बीकानेर। राज्यपाल एवं राजुवास के कुलाधिपति कल्याण सिंह ने बुधवार को राजस्थान पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान की 1127 उपाधियां प्रदान कर 57 छात्रा-छात्राओं को स्वर्ण पदकों से नवाजा। 917 स्नातक, 199 स्नातकोत्तर और 11 विद्यार्थियों को विद्या-वाचस्पति की उपाधियां प्रदान की गई। विश्वविद्यालय परिसर में सेना बैंड की स्वरलहरियों के बीच दीक्षांत शोभा यात्रा के पंडाल में प्रवेश के बाद कुलाधिपति की अनुमति से दीक्षांत समारोह शुरू हुआ।
दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल एवं कुलाधिपति ने अपने सम्बोधन में कहा कि दीक्षांत एक ऐतिहासिक अवसर होता है, जिसके पीछे विश्वविद्यालय का सपना, प्रतिबद्धता नवाचार के साथ शिक्षकों, कर्मचारियों व विद्यार्थियों की कड़ी मेहनत होती है। डिग्रियां प्राप्त करने वाले विद्यार्थी राज्य के साथ ही राष्ट्र के लिए एक महत्वपूर्ण मानव संसाधन हैं। भारत एक ऋषि और कृषि प्रधान देश है। कृषि और पशुपालन का गहरा संबंध है जो किसान की जिंदगी और मौत से जुड़ा है। राज्य के लगभग 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों की आय का साधन पशुपालन है अतः पशुचिकित्सक सेवा भाव को लेकर अपने कार्य क्षेत्रा में जाएं और पशुपालकों के लिए कार्य करें। यह विश्वविद्यालय पशुपालन के क्षेत्रा मेें विकास के लिए अनुसंधान और प्रसार का कार्य तीव्र गति से कर रहा है।
राज्यपाल ने अभी हाल ही में हुए चुनावों का जिक्र करते हुए कहा कि चुने हुए प्रतिनिधियों को मेरी सलाह है कि विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में पढ़ाई का अनुकूल वातावरण बनाए रखें। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में असामाजिक गतिविधियों, गुटबाजी, छेड़छाड़ और रैगिंग को किसी भी कीमत पर बर्दास्त
न किया जाए। नकल मुक्त परीक्षाओं की शुचिता एवं गंभीरता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाए। उन्होंने वेटरनरी विश्वविद्यालय के ई-मॉडल के लिए सभी को बधाई देते हुए कहा कि यह एक आदर्श प्रयास है जिसे राज्य के सभी विश्वविद्यालयों को लागू करना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि कृषक देश का उत्पादक और बड़ा उपभोक्ता भी है अतः कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार जरूरी है। अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, अनावृष्टि, ओला-पाला और ख्ेातीहर रोगों से कृषक को बचाने के लिए उसकी फसलों और पशुओं का बीमा करवाया जाना चाहिए।
पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ए.के. गहलोत ने दीक्षांत समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि राजुवास अपनी स्थापना के अल्पकाल में शैक्षणिक, अनुसंधान और प्रसार शिक्षा के क्षेत्रा में पशुचिकित्सा में आधुनिक तकनीक और कार्यप्रणाली का समावेश करके आगे बढ़ रहा है। विश्वविद्यालय का दो तिहाई कार्य पूरी तरह से ई-गर्वनेन्स के तहत किया जाकर पांच वर्षों में आर्थिक संसाधनों में 900 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि की है। इस अवधि में अनुसंधान केन्द्रों की संख्या 5 से बढ़कर 8 हो गई है तथा प्रसार शिक्षा के लिए 10 जिलों में पशुचिकित्सा प्रशिक्षण और अनुसंधान केन्द्र शुरू किये गए हैं। जहां पहले 9-10 प्रोजेक्ट चल रहे थे, वहां अब 45 अनुसंधान परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं। विश्वविद्यालय ने पिछले पांच वर्षों में स्नातकोत्तर स्तर की सीटों को दो गुना तथा पी.एच.डी. की सीटों को तीन गुना अधिक कर दिया है।
