रोहतक(अनूप कुमार सैनी)। मतदाता की चुप्पी और बिना शोर-शराबे वाला लोकसभा चुनाव का प्रचार अब थम गया है। रोहतक सीट के लिए भाजपा का प्रचार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी रैली तो कांग्रेस ने अपना चुनाव प्रचार गोहाना में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की रैली के साथ समाप्त किया।
भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी की रोहतक की चुनावी सभा में अपना जनाधार दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी हुई थी लेकिन रैली जनता में गलत संदेश दे गई क्योंकि भाजपा को इससे गहरा झटका लगा है। कारण साफ था। पीएम की रैली फ्लाप रही। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बरवाला की रैली तो बुरी तरह फ्लाप रही।

इधर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने चुनाव प्रचार की अंतिम रैली के लिए पूरा जोर लगाया हुआ था। दोनों पार्टियों के लिए ही यें रैलियां प्रतिष्ठा का सवाल थी। अगर भीड़ की बात करें तो गोहाना की कांग्रेस की चुनावी रैली भाजपा की रोहतक में हुई मोदी रैली को करारा जबाव थी। फिर भी भीषण गर्मी में भीड़ का रैली में पहुंचने का राजनीति में बहुत अर्थ निकलता है।


चर्चाकार कहते हैं कि देश के सुपर स्टार प्रचाक नरेन्द्र मोदी के सामने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने केवल २५ किलोमीटर की दूरी पर गोहाना में बड़ी भीड़ की रैली कर अपना राजनैतिक कद साबित कर दिया तो साथ ही भाजपा को करारा जबाव भी दे दिया। कांग्रेस की गोहाना रैली में पूर्व मंत्री आनंद शर्मा भी थे। गोहाना रैली में एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए, वहीं रोहतक रैली में करीब २० हजार लोग ही शामिल हुए।
रोहतक में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में सभी वर्गों को साधने का प्रयास किया। उन्होंने हरियाणावी परम्परा अनुसार सभी को राम राम कह कर भीड़ से जोडऩे का प्रयास किया। चुनाव प्रचार में जो हथकंडे अपनाएं जा रहे हैं, मोदी ने सभी को तरीके से आजमाया। उन्होंने खिलाडिय़ों और किसानों को भी अपने साथ जोडऩे का प्रयास किया। दूसरी जगहों की तरह रोहतक में भी मोदी ने अपने नाम पर खुद के लिए ही वोट मांगे।

मोदी की इस चुनावी रैली में सरकारी तंत्र का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया जबकि गोहाना में कांग्रेस के लिए भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की चुनावी रैली की भीड़ जोश से भरी दिखाई दे रही थी। गोहाना रैली की भीड़ में हुड्डा के प्रति जोश साफ दिखाई दे रहा था। ट्रैक्टर और गुलाबी पगड़ी से गोहाना अटा हुआ था। अब चुनाव प्रचार समाप्ति के साथ ही बाहर से आए नेता क्षेत्र को छोड़ देंगे।
चुनाव प्रचार की नुक्कड़ सभाएं न करके अब प्रत्याशी डोर-टू-डोर मतदाताओं से सम्पर्क करेंगे। अभी तक प्रचार के दबाव और व्यवस्ताओं के चलते जिन नेताओं को प्रत्याशी अपने से जोड़ नहीं पाए थे, अब आने वाले ४८ घंटों में रूठे हुए नेताओं को मनाने का काम चलेगा। इतना ही नहीं, किन्हीं कारणों से प्रचार से न जुड़ पा सकने वाले कार्यकर्त्ताओं को भी मनाया जाएगा। अब आने वाले दिन में प्रत्याशियों के नीतिकार वोट को मतदान केंद्र तक ले जाने की नीति बारे रूपरेखा तैयार करेंगे।


कांग्रेस में क्येाकि अभी तक जिला सतर पर संगठन नहीं काम कर रहा है तो प्रत्याशियों के समर्थक और उनसे जुड़े कार्यकर्ता ही बूथ सम्भालने का काम करेंगे। कांग्रेस ने इस तरह की व्यवस्था की है कि इस काम की जिम्मेदारी प्रत्याशी ने अपने परिजनों तथा रिश्तेदारों को सौंपी है और उनके साथ समर्थकों को जोड़ा गया है। परन्तु भाजपा बूथ व्यवस्था के लिए अब पन्ना प्रमुखों की ड्यूटियां लगाई जाएंगी। इसके लिए पार्टी ने पन्ना प्रमुखों की बैठकें बुलाई बताई गई है। चुनाव में बूथ प्रबंधन जीत में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
चुनाव प्रचार थम जाने के बाद के ये आने वाले दो दिन किसी भी प्रत्याशी के लिए तनाव भरे होते हैं। प्रत्याशी अपनी जीत-हार के बारे में दिमाग में उठने वाले विचारों में उलझा रहता है। चुनाव प्रचार थम जाने के बाद अब हर प्रत्याशी को मतदान के दिन का इंतजार रहेगा।