-विधि आयोग जल्द ही एक देश एक चुनाव मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप सकता है. रिपोर्ट को लेकर सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि प्रारूप पर सहमति बन जाने के बाद अगले पांच साल तो विधान सभाओं के कार्यकाल, चुनाव को एक देश एक चुनाव के हिसाब से एडजस्ट करने में लग जाएंगे.

नई दिल्ली,।एक देश एक चुनाव मुद्दे पर विधि आयोग जल्द ही अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेगा. इस मामले पर सात महीने पहले यानी फरवरी से ही राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों से बातचीत कर 22 वें विधि आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर ली है. रिपोर्ट को लेकर सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि प्रारूप पर सहमति बन जाने के बाद अगले पांच साल तो विधान सभाओं के कार्यकाल, चुनाव को एक देश एक चुनाव के हिसाब से एडजस्ट करने में लग जाएंगे. सब कुछ नियोजित ढंग से चला तो 2029 के चुनाव एक समय पर एक साथ किए जा सकेंगे. 

आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अगुआई में चले इस अभियान को लेकर विधि आयोग के सूत्रों का कहना है कि अपनी रिपोर्ट में 21 वें विधि आयोग और उससे पहले के आयोगों की रिपोर्ट और उनमें दिए गए तर्कों, परिस्थितियों का भी हवाला दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बीएस चौहान की अगुआई में 21वें विधि आयोग ने पहले ग्राउंड वर्क करने की बात कही थी. बिना ग्राउंड वर्क के अचानक इस व्यवस्था को लागू करने को असंभव बताया था. मौजूदा विधि आयोग ने उसी ग्राउंड वर्क पर काम किया है.

*समिति को भेजें रिपोर्ट*
आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अवस्थी का कहना है कि उम्मीद है सरकार इस रिपोर्ट को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के पास भी भेजे. फिलहाल तो फरवरी से अब तक विधि आयोग की अथक कवायद में राजनीतिक दलों के बीच एकराय तो नहीं है. सबके अपने-अपने नजरिए हैं.

-करने होंगे पांच संशोधन
पिछले विधि आयोगों ने भी विधान सभाओं के कार्यकाल में एकरूपता लाने, अविश्वास प्रस्ताव पास होने, सरकार बीच कार्यकाल में ही गिर जाने, मध्यावधि चुनाव की परिस्थिति आने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया तय करने की बात कही थी. इसके लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे. निर्वाचन आयोग में भी उच्च पदस्थ सूत्रों का यही कहना है कि हम तो हमेशा चुनावी तैयारियों में जुटे ही रहते हैं. हमें तो समुचित समय पहले बता दिया जाए तो सब कुछ संभव हो पारित कर दे. हमारा काम उसके बाद शुरू होगा. यानी पहले नींव पड़  जाए तो निर्वाचन आयोग ऊंची इमारत बना देगा.

-1967 तक होते थे एक साथ चुनाव
बता दें कि आजाद भारत में ‘एक देश-एक चुनाव’ की बात बहुत पहले से कही जाती रही है. पहले की सरकारों में भी इस पर बात होती रही है. हालांकि कुछ रिपोर्ट आदि से आगे कभी मामला नहीं बढ़ा. थोड़ा और पीछे चलें तो यह भी एक सत्य-तथ्य है कि, भारत में, 1967 तक एक साथ चुनाव कराने का चलन था.

लेकिन 1968 और 1969 में कुछ विधान सभाओं और दिसंबर 1970 में लोकसभा के विघटन के बाद, चुनाव अलग से कराए जा रहे हैं. हालांकि दोबारा से एक साथ चुनाव कराने की संभावना 1983 में चुनाव आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में उठाई गई थी. इसके बाद में तीन अन्य रिपोर्ट में इस अवधारणा से जुड़े और पहलुओं पर गहनता से अध्ययन किया गया.