-: राजस्थान में सत्ता व संगठन प्रमुखों में नहीं बैठ रहा तालमेल। -: पीसीसी चीफ बदलने के भी कयास
‘पायलट ने कहा मंत्रिमंडल में फेरबदल व राजनीतिक नियुक्तियों का निर्णय सत्ता व संगठन मिलकर करेंगे, आलाकमान के हाथ अंतरिम फैसला’
जयपुर।राजस्थान में सत्ता व संगठन के प्रमुखों के बीच चल रही अदावत थमने का नाम नहीं ले रही। आलाकमान पिछले डेढ़ साल से सत्ता प्रमुख मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व संगठन प्रमुख पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बीच समन्वय स्थापित करने के प्रयास कर रहा है, लेकिन सभी प्रयास विफल होते दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस के दोनों नेताओं के बीच डेढ़ वर्ष पहले सरकार के गठन के दौरान मुख्यमंत्री बनने को लेकर उपजा विवाद अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा, बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस के इन दिग्गजों के बीच वर्चस्व की जंग लगातार जारी है।
इसी बीच सरकार को अस्थिर करने की कोशिश के आरोप, कांग्रेस दिग्गजों द्वारा एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश, पीसीसी चीफ का अपनी ही सरकार को घेरना, राज्यसभा चुनाव के दौरान चला सियासी घटनाक्रम अब अंदरूनी कलह की खाई बनता नजर आ रहा है। माना जा रहा था कि राज्यसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री व पीसीसी चीफ के बीच समन्वय का प्रयास इस बार सफल होगा, लेकिन लगता नहीं कि यह प्रयास इस बार भी सफल हो पाएगा। उल्टा दोनों के बीच खाई बढ़ती नजर आ रही है, राजस्थान के प्रभारी अविनाश पांडे भी दोनों नेताओं के बीच पिछले डेढ़ वर्षों से समन्वय बनाने के प्रयास कर अब शायद थक चुके हैं। राजनीतिक हलकों में तो चर्चा है कि पायलट को अब केंद्र की राजनीति से जोड़ने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं वहीं पीसीसी चीफ किसी अन्य को बनाये जाने की कवायद शुरू हो गई है। राज्य में मंत्रिमंडल फेरबदल व विस्तार, पीसीसी चीफ बदलने व राजनीतिक नियुक्तियों की कवायद के बीच कांग्रेस की राजनीति में शह व मात का खेल अब गति पकड़ चुका है।
हालांकि आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई है मगर गत दो तीन दिनों से राजस्थान कांग्रेस में चल रही राजनीतिक गतिविधियां बताती है कि राजस्थान की कांग्रेस में बड़े स्तर पर उठापटक होने की पूर्ण संभावना है। राजनीतिक गलियारों में पायलट को पीसीसी चीफ हटाने के संकेतों के बाद पायलट समर्थक इस बात की लॉबिंग में जुटे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी उनके पास ही रहे। इसको लेकर पायलट समर्थक मंत्री, विधायक एवं पार्टी नेता लगातार रणनीति बना रहे हैं। इस बारे में पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने भी इस तरह के संकेत देते हुए अपने बयान में कहा है कि उनके बारे में जो भी फैसला लिया जाएगा वो केवल आलाकमान तय करेगा। उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर फ़ोटो बदलकर भी शायद यह संकेत देने का प्रयास किया है कि वे ही पीसीसी चीफ बने रहेंगे। उधर राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत अपनी शैली के अनुरूप हमेशा खामोशी से काम कर जाते हैं, जिसकी वे सामने वाले को कानों कान खबर तक नहीं लगने देते। गत दिनों राज्यसभा चुनाव के दौरान भी वे अपनी चतुराई का प्रदर्शन करते हुए एक तीर से दो निशाने लगाने में सफल हुए। अब भी उनका प्रयास यही है कि आलाकमान को प्रभाव में लेकर राजस्थान की राजनीति की कमान अपने हाथों में ही रखें, फिर चाहे वो मंत्रिमंडल में फेरबदल व विस्तार का मामला हो या फिर पीसीसी चीफ बदलने व राजनीतिक नियुक्तियों का मामला हो।
इन सभी मामलों में वे किसी का दखल नहीं चाहते जबकि पीसीसी चीफ पायलट चाहते हैं कि जिन लोगों ने पिछले सालों में पार्टी को मजबूत किया है, पार्टी को खड़ा रखने में अपना खून पसीना बहाया है उन्हें तवज्जो मिले। पायलट ने मीडिया से बातचीत के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा है कि राजनीति में कब क्या होगा कहा नहीं जा सकता, लेकिन जिसका जहां उपयोग लेना है चाहे वो सत्ता हो या संगठन, उसका फैसला आलाकमान तय करेगा। पायलट का कहना है कि कार्यकर्ताओं के खून पसीने की मेहनत से हम सरकार में आये हैं, उन्हें कैसे इग्नोर किया जा सकता है। पायलट का कहना है कि को-आर्डिंनेशन कमेटी के माध्यम से राजनीतिक नियुक्तियां होंगी। मंत्रिमंडल में फेरबदल सहित सभी निर्णय सत्ता व संगठन मिलकर करेंगे। उन्होंने कहा कि जिन कार्यकर्ताओं का विपक्ष में रहते हुए खूब उपयोग किया गया, उनके मान-सम्मान का बीड़ा मैंने उठाया है जिसे में पूरा करके रहूंगा। खैर जो भी हो राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में सबकुछ सामान्य नहीं है, दोनों ही नेता अपने आपमें दिग्गज हैं।अंदर ही अंदर बहुत कुछ चल रहा है जो जल्द ही सबके सामने होगा।