बीकानेर।भारत देश वीर कि और वीरांगनाओं की जन्मभूमि है। इस धरती पर अनेक वीरों ने जन्म लेकर देश का गौरव बढ़ाया है। उसी क्रम में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्य श्री तुलसी का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जा सकता है।
आचार्य श्री तुलसी का जन्म | विक्रम संवत् १९७१ को राजस्थान के मारवाड़ संभाग में नागौर जिले के प्रसिद्ध शहर लाडनूं में पिता झूमरमल जी खटेड़, माता वदना जी की कुक्षि से कार्तिक शुक्ला द्वितीया को हुआ। आप अपने परिवार में सबसे छोटे थे। बचपन में ही आपके पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। घर की सारी जिम्मेदारी श्री मोहनलाल जी खटेड़ कुशलतापूर्वक वहन करते थे।
आपकी आदरणीय माता वदना जी एक धर्मनिष्ठ श्राविका थी। बचपन में ही माता से धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए। आपके बड़े भाई चंपालाल जी आपसे एक वर्ष पूर्व ही पूज्य कालूगणी के करकमलों से चुरू में दीक्षित हुए। आपका साधु-साध्वियों से निरंतर संपर्क था। प्रतिदिन साधु-साध्वियों के दर्शन के बाद ही प्रातराश किया करते थे।
पूज्य कालूगणी का लाडनूं में पावन पदार्पण आपके सौभाग्य का सूचक बना। पूज्य कालूगणी का मनमोहक व्यक्तित्व आपके मन मानस में छा गया। मन में दीक्षा के भाव जगे और भाई-बहन (तुलसी और लाडां) की दीक्षा हो गई। दीक्षा के पश्चात् आपने अपना अमूल्य समय अध्ययन और साधना में लगा दिया। मात्र सौलह वर्ष की अवस्था में आप एक कुशल अध्यापक बन गए। गुरुकुलवास में संतों को अध्ययन कराते, आपकी अप्रमत्ता चर्या सभी के लिए प्रेरणा बनती गई। आपके कंठ सुरीले थे, प्रवचन के समय जनता झूम उठती थी। आपकी अनेक विशेषताओं को देखकर अष्टमाचार्य कालूगणी ने मात्र २२ वर्ष की अवस्था में आपको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया।
आचार्य श्री तुलसी ने आचार्य बनने के बाद तेरापंथ समाज को नए-नए आयाम दिए, जिससे व्यक्ति-व्यक्ति का उद्धार हो। उन्होंने केवल जैन धर्म और तेरापंथ के लिए ही नहीं जन-जन के कल्याण का अभियान चलाया। उनके द्वारा चलाया गया अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान जैन-अजैन सबके लिए ग्राह्य हुआ। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इसकी हृदय से प्रशंसा की और उन्होंने इस आंदोलन को गति प्रदान की। समाज के लिए नए मोड़ का आंदोलन बहुत कारगर हुआ। बाल विवाह, मृत्यु भोज, घूँघट प्रथा, महिलाओं की शिक्षा ये मुख्य आयाम थे। आज जो महिलाओं का विकास नजर आ रहा है, उसमें गुरुदेव श्री तुलसी का दूरदर्शी चिंतन का सुश्रम बोल रहा है।
तेरापंथ समाज में ज्ञानशाला, किशोर मंडल, कन्या मंडल, युवक परिषद, महिला मंडल आदि के कारण हम नित नई प्रतिभाओं को देख रहे हैं। साहित्य निर्माण का कार्य संघ प्रभावना का मुख्य कारण है। आगम संपादन, अणुव्रत साहित्य, प्रेक्षा ध्यान साहित्य, जीवन विज्ञान, इतिहास तत्त्व, कथा गीत आदि-आदि अनेक विधाओं से लिखा गया साहित्य जनप्रिय बना।
आचार्य तुलसी के पंजाब से कन्याकुमारी तक की पैदल यात्रा करके इंसान को इंसान बनाने का महनीय कार्य किया। उनके अवदानों को प्रस्तुत करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान होगा। पूर्ण स्वस्थ अवस्था में आपने आचार्य पद का विसर्जन कर अपने सक्षम उत्तराधिकारी युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य महाप्रज्ञ बनाकर श्लाघनीय कार्य किया। जो आज के इस पद-लिप्सित युग के लिए बोधपाठ बन गया।
आपको सरकार, धर्मसंघ, समाज और संस्थाओं से समय-समय पर सम्मानित किया गया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, भारत ज्योति, युगप्रधान, वाग्पति, गणाधिपति, हकीम खाँ, सूर खाँ आदि-आदि।
आचार्य श्री तुलसी के 107 वें जन्म दिवस पर शत शत नमन। उनके द्वारा दर्शित पथ पर चलकर उनकी स्मृति करने का प्रयास करें।