रक्षा बंधन पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा। बरसों पश्चात यह पहला अवसर होगा जब रक्षा बंधन पर भद्रा का साया नहीं रहेगा। इस बार भद्रा सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो रही है। इस कारण राखी बांधने में किसी प्रकार से भद्रा का दोष नहीं रहेगा। इस बार पूर्णिमा की तिथि शाम 5.25 तक रहेगी। चार वर्ष पश्चात यह पहला अवसर होगा जब रक्षा बंधन पर भद्रा काल का साया नहीं रहेगा। रविवार को पूरे दिन ही बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांध सकती है, लेकिन प्रात 10.45 से 12.22 तक लाभ वेला और 12.22 से 1.58 तक अमृत वेला रहेगी। वहीं 11.56 से 12.47 तक अभिजित मुहूर्त श्रेष्ठ रहेगा। इस बार घनिष्ठा नक्षत्र 12.35 तक रहेगा।
यह पंचक नक्षत्र है तथा रक्षा बंधन के लिए उपयुक्त है। भद्रा काल में नहीं होते है मांगलिक कार्य किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि भद्राकाल में मंगल-उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनि की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं। हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण।
इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं।(PB)