2024 के आम चुनावों को लेकर भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए और विपक्षी दलों का नया महागठबंधन तीखे तेवर के साथ मैदान में उतर गया है। विपक्षी दलों ने जब छोटे छोटे दलों को भी एकता के लिए कल से शुरू हुई बेंगलुरु बैठक में आने का न्यौता दिया तो भाजपा के भी कान खड़े हो गये। उसे भी अपने पुराने दलों की याद आई और नये छोटे दलों से भी बात कर अपने साथ लाये। विपक्षी दलों की बैठक जहां कल और आज बेंगलुरु में हो रही है वहीं एनडीए की बैठक आज दिल्ली में होगी। दोनों ही पक्ष अपने साथियों की संख्या से शक्ति प्रदर्शन करने में लगे हैं।
कल बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों की बैठक में जहां 26 दल शामिल हुए थे वहीं एनडीए का दावा है कि आज होने वाली बैठक में कुल 30 दल भाग लेंगे। यदि आज की तारीख तक की स्थिति को अंतिम मानें तो अगले आम चुनाव में मुख्य मुकाबला 30 बनाम 26 का होगा। दलों की संख्या की लड़ाई एनडीए ने अवश्य जीती है, ये तो मानना ही पड़ेगा।
पिछले काफी समय से भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने और वर्चस्व बढ़ने के कारण एनडीए गौण हो गया था। बड़े साथी जेडीयू, अकाली दल उसे छोड़ गये थे। जो अब भी साथ नहीं है। विपक्ष को एक होता देख भाजपा को एनडीए याद आया है। आनन फानन में यूपी से ओम राजभर, बिहार से जीतनराम मांझी व चिराग पासवान के छोटे दलों को भी एनडीए का हिस्सा बनाया गया है। इस शक्ति प्रदर्शन में यूपी, बिहार, तमिलनाडु आदि के छोटे छोटे दलों का भाग्य जरूर खुल गया है। मगर अब भी अकाली दल, बसपा, बीजेडी, तेलंगाना की टीआरएस व जगन रेड्डी की कांग्रेस किसी भी पक्ष के साथ नहीं है। जिनका अपने अपने राज्यों में वर्चस्व है। इसके अलावा बिहार में भी लोजपा को लेकर भाजपा संकट में है। पहले लोजपा को तोड़ चिराग के चाचा को मंत्री बना दिया, जो साथ है ही। अब चिराग को भी साथ लाये हैं, दोनों को एक साथ कैसे रखेंगे, ये बड़ा संकट है। एनडीए का वर्तमान स्वरूप आने वाले दिनों में बदलेगा, ये निश्चित माना जा रहा है।
वहीं विपक्षी दलों की बैठक में इस बार सोनिया गांधी भी शामिल हुई है, जिसके कई राजनीतिक मायने है। आप की बात कांग्रेस ने मानी तो वे भी बैठक में शामिल हुए हैं। अर्थ ये है कि कांग्रेस त्याग को तैयार है और क्षेत्रीय दलों को उनके राज्य में बड़ा हिस्सा देने को तैयार है। पटना बैठक के बाद बेंगलुरु की ये बैठक विपक्षी एकता के मार्ग में ठोस कदम है। सीट वितरण सही हो गया तो 382 सीट पर भाजपा को कड़ी चुनोती मिलेगी। इस बात से भाजपा भी चिंतित है।
विपक्ष का बढ़ता कुनबा आम चुनाव से पहले होने वाले राज्यों के चुनाव पर भी बड़ा असर डालेगा। कुल मिलाकर आम चुनाव को लेकर अभी से ही देश में चुनावी बिसात बिछ गई है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार