नई दिल्ली। मतदान के तुरंत बाद आए इन सर्वेक्षणों ने 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में आप को 31 से 53 तक सीटें दी हैं। इन सभी प्रमुख सर्वेक्षणों का औसत निकालें तो आप को 43 और भाजपा को 26 सीट मिलती दिखती हैं। सात ऐसे प्रमुख सर्वेक्षणों में सिर्फ एक ने ही भाजपा को बढ़त मिलती दिखाई है। उधर, दो से तीन सीटों के साथ सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी यहां से विलुप्त होती दिखाई दे रही है।
इन सर्वेक्षणों का संकेत है कि पिछली बार 28 सीटें हासिल कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने वाली आप के 49 दिनों के काम-काज को दिल्ली के लोगों ने पसंद करते हुए उसे दुबारा मौका देने का मन बनाया है। नतीजों की घोषणा चुनाव आयोग मंगलवार को मतों की गिनती के बाद करेगा। लेकिन फिलहाल संकेत यही है कि भाजपा ने यहां जिस तरह का नकारात्मक प्रचार अभियान चलाया था, वह कामयाब नहीं हुआ।
एक्जिट पोल के नतीजों के बाद किरण बेदी ने दावा किया कि अभी अंतिम नतीजों में काफी बदलाव हो सकता है, लेकिन उनकी बातों से निराशा झलकती हुई दिखाई दी। उन्होंने कहा कि मंगलवार को नतीजा जो भी आएगा, वे उसका सम्मान करेंगी। साथ ही उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के लिए पार्टी का धन्यवाद भी अदा किया।
उधर, आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर के कहा है कि उन्होंने अपना काम ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से किया। अब फल भगवान के हाथ में है। साथ ही उन्होंने अंतिम नतीजे इसी अनुरूप आने की उम्मीद जताते हुए कहा कि दिल्ली वालों ने जाति और धर्म की राजनीति को नकार दिया है।
हाल के झारखंड, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन कर चुकी भाजपा को दिल्ली में आप से मिल रही चुनौती का अंदाजा पहले ही हो गया था। इसी वजह से इन सभी विधानसभा चुनावों में सिर्फ मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा ने यहां अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया। पार्टी ने सभी प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों सहित सभी प्रमुख चेहरों को चुनाव में पूरी तरह झोंक दिया था। सारी तैयारियों की कमान खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह संभाल रहे थे।
इसके बावजूद भाजपा यहां जीत से थोड़ी पीछे रहती दिखाई दे रही है तो इसके पीछे आप की रणनीति का भी हाथ है। इस पार्टी ने ना सिर्फ चुनाव घोषित होने से भी कई महीने पहले से ही जमीनी स्तर पर अपनी तैयारी शुरू कर दी थी, बल्कि अपने घोषणापत्र में सस्ती बिजली और पानी सहित बहुत से लोकलुभावन वादे किए थे। दूसरी तरफ भाजपा ने इस चुनाव में अपने घोषणापत्र के बजाय विजन डॉक्यूमेंट रखा था।