बीकानेर (मोहन थानवी)। धरती धोरां री; हमारा राजस्थान। इस वीरभूमि पर जाई-जन्मी; पली और संस्कारित; शिक्षित बालिकाएं; बेटियां। मरुधरा के वासी सदा से बेटियों को महत्व देते रहे हैं। बाई-बेटियों के लिए कितने ही पर्व-त्योहार; उत्सव मनाने की यहां परम्परा है। ऐसी ही परम्पराओं में प्रमुख एक है गणगौर। महिलायें इन दिनों आत्मिक रूप से व्यस्त है गणगौर पूजन में । प्रत्येक राजस्थानी परिवार में गणगौर पूजन का उत्सव परिवार में महिलाये और बालिकाएं मनाती रही है । इस वर्ष भी मना रही है । ऐसे ही परम्परा निर्वहन में संलग्न है बीकानेर के ख्यातनाम युवा चित्रकार योगेन्द्र कुमार पुरोहित का परिवार। योगेन्द्र गणगौर पूजन के अपने परिवार की परम्परा के बारे में जो बताते हैं वो उन्हीं के शब्दों में आप भी जानिए; – “मेरी माता जी मेरे जन्म से पहले से ही गणगौर माता का पूजन करती रही है , उनकी अपनी गणगौर और ईसर जी की प्रतिमायें हैं जिन्हें वे हर वर्ष नए रूप श्रृंगार से सुसज्जित करती है । फिर गणगौर के गीत और प्रसाद में भिन्न भिन्न तरह के पकवान भी पकते हैं परिवार में ।
इस बार मेरी माता जी की गणगौर माता ने आराधना खूब अच्छे से सुनी और हमारे परिवार को गणगौर के रूप में उपहार स्वरुप प्रदान की बिटिया । मेरी माता जी गणगौर माता की अनुकंपा से दादी माँ बनी है, सो उनका उत्साह चरम पर है । इस वर्ष भी उन्होंने अपनी गणगौर माता की प्रतिमा को नए श्रृंगार से सुसज्जित किया है । जिसका छाया चित्र मैंने आज फिर लिया है। जानकारी हो २० वर्ष पहले मैंने ही उस गणगौर माता और ईसर देव जी की प्रतिमा को पुनः रंगांकन किया था जो आज भी वैसा का वैसा ही है । कारण है अति संरक्षण; भक्ति भाव से मेरी माता जी के द्वारा अपने गणगौर और ईसर देव जी को अपने परिवार का ही अभिन्न अंग मानना।”
तो ऐसा है हमारे राजस्थान में परिवार के युवाओं; मुखियाओं का बेटियों के प्रति लगाव; चाव और मां; दादी का ममत्व।