मुख्य अतिथि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के उपमहानिदेशक (कृषि शिक्षा) डॉ. एन.एस. राठौड़ ने अपने दीक्षांत भाषण में कहा कि पशुचिकित्सा क्षेत्रा में कार्य करने की विपुल संभावनाएं मौजूद हैं। विश्वविद्यालय से निकलने वाले छात्रा के जीवन में 4-टी टेªडिशन (परंपराओं से), टेक्नोलॉजी (तकनीक), टेलेन्ट (हुनर) और टेªनिंग (शिक्षण) का विशेष महत्व है। अब आपको अंतिम टी तक पहुँचकर पशुपालकों और कृषकों की सेवा करनी है। डॉ. राठौड़ ने कहा कि देश के 73 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में अपने कार्यों और दूरदर्शिता से आगे बढ़ते हुए राजुवास ने अग्रणी स्थान बनाया है। राजुवास को आई.सी.ए.आर. की ओर से सभी सहयोग प्रदान किया जाएगा।
दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय पशुचिकित्सा परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. उमेश चन्द्र शर्मा ने नव दीक्षित पशुचिकित्सा छात्रों का आह्वान किया कि समाज के पिछड़े ओर कमजोर वर्ग को पशुपालन से ऊपर लाने के लिए काम करें। खेती में मुनाफे के लिए पशुपालन महत्वपूर्ण है अतः इसके लिए कार्य कर कृषकों की पीड़ा को कम करने के लिए अपना योगदान दें। दीक्षांत समारोह में विशिष्टि अतिथि राज्यपाल के विशेषाधिकारी श्री अजय शंकर पाण्डे शामिल हुए। इसके पहले दीक्षांत समारोह को विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर सीधा प्रसाारित किया गया जिसे देश-विदेश में बैठे लोगों ने भी देखा। समारोह स्थल पर भी एल.ई.डी. की बड़ी स्क्रीन पर दीक्षांत समारोह का सीधा प्रसारण किया गया।
इस अवसर पर स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बी.आर. छींपा. महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. चन्द्रकला पडिया, अरूणा गहलोत, आर्मी जी.ओ.सी. मेजर जनरल जे.के. शर्मा, प्रबन्ध मंडल एवं अकादमिक परिषद् के सदस्य, शहर के गणमान्य नागरिक व प्रशासन के उच्चाधिकारी उपस्थित थे।
11 विद्यार्थियों को मिली विद्या-वाचस्पति की उपाधि
विद्या-वाचस्पति की उपाधि प्राप्त करने वालों में अब्दुल मजीद गनाई, राजेश नेहरा, धर्म सिंह मीना, रमेश कुमार, शिव कुमार शर्मा, संजय कुमार, रेहाब अली इब्राहीम यागी, शिंदे नितीनकुमार गजानन, छोटे सिंह ढाका, साकार पालेचा और मुकेश चन्द पाराशर प्रमुख रहे।
57 विद्यार्थियों को मिले स्वर्ण पदक
पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान स्नात्तक के 6 स्वर्ण पदक प्राप्त करने वालो में विनोद कुमार, प्रमोद कुमार सिंह, ऋचा गौड़, जयश्री धाभाई, आस्था तिवारी और अरूण कुमार थे। स्नातकोत्तर परीक्षा में उच्च स्थान प्राप्त करने वाले पशुचिकित्सा विद्याथियों यथा सुरेश कुमार, धर्म गोपाल गुप्ता, नगेन्द्र सिंह राजपूत, सुमित प्रकाश यादव, रूचि मान, दीपिका गोकलानी, कपिल कच्छवाहा, विकास चतुर्वेदी, दिनेश कुमार जांगिड़, जगबीर सिंह नरवरिया, योगेश कुमार बारोलिया, चन्द्र शेखर सारस्वत, महेन्द्र तंवर, मयंक चतुर्वेदी, ओमप्रकाश चौधरी, जगदीश सिंह, शिखा गुप्ता, निधि पाण्डे, महेन्द्र नागर, जितेन्द्र कुमार दिनोदिया, देवेन्द्र सिंह मनोहर, प्रमोद कुमार, मोनिका करनाणी, शेष आसोपा, प्रियंका, मोहम्मद अशफाक, निशा अरोड़ा, कृष्णा नन्द सिंह, तरूणा भाटी, मधु प्रजापति, निर्मल कुमार दाधीच, उमेद सिंह, गोवर्धन सिंह, अमित कुमार, नवीन