OmExpress News / Jaipur / ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’, ‘ज्योत से ज्योत जगाते चलो’, ‘सारंगा तेरी याद में’ गानों से देश ही नहीं विदेशों में पहचान बनाने वाले हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार पंडित भरत व्यास (Lyricist Bharat Vyas) का जन्म आज के दिन 06 जनवरी 1918 को बीकानेर में हुआ।
बचपन से ही उनके अंदर कवि प्रतिभा दिखने लगी थी। उनके द्वारा रामु चत्रा नामक नाटक भी लिखा गया था। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी भूमिका निभाई लेकिन प्रसिद्धि गीत लेखन शैली ही मिली थी। उनका लिखा प्रथम गीत था – `आओ वीरो हिलमिल गाए वंदे मातरम`।
डूंगर कॉलेज वॉलीबॉल टीम के थे कप्तान
पंडित भरत व्यास जाति से पुष्करना ब्राह्मण थे। बचपन से ही इनमें कवि प्रतिभा देखने लगी थी। उन्होंने 17-18 वर्ष की आयु में लेखन शुरू कर दिया था। व्यास जी जब 2 वर्ष के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया था और इस तरह उन्होंने अपने जीवन के आरंभ में ही कठिनाइयों की एक बड़ी चुनौती का सामना किया था। भरत जी बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे और उनके अंदर का कवि छोटी आयु से ही प्रकट होने लगा था। मजबूत कद काठी के धनी भरत व्यास डूंगर कॉलेज बीकानेर में अध्ययन के दौरान वॉलीबॉल टीम के कप्तान भी रह चुके थे।
स्कूल समय से ही करने लगे थे तुकबंदी
भरत जी ने प्राथमिक शिक्षा से लेकर हाईस्कूल की तक शिक्षा चूरू में ही ग्रहण की। चूरू के लक्ष्मीनारायण बागला हाई स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा पास होने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए बीकानेर के डूंगर कॉलेज में दाखिला लिया। स्कूल समय में ही वे तुकबंदी करने लगे थे और फिल्मी गीतों की पैरोडी में भी उन्होंने दक्षत्ता हासिल कर ली।
प्रथम गीत ‘आओ वीरो हिलमिल गाए वंदे मातरम’
उनका लिखा पहला गीत था- आओ वीरो हिलमिल गाए वंदे मातरम था। उनके द्वारा रामू चन्ना नामक नाटक भी लिखा गया था। 1942 के बाद वे मुंबई में आ गए और उन्होंने कुछ फिल्मों में भी भूमिका निभाई लेकिन उन्हे प्रसिद्धि गीत लेखन से ही मिली। उन्होंने दो आंखें बारह हाथ, नवरंग, बूंद जो बन गई मोती जैसी फिल्मों में गीत लिखे थे।
नौकरी की तलाश में गए कोलकाता
बीकानेर से कॉमर्स विषय में इंटर करने के बाद वे नौकरी की तलाश में कोलकाता चले गए लेकिन उनके भाग्य में शायद कुछ और ही लिखा था कि इस दौरान उन्होंने पर रंगमंच अभिनय में भी हाथ आजमाया और अच्छे अभिनेता बन गए। अभिनेता गीतकार भरत व्यास ने शायद यह तय कर लिया था कि आखिर एक दिन भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर रहेंगे।
नाटक ‘रामू चनणा’ एवं ‘ढोला मरवण’ के किए जोरदार शो
चूरू में वे लगातार रंगमंच पर सक्रिय थे और एक अच्छे रंगकर्मी के रूप में उनकी पहचान भी बनी लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पहली कामयाबी उन्हें तब मिली जब कोलकाता के प्राचीन अल्फ्रेड थिएटर से उनका नाटक रंगीला मारवाड़ दिखाया गया। इस सफलता से भारत जी को काफी प्रसिद्धि मिली और यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई और इस नाटक के बाद उन्हें ‘रामू चनणा’ एवं ‘ढोला मरवण’ के भी जोरदार शो किए। यह नाटक भरत जी के दावरा ही लिखे गए थे।
किस्मत चमकाने पहुंचे सपनों की नगरी मुंबई
उन्होने कोलकाता में एक प्रदर्शित नाटक ‘मोरध्वज’ में भी शानदार भूमिका निभाई और दूसरे विश्व युद्ध के समय भारत व्यास कोलकाता से लौट आए और कुछ समय के लिए बीकानेर में रहे थे। उसके बाद में वे अपने एक साथी के जरिए अपनी किस्मत चमकाने सपनों की नगरी मुंबई पहुंच गए और वहां उन्होंने गीत के जरिए इतिहास बनाना शुरू कर दिया था।
फिल्म ‘दुहाई’ से मिला पहला ब्रेक, मिले ₹10 बतौर परिश्रमिक
फिल्म निर्देशक और अनुज बी. एम. व्यास ने भरत जी को फिल्मी दुनिया में ब्रेक दिया और फिल्म ‘दुहाई’ के लिए उन्होंने भरत जी का पहला गीत खरीदा और ₹10 बतौर परिश्रमिक दिए। उन्होंने इस अवसर का खूब फायदा उठाया और एक से बढ़कर एक गीत लिखते गए। सफलता उनके कदम चूमती रही और वह फिल्मी दुनिया के प्रसिद्ध गीतकार बन गए।
आज भी तरोताज़ा क्र देते हैं उनके गीत
आधा है चंद्रमा, रात आंधी, जरा सामने तो आओ छलिए, ए मालिक तेरे बंदे हम, जा तोसे नहीं बोलू, घूंघट नहीं खोलूंगी, चाहे पास हो दूर हो, तू छुपी हो कहां, मैं तड़पता यहां, जोत से जोत जलाते चलो, कहा भी न जाए, चुप रहा भी ना जाए जैसे भारत जी की कलम से निकले जाने कितने ही गीत है जो आज बरसों बीत जाने के बाद भी उतने ही ताजा हाय और सुनने वालों को तरोताजा कर देते हैं।
भारत व्यास के प्रमुख गीत
आधा है चंद्रमा, रात आधी – फिल्म नवरंग
जरा सामने तो आओ छलिये – जनम -जनम के फेरे
चली राधे रानी भर अंखियों में पानी अपने – परिणीता
ऐ मालिक तेरे बंदे हम – दो आंखें बारह हाथ
ओ चांद ना इतराना – मन की जीत
जा तोसे नहीं बोलू, घूंघट नहीं खोलूं – सम्राट चंद्रगुप्त
तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां – नवरंग
जोत से जोत जलाते चलो – संत ज्ञानेश्वर
कहा भी न जाए, चुप रहा भी ना जाए – बेदर्द जमाना क्या करें क्या जाने
निर्बल की लड़ाई बलवान की, यह कहानी – तूफान और दिया ( 1965 का सर्वश्रेष्ठ गीत)
आ लौट के आजा मेरे गीत – रानी रूपमती
चाहे पास हो चाहे दूर हो – सम्राट चंद्रगुप्त