

जयपुर, । सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ. नरेन्द्र शर्मा ‘कुसुम‘ ने कहा है कि आज लोकतंत्र लोक आधारित नहीं बल्कि धन आधारित हो गया है जिससे मतदाताओं की नैसर्गिक अभिलाषाएं पूरी नहीं हो पा रही है। आज मतदाता अनेक बंधनों और संकीर्णताओं के बंधन में बंध कर रह गया है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को सियासत लील गई है।
डॉ. कुसुम ‘मुक्त मंच‘ की 55वीं संगोष्ठी में ‘मतदाता की अभिलाषा और जनप्रतिनिधि‘ विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
न्यायमूर्ति (से.नि.) आरके अकोदिया ने कहा कि मतदाताओं के शिक्षण-प्रशिक्षण की आवश्यकता है कि मुफ्त राशन, उज्ज्वला, शौचालय, आवास सुविधा जैसी योजनाओं का संचालन सरकारी कोष से हो रहा है बल्कि इसके लिए कोई अपने घर से खर्च नहीं कर रहा। यह राशि जनता द्वारा करों के रूप में वसूली गई है। राजनीति में शुद्धता और शुचिता की आवश्यकता है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी आर.सी. जैन ने कहा कि आज राजनीति में घोषणा पत्र में किए गए वायदों को कौन पूरा कर रहा है और जो पार्टी अमल कर रही है उसे जनता पलकों पर बिठा रही है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. सत्यनारायण सिंह और अरुण ओझा ने कहा कि लोकतंत्र में अब व्यक्तिवाद हावी है। वैचारिक प्रतिबद्धता की जगह स्वार्थ सर्वोपरि हो गया है।
संगोष्ठी का संयोजन शब्द संसार के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि आमजन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा रहा है। मतदाता की अभिलाषाएं मृग मरीचिका बनती जा रही हैं। राजनीति में दागी लोगों का प्रवेश लोकतंत्र के लिए खतरा है।