बारह मासा गणगौर का पूजन, भरा मेला
बारह मासा गणगौर का पूजन, भरा मेला
बारह मासा गणगौर का पूजन, भरा मेला

बीकानेर । अखंड सुहाग व अपने मंगलमय जीवन की कामना कठिन तपस्या व साधना से बारह मासा गणगौर का पूजन करने वाली महिलाएं बुधवार को गाजे बाजे से, नाचते तथा गीतों की स्वर लहरियां बिखरते हुए जूनागढ़ पहुंची। जूनागढ़ में मेला भरा तथा राज परिवार की ओर से परम्परानुसार पांच रुपए, लड्डू व नारियल से शहर के विभिन्न मोहल्लों से आई करीब 200 से अधिक गणगौरों का खोळ भरा गया। शहरवासियों के साथ मेले को देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों का भी हजूम जमा था।

बुधवार को ही बारह गुवाड़ व शहर के अनेक इलाकों में बारहमासा गणगौर की पूजा की गई तथा गीत गाए गए। बारह गुवाड़ में मेला भरा तथा दो शताब्दी से अधिक आलूजी-बाबूलालजी छंगाणी की मिट्टी कुट्टी से बनी गणगौर,ईसर, गुजरी, कृष्ण व भगवान गणेश की पूजा अर्चना की गई।

बारह माह गणगौर का पूजन करने वाली सुहागिन महिलाएं गुरुवार को घर में महिलाओं को भोजन करवाकर गणगौर का दान करेंगी। महाराजा राय सिंह ट्रस्ट की ओर से जूनागढ़ पहुंचे मेलार्थियों के लिए पेयजल आदि की व्यवस्था की गई। महिलाओं ने जूनागढ़ आई गणगौर, ईसर व भाइए की प्रतिमाओं के नकदी, फल, बतासे आदि सामग्री से खोळ भराया । कई गणगौर, ईसर व भाइए की प्रतिमाएं एक ही बंगली में प्रतिष्ठित थीं वहीं कई गणगौरों के नोटों व बेशकीमती गहनों का श्रृंगार किया हुआ था। गणगौर व ईसर की प्रतिमाओं के आगे महिलाओं, बालिकाओं ने जमकर नृत्य किया।  उनको नृत्य करते देख विदेशी महिलाओं ने ठुमके लगाकर गणगौर उत्सव का आनंद लिया।

पंडित पुरुषोत्तम व्यास ’’मीमांसक’’के अनुसार बारहमासी गणगौर पूजन करने वाली सुहागिन महिलाएं अखंड सुहाग,मंगल कामना, वंशवृद्धि व मोक्ष की प्राप्ति के लिए  बारहमासी गणगौर व्रत चैत्रा सुदी नवमी (राम नवमी) से चैत्रा सुदी एकादशी तक करती है।  पंडितों के अनुसार इस व्रत को सर्व प्रथम राजा युधिष्ठर व द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से किया था ।

बारह माह तक गणगौर पूजा करने वाली सुहागिनों को अनेक कठिन तपस्याएं व त्याग करना पड़ता है। चैत्रा माह में गणगौर की भक्ति भाव से की जाती है। वैशाख में बड़, पीपल का सींचन किया जाता है तथा देवी गवरजा की पूजा की जाती है। प्रचंड गर्मी के ज्येष्ठ माह पूजन करने वाली महिलाएं  चप्पल का त्याग करती है तथा किसी के घर नहीं जाती। पानी और चच्पल का दान करती है। आषाढ़ माह में बिस्तर का ज्याग करती है तथा सेज सामग्री का दान करती है। पंखा अपने हाथ से नहीं चलाती तथा पंखे का दान करती है।

रिमझिम वर्षा के सावन माह में हरी सब्जी का उपयोग नहीं करती तथा हरी सब्जी का दान करती है। भादों में दही का त्याग किया जाता है। आश्विन माह में दूध से बने पदार्थो का त्याग करते हुए दूध का दान करती है। कार्तिक में घी, दाल के सेवन पर परहेज किया जाता है तथा घी-दाल का दान किया जाता है तथा गंगा स्नान किया जाता है।

मार्गशीर्ष यानि मिगसर माह में मूंग का त्याग किया जाता है तथा मूंग का दान किया जाता है। सर्दी के पौष माह में पूरे माह नमक का त्याग व दान किया जाता है। माघ में ठंडे जल से सुबह चार बजे स्नान करती है तथा स्नान ध्यान के बाद सबसे पहले भगवान सूर्य का दर्शन करती है। तीन वस्त्रा ही ओढ़ते, पहनते व बिछाती है।

फाल्गुन माह में होली खेलते है तथा गुलाल भर प्याला मंदिर में चढ़ाया जाता है। चैत्रा माह में गणगौर की पूजा 16 दिनों तक करने के बाद चैत्रा सुदी 12 को गणगौर-ईसर का आकर्षक वस्त्रों व गहनों से श्रृंगार कर घुमाया जाता है तथा जूनागढ़ किले में लाया जाता है।