कुमार सिंह, संजली सोरेन, संदीप कुमार मील, जसमीत सिंह खोसा, कार्तिक सिंह गौड़, निर्मला कुमारी, संजय कुमार, मोहन लाल यादव, स्वाति रूहील, अनिता मीणा और प्रवीण कुमार कौशिक को स्वर्ण पदक से नवाजा गया। विज्ञान में निष्णात छात्रा स्नेहा चौधरी को भी स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। विद्या-वाचस्पति में उच्च स्थान प्राप्त करने वाले अब्दुल मजीद गनाई, रमेश कुमार, शिव कुमार शर्मा, संजय कुमार और मुकेश चन्द पाराशर को स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
विश्वविद्यालय के प्रकाशनों का राज्यपाल एवं कुलाधिपति व अतिथियों द्वारा विमोचन
प्रो. राजेश कुमार धूड़िया, दिनेशचन्द्र सक्सेना, डॉ. दीपिका गोकलानी, डॉ. सोनल ठाकुर व डॉ. आर.एन. कच्छावा द्वारा लिखित राजुवास विकास पथ पर अग्रसर प्रकाशन का विमोचन राज्यपाल एवं कुलाधिपति द्वारा किया गया। इस प्रकाशन में विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क प्रकोष्ठ द्वारा राजुवास की स्थापना से अब तक पांच वर्षो में किए गए शैक्षणिक, अनुसंधान, प्रसार शिक्षा क्षेत्रा के साथ साथ विश्वविद्यालय की सभी प्रकार की गतिविधियों, कार्यक्रमों, योजनाओं और उपलब्धियों का परिचयात्मक विवरण शामिल किया गया। विश्वविद्यालय में स्थापित एनीमल बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोजल टेक्नॉलोजी सेंटर के प्रो. राकेश राव एवं डॉ. रजनी जोशी द्वारा तैयार बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट मेनुअल का विमोचन भी किया गया। इस मैनुअल में जैवचिकित्सकीय अपशिष्ट निस्तारण की विधियों एवं विधिक आवश्यकताएं सम्मिलित की गयी है। प्रो. राजेश कुमार धूड़िया एवं डॉ. अतुल कुमार जैन द्वारा संपादित वीडियो प्रकाशन वंदन राजुवास का अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया।
राजुवास के कुल गीत ‘‘वंदन-राजुवास की इस वीडियो फिल्म में राजुवास की गतिविधियों को दृश्य रूप में शामिल किया गया है। विश्वविद्यालय में स्थापित पशु जैवविविधिकरण सजीव मॉडल परियोजना द्वारा प्रकाशित विविध पशुधन एवं कुक्कुट पालन मार्गदर्शिका मैनुअल का विमोचन किया गया। प्रो. बंसत बैस, डॉ. रजनी अरोड़ा व डॉ. तारा बोथरा द्वारा संपादित इस मैनुअल में विभिन्न पालतू पशु पक्षियों के सामान्य प्रबंधन एवं उत्पादन का उल्लेख किया गया है जिससे कि पषुपालकों की आय में वृद्धि हो सके।
प्रो. ए.पी. सिंह व डॉ. अशोक गौड़ लिखित पंचगव्य-एक समीक्षा तथा पशुरोगों में होम्योपैथी-एक वैकल्पिक चिकित्सा प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया। पशुचिकित्सा में भी होम्योपैथिक उपचार के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से राजुवास द्वारा इसका प्रकाशन किया गया। प्रो. राजेश कुमार धूड़िया, समन्वयक, जनसम्पर्क प्रकोष्ठ एवं निदेशक प्रसार शिक्षा द्वारा राज्य में पाई जाने वाली स्वदेशी गौवंश की नस्लों यथा राठी, थारपारकर, कांकरेज, साहीवाल, गिर और मालवी के पशुधन अनुसंधान केन्द्रों द्वारा उनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए किए जा रहे कार्यों और उनकी विशेषताओं का विवरण स्वदेशी गौवंश का उन्नयन एवं संवर्द्धन-राजुवास के प्रयास प्रकाशन के रूप में किया गया। डॉ. एस.एन. शर्मा, प्रो. ए.के.गहलोत एवं प्रो. आर.के.तंवर द्वारा लिखित पुस्तक वेटरनरी ज्यूरिस्प्रूडेन्स के गोल्डन जुबिली संस्करण का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया।