देशनोक। व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए विद्रोह होते हैं, समाज के लिए आंदोलन होते हैं लेकिन गौमाता संरक्षण के लिए कोई आवाज नहीं उठाता। सरकार भी तवज्जो इसलिए नहीं देती क्योंकि गौरक्षकों की संख्या कम है। यह उद्गार देशनोक की करणी गौशाला में ग्वालसंत व भैरव उपासक गोपाल महाराज ने प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते हुए कही। नाम की चाह न रखने वाले उक्त संत को गौपालक, ग्वाल संत तथा गुरुजी नाम से ही सम्बोधित किया जा रहा है। महाराजश्री ने कहा कि गाय केवल दूध देने वाला पशु नहीं बल्कि हमारी माता है। गोबर, मूत्र, दुग्ध के साथ-साथ गाय का सान्निध्य भी किसी देवकृपा से कम नहीं है।

गौ-गुरु-गोविन्द कथा
नौ दिवसीय गो-गुरु-गोविन्द कथा का आयोजन 20 जुलाई शुक्रवार से हो रहा है। नौ दिवसीय इस आयोजन में आरती, हवन योग शिविर, वेदान्त प्रवचन, चिकित्सा शिविर तथा 11 बजे से दोपहर तीन बजे तक गो-गुरु-गोविन्द कथा का आयोजन होगा। भोजन प्रसादी, गुरु दीक्षा, विशेष सत्संग एवं भजन तथा रात्रि में भक्त कलाकारों द्वारा रात्रि जागरण, सुन्दरकांड पाठ आदि धार्मिक आयोजन होंगे। इसके साथ ही 27 जुलाई को महागुरु पूजन तथा 28 जुलाई को संन्यास एवं उत्तराधिकार चादर ओढ़ाई का आयोजन होगा। इससे पूर्व 20 जुलाई को प्रात: 10 बजे करणी माता मंदिर से कलश यात्रा के साथ श्री करणी गौशाला कथा स्थल पर कार्यक्रमों का शुभारम्भ होगा। कथा का धेनू चैनल व आस्था भजन चैनल पर भी दोपहर 11 से 3 बजे तक सीधा प्रसारण होगा।

गौसेवा के लिए सर्वस्व समर्पित
यह ऐसे ग्वाल संत हैं जो अन्न नहीं खाते, सदैव नंगे पांव पैदल ही चलते हैं, वाहन में नहीं बैठते। रूपयों-पैसों को स्पर्श नहीं करते हैं। किसी से दान, चंदा, भेंट, दक्षिणा, उपहार नहीं लेते हैं। कोई आश्रम नहीं, ट्रस्ट नहीं, संस्था नहीं। कपड़ों के जेब नहीं, बैंक में खाता नहीं ना कोई रसीद बुक ना कोई दान पेटी। पद प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, स्वागत-सत्कार माला इत्यादि स्वीकार नहीं करते हैं। कथा प्रवचन की प्रचार सामग्री पर अपना नाम व चित्र नहीं छपवाते हैं। नित्य एक पेड़ लगाकर पर्यावरण के प्रति जागृति पैदा करते हें। नित्य गो महिमा सुनाकर घर-घर गोमाता बंधवा कर गो सेवा को बल प्रदान करते हैं।

31 वर्षों के लिए दृढ़संकल्पित

ग्वाल संत गोरक्षा व पर्यावरण रक्षा तथा विश्व कल्याण के भाव को लेकर 31 वर्षों तक पैदल चलकर पूरे भारत में गौसेवा के प्रति जागरूकता फैलाएंगे। फिलहाल इस क्रम को शुरू हुए लगभग पौने छह साल हो गए हैं। हर वर्ष गुरु पूर्णिमा को दो दिन का विराम लेते हैं और इन पौने छह वर्षों में देशनोक ही ऐसा स्थान है जहां नौ दिवस रूक कर गो-गुरु-गोविन्द कथा का आयोजन कर रहे हैं। अभी तक 48 हजार किमी की पैदल यात्रा नंगे पांव करते हुए 9900 गांवों, कस्बों, शहरों में गौसेवा की अलख जगाई है।