अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान की प्रतिक्रिया से डरकर शनिवार को भी तेहरान को धमकी दी थी। ट्रंप ने अपने ट्वीट में दावा किया था कि अगर ईरान ने जनरल क़ासिम सुलैमानी की हत्या की प्रतिक्रिया में अमेरिकी हितों को लक्ष्य बनाया तो वाशिंग्टन ईरान के अंदर 52 स्थानों को लक्ष्य बनायेगा।
अमेरिका की इस धमकी के जवाब में इस्लामी क्रांति के संरक्षक बल सिपाहे पासदारान आईआरजीसी के वरिष्ठ कमांडर जनरल हुसैन सलामी ने अमेरिका को चेतावनी दी और कहा था कि जनरल क़ासिम सुलैमानी का स्ट्रैटेजिक प्रतिशोध लिया जायेगा जो निश्चित रूप से क्षेत्र में अमेरिका की सैनिक उपस्थिति का अंत हो जायेगा।
जानकार हल्कों का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा बार- बार ईरान को धमकी उनके भय को दर्शाती है और उन्हें और उनकी युद्धोन्मादी टोली को अच्छी तरह पता है कि ईरान जनरल शहीद क़ासिम की शहादत का बदला ज़रूर लेगा।
इसी प्रकार इन जानकारों का मानना है कि अगर ट्रंप और उनकी युद्धोन्मादी मंडली को ईरान की धमकी पर विश्वास न होता तो वह बार-बार ईरान को धमकी न देते और बारबार तेहरान को धमकी देकर यह चाह रहे हैं कि ईरान प्रतिशोध लेने से पीछे हट जाये परंतु अगर ट्रंप को इतिहास की सही जानकारी होती तो कभी भी ईरान को डराने की विफल कोशिश न करते क्योंकि इन जानकार हल्कों के विचार में अगर ईरान ट्रंप से जैसे लोगों से डरता तो इस्लामी क्रांति न तो आती और न ही सफल होती और ट्रंप को शायद यह पता नहीं है कि इस्लामी क्रांति को विफल बनाने के लिए अमेरिका ने अपने पिट्ठू शाह का व्यापक समर्थन दिया था परंतु अमेरिका और उसके घटकों की समस्त शैतानी चालों पर पानी फिर गया और गत 41 वर्षों से ईरान की इस्लामी क्रांति के खिलाफ किसी भी प्रकार के षडयंत्र व प्रयास में संकोच से काम नहीं ले रहे हैं परंतु ईरान विश्व साम्राज्यवादियों के मुकाबले में अदम्य साहस के साथ डटा है।