-मंत्रिस्तरीय चयन बोर्ड के माध्यम से ऐसे बेरोजगारों का भला हो गया जो चपरासी की परीक्षा पास नहीं कर सकते
जयपुर,-हरीश गुप्ता। एक तरफ तो एपीआरओ की हुई परीक्षा में कुछ के पास परीक्षा की सूचना तक नहीं पहुंची, वहीं चुनिंदा ऐसी भर्ती हो गए जो चपरासी की परीक्षा भी पास नहीं कर सकते। इसे देखकर लगता है, राजस्थान लोक सेवा आयोग से ज्यादा बुरे हाल मंत्रिस्तरीय चयन बोर्ड के हैं।
सूत्रों की मानें तो बोर्ड में अब भी गड़बड़ चल रही है। पहले दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र में कभी-कभार ही बड़ी गाड़ियां आती थी। इन दिनों पीटीआई आदि के कारण गाड़ियों की आवाजाही ज्यादा ही है। आखिर यह गाड़ियां किसकी है? क्या बेरोजगारों की? या उनके परिजनों की? या फिर दलालों की?
जानकारी के मुताबिक वर्तमान में पीटीआई, स्टेनोग्राफर, क्लर्क, लाइब्रेरियन आदि की भर्ती का मामला चल रहा है। करीब 20 लाख बेरोजगारों ने भाग्य आजमा रखा है। बड़ी गाड़ियों वालों का हाथ जिस पर होगा, उसका तो भला तय सा लगता है। यह भी सत्य है कि कुछ सालों में आई मंदी के बाद सरकारी नौकरी के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा है। यही कारण है ‘बाबू लाल कटारा’ जैसे ‘महान’ लोगों के मजे हो रहे हैं। कटारा जैसे ‘महान’ अधीनस्थ मंत्रिस्तरीय चयन बोर्ड में भी मौजूद है। उसी का नतीजा है कि एपीआरओ में कुछ के पास परीक्षा की सूचना नहीं, तो अयोग्य की भर्ती हो गई। हम दावा करते हैं कुछ नाम बता देंगे। किसी दूसरी एजेंसी से इनकी परीक्षा करवा ली जाए, अगर वह पास हो जाए। रिश्तेदारों की ‘पावर’ या ‘लक्ष्मी’ का आशीर्वाद ना हो, तो वे आज भी घर बैठे होते और कोई योग्य उनकी जगह सरकारी सेवा में होता।
एक कटारा ने आरपीएससी को हिला दिया, यहां तो न जाने कितने हैं। आश्चर्य है कि किसी की निगाह क्यों नहीं जा रही? बड़ा सवाल वही, आखिर सरकारी सेवा से रिटायर लोगों को यहां क्यों बिठाया जाता है? बिठाने से पहले उनकी संपत्ति की जांच क्यों नहीं की जाती? बैठने के बाद कितनी जमीन, कितने फार्म हाउस आदि खरीदे क्यों नहीं जानकारी ली जाती?