जोधपुर/जयपुर। भारत के मुख्य न्यायाधीश एच. एल. दत्तु ने रविवार को राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में अपने सम्बोधन में कहा कि सकारात्मक सोच के साथ अथक परिश्रम, ईमानदारी एवं मानवीयता की भावना जीवन की सफलता के मूलमंत्र हैं।
सर्वोच्च न्यायालय भारत के मुख्य न्यायाधीश दत्तु ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि एच एच एच यानि हार्ड वर्क, ऑनेस्टी व ह्युमिनिटी से व्यक्ति की जीवन शैली में अच्छे सुविचार के साथ माइन्ड सैट में बदलाव आता है। नकारात्मकता की ओर नहीं देखें बल्कि अच्छे के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। उन्होंनें ’तो रा मन दर्पण कहलाए’ गीत की एक-एक पंक्ति और रोबर्ट फ्रास्ट की कविता को प्रस्तुत कर विधि विद्यार्थियों को सकारात्मक सोच रखने, अथक परिश्रम, ईमानदारी व मानवीयता के साथ कार्य करने के प्रति प्रेरित किया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सत्यनिष्ठा हमारे विधि क्षेत्र की बहुत बड़ी ताकत है। यही हमें विपरीत परिस्थितियों में न्याय का दामन थामे रखना सिखाती है। उन्होंने इस सम्बन्ध में महाभारत के ’य तो धर्मास्थ तपो जया’ का उद्घरण प्रस्तुत किया और कहा कि हमें विकसित भारत का विजन लेकर आगे बढऩा है। लॉ युनिवर्सिटीज् का काम जॉब रेडी वर्कर तैयार करना नहीं है बल्कि ऐसा नेतृत्व तैयार करना है जो समाज के मूल्यों व संस्कृति को समझकर नेतृत्व कर सकें।
उन्होंने कहा कि विधि क्षेत्र को समाज में नोबल प्रोफेशन और वकील को एक शिक्षित समाज में महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जाता है। नोबल पेशे में आज इस लॉ विश्वविद्यालय के विधि विद्यार्थियों ने प्रवेश किया है। इसका उनको गर्व होना चाहिए कि वे इसका हिस्सा बन रहे हैं। इसके साथ यह भी सोचना होगा कि उनको समाज भी उसी तरह देखता है। उन्होंने कहा कि न्याय कोई वस्तु नहीं जिसे बेचा जा सके या नीलामी की जा सके। न्याय एक सेवा है। युवाओं के लिए आवश्यक है वे अपनी अन्तर-आत्मा में झांके और ऐसे लोगों की सहायता करें जिनको जरूरत है।
उन्होंने कहा कि लोक अदालत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके उद्देश्यों को पाने में सफलता मिली है इसकी संतुष्टि है। दूसरी लोक अदालत में सवा करोड़ मामले निस्तारित हुए जो पिछली लोक अदालत से दुगुने हैं। न्याय पाने के लिए लोगों में व्याकुलता है। किसी भी विवाद या झगड़े को आपसी समझाईश से पहले ही सुलझा दिया जाना चाहिए। न्यायालयों को आखिरी आशा के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी रक्षा करो जो रक्षाहीन है, उनका प्रतिनिधित्व करो जिनका कोई प्रतिनिधित्व करने वाला नहीं है। उनके लिए बहस करो जिनके लिए बहस करने वाला कोई नहीं है। तथ्यों का अध्ययन करके ही मैटर लो जिनमें तथ्यात्मकता हो। केवल कानून के कारीगर मत बनो बल्कि वास्तुकार बनो।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय को देश की श्रेष्ठ संस्थान बताया और कहा कि इससे सिद्घ होता है कि दीक्षान्त समारोह में उपस्थित यहां के विद्यार्थी भविष्य के सितारे हैं। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए नवाचार की आवश्यकता हो, इसके लिए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। विधि क्षेत्र में जो शिक्षण संस्थाएं हैं उनमें नेशनल लॉ युनिवर्सिटी जोधपुर महत्वपूर्ण है और अच्छे शिक्षण की कसौटी पर खरा उतरता है इस विश्वविद्यालय ने अन्य संस्थाओं को भी राह दिखायी है। विशिष्ट विषयों पर उच्च स्तरीय कार्यशालाओं के साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विधि क्षेत्र में एम ओ यू भी साईन किए हैं।
कार्यक्रम की शुरूआत राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सुनील अम्बवानी ने की। प्रारम्भ में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम सक्सेना ने स्वागत उद्बोधन एवं विश्वविद्यालय की वार्षिक प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने दीक्षान्त समारोह में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रथम रहने वाले विद्यार्थियों एवं अन्य मेधावी छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक प्रदान किए। कुलाधिपति एवं कुलपति ने वर्ष 2014 में उत्तीर्ण 86 स्नातक एवं 104 स्नातकोत्तर विद्यार्थियों तथा 9 पी एच डी शोधार्थियों को उपाधि प्रदान की। इसका संचालन विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार सोहनलाल शर्मा ने किया। कार्यक्रम में युनिवर्सिटी के विभिन्न कौंसिल सदस्यगण, न्यायाधीशगण, न्यायिक, प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारी, विद्यार्थीगण तथा गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।