बीकानेर । साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और मुक्ति संस्थान की ओर से स्थानीय नेहरु-शारदा पीठ महाविद्यालय में राजस्थानी व्यंग्य विधा पर शनिवार को सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार के उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष साहित्य अकादेमी के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक नाटकार कवि डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा कि राजस्थानी में व्यंग्य साहित्य चेतना जगाने वाला है, व्यंग्य साहित्य का उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं वरन विसंगतियों पर चोट करना होता है जिससे लोक-चेतना को जगाया जा सके। डॉ. चारण ने कहा कि रचना में निहित अभिप्राय समझना और उस पर बात करना रचना लेखन से इतर बात है, सेमिनार में व्यंग्य विधा की रचना-प्रक्रिया और रचना अनुभव पर आलोचनात्मक समन्वय और दृष्टि से रचनाकारों और श्रोताओं को नए आयाम मिलेंगे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ.मदन केवलिया ने इस मौके पर कहा कि हास्य और व्यंग्य दो अलग-अलग चीज है, व्यंग्य बहुत ही तीखा होता है और सीधा दिल में उतरकर कहीं रह जाता, यह आर-पार नहीं होता, एक कसक छोड़ देता है। उन्होंने हिंदी और राजस्थानी व्यंग्य में अधिक काम की आवश्यकता को जताते हुए कहा कि अभी तक व्यंग्य विधा को उससे सही स्वरूप में पहचाना नहीं गया है, हालांकि हिंदी की तुलना में राजस्थानी में बेहतर काम हुआ है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अकादेमी के प्रतिनिधि के रूप में शांतनु गंगोपाध्याय ने स्वागत करते हुए कहा कि राजस्थानी साहित्य विविधता पूर्ण रहा है और राजस्थानी भाषा की हर विधा में प्रचुर मात्रा में लिखा गया है। यहां के साहित्य में जन-जन से जुडऩे की खासियत है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी व्यंग्य के क्षेत्र में यह सेमिनार एक मील का पत्थर साबित होगा।
मुक्ति के सचिव राजेंद्र जोशी ने इस मौके पर कहा कि व्यंग्य विधा को केंद्र में रखकर इतना गंभीर आयोजन पहली बार हो रहा है, खासतौर से राजस्थानी व्यंग्य लेखन के लिए यह पहला आयोजन है। यह एक ऐसा आयोजन है जहां से हमें आत्मावलोकन का अवसर मिलेगा। जोशी ने कहा कि व्यंग्य विधा के क्षेत्र में राजस्थानी में आलोचना का अपेक्षित कार्य भी नहीं हुआ है।
नेहरु शारदा पीठ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.प्रशांत बिस्सा ने प्रदेश भर से आए साहित्यकारों के प्रति आभार प्रगट करते हुए कहा बीकानेर के कण-कण में कला और साहित्य बसा हुआ है। बिस्सा ने कहा कि आज हिंदी और राजस्थानी साहित्य में बीकानेर की देश में व्यापक पहचान बनी है। यहां के रचनाकारों की विविध विधाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
कार्यक्रम के पहले सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार-व्यंग्यकार श्याम जांगिड़ ने की। पत्रवाचन वरिष्ठ साहित्यकार-समालोचक डॉ.चेतन स्वामी और युवा कवि-पत्रकार ओम नागर ने किया। संचालन नाटककार हरीश बी.शर्मा ने किया। चेतन स्वामी ने अपने पत्रवाचन में व्यंग्य में बात को टेढ़ा करके कहा जाता है, ऐसे में कहा जा सकता है कि उपदेश और व्यंग्य में एक मूलभूत जो अंतर होता है, वह यह कि उपदेश सीधा होता है, व्यंग्यकार उपदेशी नहीं होता लेकिन प्रकारांतर से देखें तो वह उपदेशी ही होता है।
