_हमें आत्म दर्शन की भूमिका में आना चाहिए
_रोग और मृत्यु से डरने वाला संसारी दुर्गति से नहीं डरता


बीकानेर। महापुरुष फरमाते हैं, संसारियों को रोग से डर लगता है। मृत्यु से डर लगता है और बहुत सारी बातों से डर लगता है। जैसे मेरे धन का उपहरण ना हो जाए, मेरा रूप ना खराब हो जाए, मेरा शरीर ना बिगड़ जाए, आदि डर संसारी को सताते रहते हैं लेकिन उसे अपनी दुर्गती का डर नहीं लगता, जबकि डरना दुर्गति से चाहिए। यह सद्विचार श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने व्यक्त किए। आचार्य श्री ने सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में शनिवार को अपने नित्य प्रवचन में साता वेदनीय कर्म के छठे बोल ‘इन्द्रियों का दमन करता जीव’ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि मैं आपसे पूछता हूं, आपको दुर्गति से डर लगता है कि नहीं लगता। महाराज साहब ने कहा कि हमें दुर्गति से डरना चाहिए। महाराज साहब ने कहा कि इन्द्रियों का दमन करता हुआ जीव साता वेदनीय कर्म का बंध करता है। इसका दुरुपयोग करने वाला असाता वेदनीय कर्म का बंध करता है।
आचार्य श्री ने कहा कि श्रोत इन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, रसना इन्द्रिया और स्पर्शन इन्द्रिय यह पांच इन्द्रियां है। इन सबमें श्रोत इन्द्रिय बहुत दुर्लभता से प्राप्त होती है। महाराज साहब ने कहा कि जीव अनेक इन्द्रिय होते हैं। जैसे- एकेन्द्रिय ,द्वीन्द्रिय, त्रीन्दिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय होती है। लेकिन जो इन्द्रियों का सदुपयोग करता है और दुरुपयोग से बचता है, वह बहुत से बुरे कर्मों से बच सकता है। आचार्य श्री ने बताया कि जिसमें आत्म दर्शन की जिज्ञासा जग जाती है वही इन्द्रियों का दमन कर सकता है। इसलिए आत्म दर्शन मेरा अभियान होना चाहिए।
महाराज साहब ने कहा कि संसार में बहुत से अभियान चल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान चला रखा है, गलियों में जगह-जगह कचरा उठाने वाली गाडिय़ां घूम रही है। कई जगह लिखा है ‘स्वच्छ बीकाणा- स्वस्थ बीकाणा’ मोदी जी का अभियान स्वच्छ भारत- स्वस्थ भारत है। यह स्वच्छता, स्वस्थता अभियान नेता लोग चाहते हैं और मैं भी चाहता हूं। लेकिन हमारा अभियान आत्म दर्शन का अभियान है। इसके लिए इन्द्रियों को अपने वश में करना होता है। महाराज साहब ने कहा कि दो काम होते हैं, या तो वह इन्द्रियों के वशीभूत होता है या फिर इन्द्रियां उसके वशीभूत होती है। जो इन्द्रियों के वशीभूत होते हैं वह दुर्गति से नहीं डरते हैं।
सबका हो आत्म दर्शन अभियान
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि आत्म दर्शन का अभियान सबका होना चाहिए। इसके लिए हमें आत्म दर्शन की भूमिका में आना चाहिए। अनंत-अनंत पुण्यवानी से मनुष्य जीवन मिलता है। इसका लाभ अगर हमने ले लिया तो हमारा जीवन सफल हो जाता है। जो नहीं करता है, वह आता है, जीता है और फिर चला भी जाता है।
साधक का लक्ष्य सकाम निर्जरा
आचार्य श्री ने बताया कि साधकों का लक्ष्य सकाम निर्जरा होता है। वह हमारे लिए उपयोगी है। यह तभी संभव है जब हम आत्म दर्शन का अभियान लेकर चलते हैं। सम्यक दर्शन के बगैर यह अभियान संभव नहीं है। आत्म दर्शन के बगैर इन्द्रियों का दमन नहीं हो सकता।
_अनंत पुण्यवानी से मिलता है श्रोतेन्द्रिय ज्ञान
आचार्य श्री ने सभी श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि बताइये महत्व मोबाइल का है या श्रवण शक्ति का है। जिस प्रकार श्रवण शक्ति के बगैर मोबाइल का महत्व नहीं है। इसी प्रकार श्रवेणन्द्रिय में असाता है तो इसका कोई ना कोई कारण जरूर होता है। हमारे दस प्राणों में श्रोतेन्द्रिय पहला प्राण है। इसकी उपस्थिति में ही हम जिनवाणी, गुरुवाणी का श्रवण कर सकते हैं। कान स्वस्थ हैं तो सब सुन सकते हैं। महाराज साहब ने कहा कि वे स्वयं इस रोग की व्याधी से गुजर रहे हैं। किसी जन्म में किए गए किसी कार्य का परिणाम है जो भुगता जा रहा है।
संघ ने किया स्वागत
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया की संघ की ओर से शनिवार को प्रवचन स्थल पर पहुंचे सेठ धनराज ढ़ढ्ढा के सुपुत्र निहालचंद ढ़ढ्ढा का भाव भरा स्वागत एवं अभिनंदन किया गया। आचार्य श्री ने उनका परिचय धर्मसभा में नीमच, चित्तोड़, राजनंदगांव, मैसूर, विजयनगर से पधारे एवं स्थानीय श्रावक-श्राविकाओं से करवाया तथा उनके धर्मसंघ में दिए जा रहे योगदान से अवगत कराया। इस अवसर पर संघ की ओर से आगंतुकों को साहित्य भेंट किए गए तथा बाहर से पधारे अतिथियों का भी परिचय स्थानीय संघ और पदाधिकारियों से करवाया गया।
