पहले के जमाने में संयुक्त परिवार होते थे तो बच्चों का पालन पोषण कई हाथ मिलकर होता था। अब परिवार संयुक्त नहीं रहे, मकान से फ्लैट का जमाना आ गया तो उन बच्चों का बचपन भी सिमट कर रह गया। वैसे तो बच्चे या बड़े सभी के लिए पर खास करके बढ़ती उम्र के लिए सुबह की ताजी हवा, गुनगुनाती धूप, बरसते पानी की पहली बौछार में नहाना, दौड़ना, खेलना, चिल्लाना अब क्या यह सब होता है। बच्चों में एक जिज्ञासा होती है अतः उन्हें चिड़ियाघर ले जाना, पर्यटन कराना, अच्छा लिटरेचर पढ़ने को देना क्या यह सब होता है। बच्चों के साथ कितना टाइम माता पिता बिताते हैं इस पर भी बच्चों की ग्रोथ निर्भर होती है। क्योंकि माता-पिता के साथ बच्चा काफी कुछ नैतिक शिक्षा, संस्कार, धर्म के प्रति आस्था सीखता है। आज के दौर में अधिकतर बच्चे मोबाइल चिपकु हो गए हैं और मां-बाप भी थकीहारी जिंदगी से समझौता करे हुए हैं इसलिए बच्चों पर पूरा समय नहीं दे पाते। बच्चों पर विशेष ध्यान दें उन्हें समय दें, प्रकृति के बीच अधिकतर रहने का अवसर दें। और बेसिक संस्कार ज्ञान विज्ञान यह सब उसे मिले इस पर पूरा ध्यान दें। बच्चों का पढ़ना दौड़ना खेलना यह सब बहुत आवश्यक है। कोई भी पाठक इस बात को व्यक्तिगत न ले।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)