युवा कवि-पत्रकार ओम नागर ने अपने पत्रवाचन में हाड़ौती के व्यंग्य-सृजन पर अपनी बात रखते हुए कहा कि आज के समय में कविता और व्यंग्य ही ऐसे हथियार है जो लोगों की जुबां पर लगे ताले को खोल सकते हैं। राजस्थानी व्यंग्य लेखन के भंडार को समृद्ध करने की उन्होंने आवश्यकता जताई।
पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए श्याम जांगिड़ ने कहा कि हास्य के बगैर व्यंग्य संभव नहीं है और यह रचनाकार पर निर्भर करता है कि वह इन दोनों का कितना उपयोग करता है।
दूसरे सत्र में वरिष्ठ कथाकार श्यामसुंदर भारती की अध्यक्षता में व्यंग्यकार शंकरसिंह राजपुरोहित और कवि-कथाकार राजेंद्र जोशी ने पत्रवाचन किया। कवयित्री संचालन डॉ.रेणुका व्यास ने किया। शंकरसिंह राजपुरोहित ने बीकनेर के व्यंग्य लेखन को रेखांकित करते हुए कहा कि जिस शहर की नींव ही व्यंग्य से पड़ी हो वहां व्यंग्य विधा में रचाव अधिक हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कवि-कथाकार राजेंद्र जोशी ने राजस्थानी व्यंग्यकारों की चर्चा करते हुए श्रेष्ठ दस रचनाकारों को टॉप-टेन की संज्ञा देते हुए दस प्रमुख व्यंग्यकारों के अवदान को रेखांकित किया वही अब तक के व्यंग्य विधा के विकास को भी उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम अध्यक्ष श्यामसुंदर भारती ने इस मौके पर कहा कि राजस्थानी व्यंग्य पर किसी भी विदेशी विचार या दृष्टि का प्रभाव नहीं है, हमारे यहां के मुहावरे, काव्य और नाटक में व्यंग्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। भारती ने राजस्थानी लोक साहित्य और जीवन के अनेक उदाहरण देते हुए व्यंग्य के विकास को स्पष्ट किया।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी, साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि राजस्थानी व्यंग्य विधा में भले ही कम काम हुआ हो लेकिन राजस्थानी व्यंग्य कमजोर नहीं है। अब समय है कि व्यंग्यकारों की फुटकर लेखन से बाहर आकर ठोस काम करना चाहिए ताकि राजस्थानी व्यंग्य दुनिया के सामने अपनी पहचान के साथ खड़ा हो। उन्होंने कहा कि यह सेमिनार राजस्थानी व्यंग्य के लिए एक प्रस्थान बिंदु बनेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि राजस्थानी व्यंग्यकारों को समकालीन लेखन पर ध्यान देना चाहिए ताकि उनके व्यंग्य में आधुनिक युगबोध सामने आए। उन्होंने कहा कि राजस्थानी व्यंग्य लेखन को अभी तक बहुत लंबी यात्रा करनी है ताकि राजस्थान से कोई हरिशंकर परसाई या शरद जोशी जैसा व्यंग्यकार निकले। उन्होने कहा कि साहित्य में व्यंग्य लेखन ही एक मात्र ऐसी विधा है जिसमें दमदार लिखने और निडरता से कहने की जरूरत होता है, व्यंग्य लेखक की यही शर्त है और यही चुनौती भी है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. नमामिशंकर आचार्य ने किया।
इस मौके पर अतिथि व पत्रवाचकों को नेहरु शारदापीठ महाविद्यालय के सचिव पीयूष पुरोहित, प्राचार्य प्रशांत बिस्सा, व्याख्याता गौरीशंकर प्रजापत ने अतिथियों को स्मृति चिह्न प्रदान किए।
मुक्ति के सचिव राजेंद्र जोशी ने बताया कि रविवार को राजस्थानी उपन्यास विधा पर सेमिनार होगा। सेमिनार का उद्घाटन सुबह 10.30 बजे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.नंद भारद्वाज और डॉ.अर्जुनदेव चारण करेंगे।