बीकानेर। महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर के तत्वावधान में साहित्य अकादमी , नई दिल्ली के राजस्थानी विभाग की ओर से दो दिवसीय संगोष्ठी सोमवार को शुरू हुई। मुख्य अतिथि शिवबाड़ी के लालेश्वर महादेव मंदिर के अधिष्ठाता स्वामी संवित् सोमगिरि महाराज ने कहा कि लोक क्षेत्र की चिकित्सा साहित्यकार ही करते हंै। राजस्थानी बहुत गहरी भाषा है । भाषा ही क्षेत्र के लोगों की पहचान भी होती है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने से राजस्थान का साहित्य, संस्कृति व कला में श्रीवृद्धि होगी।
विशिष्ट अतिथि कुलपति प्रो. भगीरथ सिंह ने कहा कि राजस्थानी भाषा के विकास के लिए अनेक प्रकार की संकल्प यात्राओं की आवश्यकता है ,जिससे राजस्थानी का विकास किया जा सके। उन्होंने कहा कि हर मनुष्य को मातृभाषा मे शिक्षा का अधिकार है, हमें यह अधिकार मिलना चाहिए। यह अधिकार दूसरी भाषाओं को मिला हुआ है। राजस्थानी भाषा एक बोली नहीं होकर पूर्णतया समृद्ध राजस्थान के लोगों मे जड़़ो से जुड़ी हुई भाषा है।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में राजस्थानी में पीएच.डी. शुरू की गई है और जिसके सभी छात्रों को 5 हजार रू मासिक व स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों को 3 हजार रूपये मासिक आर्थिक सहायता मिलेगी। राजस्थानी भाषा के ग्रन्थों का प्रकाशन महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय करवायेगा। स्वागत भाषण अकादमी प्रतिनिधि ज्योति कृष्ण वर्मा ने दिया व कहा कि मान्यता प्राप्त चैबीस भाषाओं के साहित्य पर अनेक पुस्तकों के प्रकाशन पर काम किया जाता है। अकादमी प्रतिवर्ष चार सौ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन करवाती है। साथ ही देशभर मे विभिन्न प्रकार के आयोजन करवाती है जिसमें संगोष्ठी आदि कार्यक्रम सम्मिलित होते हैं। संस्कृत की त्रैमासिक पत्रिका भी अकादमी द्वारा प्रकाशित की जाती है।
विषय प्रवर्तन करते हुए राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल साहित्य आकदमी के संयोजक मधु आचार्य ‘आशावादीÓ ने कहा कि मनुष्यता को बचाने के लिए भाषा का योगदान बहुत अधिक है। बाल साहित्य लोक कला साहित्य जैसी अनेक विद्या से राजस्थानी भरी पडी है। कन्नड, बंगाली, मराठी आदि भाषा के साथ कही भी राजस्थानी पीछे नही है । इनके बराबर राजस्थानी भाषा भी खडी है। राजस्थानी साहित्यकारों के पास कहानियंों का भण्डार है, पत्रवाचन बहुत ही महत्वपूर्ण है। दो दिन राजस्थानी कहानियों का गहनता से मंथन करेंगे।
कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. सोहन दान चारण ने कहा कि राजस्थानी कहानी का फैलाव कण्ठ से कलम तक है। कहानी का निर्धारण बहुत मुश्किल कार्य है। ‘बात सांची भली पोथी बांची भलीÓ के मूलमंत्र पर आधारित अपने विचारों में उन्होंने कहा कि प्रदेश की आधुनिक कहानियों से राजस्थानी कहानियां पीछे नही है। राजस्थानी कहानीकार अपनी सामाजिक सरोकार निभाते है, राजस्थानी कहानी में सामाजिक परिस्थितियों का एकल समायोजन है। कहानीकार का दायित्व होता है कि वह अपने समय का सत्य दिखाए।
कार्यक्रम समन्वयक राजस्थानी विभाग की प्रभारी डॉ. मेघना शर्मा ने अतिथियों का परिचय दिया तथा आयोजन का महत्व बताया। डॉ. शर्मा ने बताया कि संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मीठेश निर्मोही की अध्यक्षता में जितेन्द्र निर्मोही, मनोज स्वामी व अशोक व्यास ने राजस्थानी कहानी में परम्परा, संस्कृति और बदलाव विषय पर चर्चा की। दूसरे सत्र में कमला कमलेश की अध्यक्षता में अरविन्द सिंह आसिया, भरत ओला, दिनेश पांचाल ने राजस्थानी कहानियों में स्त्री विमर्श, दलित विमर्श व कहानी में संघर्ष व संवेदना की बात की। संगोष्ठी में डॉ. नीरज दईया, कृष्ण कमार आशु, देवकिसन राजपुरोहित, बुलाकी शर्मा, राजेन्द्र जोशी, मालचंद तिवाडी, हरीश बी शर्मा, डॉ. अजय जोशी, कमल रंगा, राजकुमार घोटड, डॉ. नितिन गोयल, इरशाद अजीज, नगेन्द्र किराडू, अरूण शर्मा, डॉ. विक्रमजीत, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ. बि_ल बिस्सा व डॉ. अभिषेक वशिष्ठ आदि रचनाकार मौजूद थे।