नगर म चंदा उड़ाने की परम्परा लिखित इतिहास लुप्त है, किवदंती के अनुसार कहा जाता है कि बीकानेर स्थापना दिवस के समय विजय के प्रतीक के रूप म राव बीका ने चंदा उड़ाकर खुशी जाहिर की थी। तब से अब तक प्रतिवर्ष अक्षया द्वितीया व तृतीया को चंदा उड़ाया जा हा है। पिछले एक दशक से चंदा उड़ाने के प्रति लोगों म अधिक रूचि जागृत हुई है। सामाजिक एवं स्वयं सेवी संगठनों की ओर से लक्ष्मी नाथ मंदिर परिसर व जूनागढ़ आदि स्थानों पर चंदा महोत्सव आयोजित कर नगर की प्राचीन यशस्वी संस्कृति का संदेश दिया जा रहा है।
पांच शताब्दी पूर्व चंदा किसने बनाया इसके पुख्ता प्रमाण नगर इतिहास म समाहित नह° है। बीकानेर म रहने वाले मथैरण कलाकार शताब्दियों से आखातीज पर उड़ने वाले चंदा को बनाने म लगे ह®। कई वर्षों म चंदा बनाने वाले पारंगत कलाकारों के लुप्त होने से शहर के कई कलाकार इस विशेष प्रकार की पतंग बनाने म समर्पित ह®। कीकाणी व्यासों के चौक म रहने वाले गणेश व्यास, बृजेश्वर व्यास, पुष्करणा स्टेडियम के पीछे रहने वाले कृष्ण चन्द्र पुरोहित, पटर धर्मा स्वामी, रामकुमार भादाणी, कमल जोशी, महादेव स्वामी, अभिषेक बोड़ा व पटर भूरमल सोनी सहित एक दर्जन से अधिक कलाकार शौकिया चंदा बनाने, उसको उड़ाने की परम्परा का निर्बाद्ध रूप से निर्वहन कर रहे है।
विशेष कागज से बनता है चंदा- चंदा बही के विशेष प्रकार के कागज म विभिन्न आकृतियों यथा 3 गुणा 3 फीट, दो गुणा-दो फीट, एक गुणा एक फीट,वृत्ताकार आकार म बनाया जाता है। इसे बनाने म विशेष ध्यान रखना होता है। कागज के ऊपर 9 सरकंडे के तिनके लगाए जाते ह®। चंदे के साइज से कुछ अधिक बड़े सरकंडे का भी उपयोग किया जाता है। अधिकतम दो ढाई किलो वजन के चंदे को विशेष डोरी से उड़ाया जाता है। उड़ने के बाद चंदा डोरी सहित वजन करीब 25 कलो से अधिक हो जाता है। नील गगन म इठलाते विजय का संदेश देने वाले चंदे को दो व्यक्तियों को पकड़ कर उड़ाना पड़ता है। चंदे के पीछे विशेष प्रकार का सूती डोरी का गुच्छ बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा म ”बूंदड”़ कहते है। वह पवन के अनियंत्रित वेग को नियंत्रित करने म सहायक होता ह®। चंदे की पूरी गोलाई म बीकानेर रियासत के ध्वज के प्रतीक के रूप म लाल व केसरिया पतले कपड़े की गोठन बांधी जाती है,वह° हल्के पगड़ी के कपड़े से पूंछ बनाई जाती है। उड़ने के दौरान हवा म लहराती यह पूंछ बच्चों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनती है। चंदे की पूछ को देखकर कई बच्चे अपनी पतंगों म भी सूती साड़ी आदि के कपड़े की पूंछ बनाकर उड़ाते है तथा आनंद लेते है।
संदेश वाहक चंदा- चंदे पर देवी देवताओं के चित्रा व आकृतियों के साथ दोहों व शब्दों म संदेश भी अंकित किए जाते है। चंदा बनाने वाले कृष्ण चन्द्र पुरोहित ने बताया कि चंदे पर देवी करणीमाता, देव कोड़मदेसर भैरव, पूनरासर हनुमानजी व अन्य देवी-देवताओं तथा बीकानेर रियासत के राजाओं राव बीका, महाराजा गंगासिंह व डॉ.करणीसिंह आदि के चित्रा भी अंकित किए जाते ह®। चंदे म बीकानेर स्थापना का दोहा ”पनरै सौ पैताळवे, सुद वैशाख सुमेर, थावर बीज थरपियों,ं बीकै बीकानेर। ”ऊंट,मिठाई, स्त्राी, सोनो, गहणां शाह, पांच चीज पृथ्वी सरे वाह-बीकाणा वाह” आदि के दोहों के माध्यम से नगर की विशिष्टओं से अवगत करवाया जाता है। वह° पानी बचाने, बिजली बचाने व सबको पढ़ाने, बालिका को बचाने व पढ़ाने, भ्रूण हत्या रोकने, नशाखोरी व धुम्रपान रोकने, बंको बीकाणो के माध्यम से प्रत्येक घर म शौचालय बनाने, स्वच्छ बीकाणा, हरा भरा बीकाणा बनाने आदि के संदेश लिखे जाते ह®।
चंदा तेज हवा म ही उड़ता है। उड़ाने व उसको छोड़ने व उसकी डोरी पर हाथ लगाकर वापस छोड़ने का माहौल बहुत ही आनंदित होता है। चंदा को पुष्करणा स्टेडियम, जूनागढ़, भट्टड़ों का चौक, दम्माणी चौक, साले की होली चौक व कीकाणी व्यासों का चौक आदि स्थानों पर मैदान म या किसी ऊंची छत पर जाकर उड़ा कर छोड़ दिया जाता है। चंदा हवा के रूख के अनुसार लोगों के घरों के ऊपर से निकलते हुए दूर तक जाता है। चंदा उड़ाने वालों की एक टीम चंदे को वापस सुरक्षित लाने के लिए चंद के साथ साथ दौड़ती रहती है। लोग छतों पर खड़े होकर चंदे की डोरी के अंतिम छोर ( सूती रस्सी का गुच्छा) बूंदड़ को शगुन के तौर पर पकड़ते है तथा वापस छोड़ देते ह®। हवा के कम होने पर गवरा दादी को याद करते है तथा उनसे हवा को तेज करने की प्रार्थना करते ह®। ”गवरा दादी पून(हवा) दे, टाबरियों रा चंदा उड़े’।
अन्तरराष्ट्रीय पतंग महोत्सवों म चंदे की धूम- बीकानेरी चंदे की धूम अन्तरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव म देश-विदेशों म रही है। चंदा बनाने वाले कृष्ण कुमार पुरोहित ने बताया कि उन्होंने देश के विभिन्न शहरों के साथ कनाड़ा, स्विटजरल®ण्ड व बैल्जियम आदि देशों म चंदे को भिजवाया। पतंगबाजों व पतंग मेकरों ने बीकानेर के चंदे की बनावट, उड़ाने के तरीके की तारीफ की।
हरि शंकर आचार्य
सूचना एवं जन सम्पर्क अधिकारी,बीकानेर