 अगस्त 1945 को सरेंडर की घोषणा कर दी और 2 सितंबर 1945 को अमेरिकी युद्धपोत USS मिसिओरी पर औपचारिक रूप से सरेंडर के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए।
हिरोशिमा और नागासाकी में कई पीढ़ियों तक विकृत अंगों वाले बच्चों ने जन्म हुआ। परन्तु परमाणु हमले से तबाह हिरोशिमा कुछ ही दिनों बाद दोबारा खड़े होने की कोशिश करने लगा। कुछ लोग अपनों के अवशेष तलाश रहे थे तो कुछ दोबारा जीने की राह। आज यानी 6 अगस्त 2021 को हिरोशिमा पर परमाणु हमले को 76 साल हो गए। तब से कई बार दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर पहुंचकर लौट गई, मगर दुनिया में कभी परमाणु हथियार इस्तेमाल नहीं हुए हैं। हिरोशिमा का तबाह इंडस्ट्रियल प्रमोशन हॉल दुनिया के पहले परमाणु हमले का स्मारक बन चुका है। इसे अब एटॉमिक डोम (atomic dome) के नाम से जाना जाता है। हर साल हजारों लोग इसे देखने पहुंचते हैं। जिंदगी अपनी राह खुद खोज लेती है। हिरोशिमा शहर से बढ़कर इसका कोई उदाहरण दुनिया में नहीं है। परमाणु बम की ऐतिहासिक तबाही झेलने के महज चार साल के भीतर यह शहर दोबारा खड़ा होने लगा। आज हिरोशिमा में हर साल हजारों लोग पहुंचते हैं। उनका सपना एक ऐसी दुनिया बनाने का है जिसमें परमाणु हथियार न हों।